
#गुमला #शोकसभा झारखंड आंदोलन के अग्रदूत शिबू सोरेन को भावभीनी श्रद्धांजलि
- पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन से राज्यभर में शोक की लहर।
- जरडा पंचायत भवन में आयोजित शोकसभा में बड़ी संख्या में लोग जुटे।
- झामुमो कार्यकर्ता और क्षेत्रीय नेता रहे मौजूद, श्रद्धासुमन अर्पित किए।
- वक्ताओं ने उनके आंदोलनकारी जीवन और योगदान को याद किया।
- कहा गया कि उनकी विचारधारा पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।
झारखंड के महान क्रांतिकारी और आदिवासी हितों के सशक्त स्वर पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन की खबर से पूरे राज्य में गहरा शोक व्याप्त है। झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता के रूप में उन्होंने जो योगदान दिया, वह राज्य की पहचान का अभिन्न हिस्सा है। उनके निधन के बाद गुमला जिले के जरडा पंचायत भवन में एक शोकसभा आयोजित की गई, जहां लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
शोकसभा में उमड़ा जनसैलाब और झामुमो नेताओं की उपस्थिति
इस अवसर पर बड़ी संख्या में झामुमो कार्यकर्ता और क्षेत्रीय नेता मौजूद रहे। कार्यक्रम में जारी प्रखंड संगठन सचिव गुलामे मुस्तफा, जरडा पंचायत के मुखिया विनय एक्का, फरमान आलम उर्फ बीतू, दीप जूलियस कुजूर सहित कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ता और प्रतिनिधि उपस्थित थे। सभी ने शिबू सोरेन के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर दो मिनट का मौन रखा।
वक्ताओं ने गिनाई शिबू सोरेन की उपलब्धियां
शोकसभा के दौरान वक्ताओं ने उनके संघर्षपूर्ण जीवन को याद किया। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन न केवल एक राजनीतिक नेता थे, बल्कि आदिवासी समाज के लिए लड़ने वाले योद्धा भी थे। झारखंड राज्य की स्थापना में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
गुलामे मुस्तफा ने कहा: “शिबू सोरेन का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है। उन्होंने जिस तरह से आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया, वह हमेशा याद किया जाएगा।”
विनय एक्का ने कहा: “उन्होंने झारखंड को नई पहचान दिलाई। आने वाली पीढ़ियां उनके आदर्शों को अपनाकर आगे बढ़ेंगी।”
आंदोलनकारी से मुख्यमंत्री तक का सफर
झारखंड आंदोलन की नींव रखने वाले शिबू सोरेन ने राज्य के आदिवासी समाज को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि झारखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। आंदोलनकारी से लेकर तीन बार मुख्यमंत्री बनने तक का सफर उनकी राजनीतिक समझ और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
आदिवासी समाज के हितों की मजबूत आवाज
शिबू सोरेन हमेशा आदिवासी अधिकारों, भाषा, संस्कृति और भूमि संरक्षण के लिए मुखर रहे। उनके प्रयासों ने न केवल राज्य की राजनीति बल्कि सामाजिक चेतना को भी नई दिशा दी। यही कारण है कि आज उनका नाम सम्मान और गर्व से लिया जाता है।

न्यूज़ देखो: आदिवासी अस्मिता और संघर्ष की अमर गाथा
शिबू सोरेन का निधन झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास में एक बड़ी क्षति है। वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन की आत्मा थे, जिन्होंने आदिवासी समाज को उसकी पहचान दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उनकी सोच और संघर्ष की विरासत आने वाले समय में भी लोगों को प्रेरित करती रहेगी।
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आदर्शों को अपनाकर आगे बढ़ने का समय
शिबू सोरेन का जीवन बताता है कि संघर्ष और दृढ़ निश्चय से किसी भी बदलाव को संभव किया जा सकता है। अब समय है कि हम सब मिलकर उनके सपनों के झारखंड को साकार करने में योगदान दें। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को दोस्तों व परिवार के साथ शेयर करें ताकि यह प्रेरणादायक संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।