
#कोलेबिरा #नवरात्र : 1941 से चली आ रही परंपरा, बंगाल के कारीगरों द्वारा निर्मित प्रतिमा में आज भी बरकरार है दिव्यता
- धर्मशाला परिसर में हर साल नवरात्र पर होता है मां दुर्गा की भव्य पूजा।
- परंपरा की शुरुआत 1941 ई. में कालीचरण साहू और ग्रामीणों द्वारा की गई थी।
- प्रतिमा निर्माण की जिम्मेदारी सूत्रधार परिवार पीढ़ियों से निभा रहा है।
- आचार्य की भूमिका वर्तमान में शंकर दयाल गिरी जी निभा रहे हैं।
- श्रद्धालु झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ से दर्शन करने पहुँचते हैं।
कोलेबिरा। आस्था और भक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है कोलेबिरा प्रखंड मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित धर्मशाला परिसर में। शारदीय नवरात्र पर यहाँ मां आदि शक्ति जगदंबा जी की प्रतिमा स्थापित होती है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि मां की प्रतिमा के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है।
1941 से चल रही परंपरा
धर्मशाला परिसर में मां दुर्गा पूजा की परंपरा 1941 में शुरू हुई थी। उस समय कोलेबिरा थाना के जमादार कालीचरण साहू और स्थानीय ग्रामीणों ने मिलकर इसकी नींव रखी थी। प्रतिमा का निर्माण शुरू से ही बंगाल के कारीगरों द्वारा किया जाता है। मूर्तिकार वृंदावन सूत्रधार ने यह परंपरा शुरू की थी, जिसे आज उनके प्रपौत्र अश्विनी सूत्रधार निभा रहे हैं।
आचार्य और यजमान की परंपरा
पूजा अनुष्ठान को वर्षों तक योगेश शास्त्री और फिर आनंद शास्त्री ने आचार्य के रूप में आगे बढ़ाया। वर्तमान में शंकर दयाल गिरी आचार्य की भूमिका निभा रहे हैं। यजमान की परंपरा को गोपाल कुमार और श्रोता की भूमिका को केशव पांडा निभा रहे हैं।
भक्तों की आस्था और दिव्यता
पूजा स्थल के लिए भूमि दान शंभुनाथ सरदार ने किया था। मां की महिमा इतनी अलौकिक है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालु संतान प्राप्ति, सुख-शांति और समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं। नवरात्र में यहां का वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है और झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समेत दूर-दराज़ से लोग माता के दर्शन करने पहुंचते हैं।
न्यूज़ देखो: परंपरा से आधुनिकता तक आस्था का संदेश
कोलेबिरा की यह पूजा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही आस्था, संस्कृति और सामूहिक सहयोग की मिसाल है। आज जब समाज में मूल्य कमजोर हो रहे हैं, ऐसे आयोजन हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और सामाजिक एकता को मजबूत करते हैं।
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मां की महिमा और भक्तों का विश्वास
यह आयोजन सिर्फ पूजा नहीं बल्कि लोगों की अटूट आस्था और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। अब समय है कि हम सब मिलकर इस धरोहर को संरक्षित करें और आने वाली पीढ़ियों तक इसे पहुँचाएँ। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को दोस्तों व परिवार के साथ शेयर करें ताकि अधिक लोग मां दुर्गा की इस पावन परंपरा से जुड़ सकें।