
#महुआडांड़ #सामाजिक_असमानता : गरीबी और सरकारी उपेक्षा के चलते सिमोन बृजिया वर्षों से सुरक्षित आवास के लिए संघर्ष कर रहा है
- सिमोन बृजिया, 25 वर्षीय युवक, महुआडांड़ प्रखंड के बंदूवा गांव में खुले आसमान के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर।
- पिता की मृत्यु के बाद और मां के पुनर्विवाह के कारण सिमोन पूरी तरह अकेला रह गया।
- वर्तमान में उसका टूटा-फूटा कच्चा मकान गिर चुका है और वह बारिश में प्लास्टिक व तिरपाल के सहारे रात गुजारता है।
- न बिजली, न शौचालय और पीने का पानी दूर-दराज से लाना पड़ता है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना और झारखंड सरकार की अबुआ आवास योजना के तहत आवेदन देने के बावजूद सुरक्षित मकान नहीं मिला।
- प्रशासनिक आश्वासन के बावजूद वर्षों से कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड में स्थित बंदूवा गांव के निवासी सिमोन बृजिया गरीबी और सरकारी उपेक्षा का जीवंत उदाहरण हैं। पिता के निधन और मां के पुनर्विवाह के बाद सिमोन पूरी तरह अकेला पड़ गया। किशोरावस्था से ही जीवन का बोझ उठाने वाला यह युवक खेती और ईंट भट्ठों में मजदूरी कर अपना पेट पालता है। पढ़ाई उसके लिए केवल एक सपना बनकर रह गई।
अब हालात और भी दर्दनाक हो गए हैं। जिस कच्चे मकान में वह वर्षों से रहता था, वह हाल ही में पूरी तरह गिर चुका है। बारिश के दिनों में सिमोन को प्लास्टिक और तिरपाल के सहारे रात काटनी पड़ती है। ग्रामीण बताते हैं कि उसके पास न बिजली है, न शौचालय और पीने का पानी दूर से लाना पड़ता है।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया और योजनाओं का ठहराव
अक्सी पंचायत की मुखिया रोजलिया टोप्पो ने कहा:
“सिमोन के लिए कई बार प्रशासन को पत्र लिखा गया है और उसकी समस्या को हल करने का प्रयास किया गया है।”
महुआडांड़ प्रखंड विकास पदाधिकारी का कहना है:
“सिमोन का नाम आवास योजना की सूची में है, जल्द ही उसे योजना का लाभ मिलेगा।”
हालांकि, वर्षों बीत जाने के बावजूद, यह आश्वासन अब तक सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहा है।
सिमोन की पीड़ा और संघर्ष
सिमोन बृजिया ने उदास मन से कहा:
“अब मेरे पास रहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। अगर इस बार भी घर नहीं मिला, तो मुझे गांव छोड़कर बाहर कहीं मजदूरी करने जाना पड़ेगा।”
सिमोन की यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि आदिवासी बहुल इलाकों में रहने वाले कई युवाओं की वास्तविकता को उजागर करती है, जहां सरकारी योजनाएँ कागजों में मौजूद हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा।
ग्रामीण और समाज का दृष्टिकोण
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि सिमोन जैसी कई नौजवान पीढ़ियाँ, सरकारी योजनाओं के ढ़ीले क्रियान्वयन के कारण असुरक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं। सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतें अभी भी बड़ी संख्या में लोगों के लिए दूरस्थ सपना बनकर रह गई हैं।
न्यूज़ देखो: खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर युवा
सिमोन बृजिया की कहानी यह दर्शाती है कि सरकारी योजनाओं का जमीनी क्रियान्वयन अक्सर धीमा और असंगठित रहता है। प्रशासन को चाहिए कि सिर्फ सूची में नाम दर्ज करने की बजाय तत्काल और ठोस कार्यवाही करें। इस तरह की वास्तविक कहानियाँ स्थानीय और राज्य सरकारों की जवाबदेही को भी परखती हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सुरक्षित आवास और सामाजिक जिम्मेदारी के लिए सजग बनें
सिमोन जैसी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि केवल योजनाएँ बनाना पर्याप्त नहीं, उनका क्रियान्वयन और निगरानी करना अधिक महत्वपूर्ण है। समाज के प्रत्येक सदस्य और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर व्यक्ति को सुरक्षित छत और जीवन की मूलभूत सुविधाएँ मिलें।
अपने विचार साझा करें, इस खबर को दूसरों तक पहुँचाएँ और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।





