
#सिमडेगा #माटी_कला : परंपरागत कुम्हारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से जिला प्रशासन ने दी नई तकनीक की सौगात – इलेक्ट्रिक चाक से बढ़ेगी उत्पादन क्षमता और आय।
- समाहरणालय सिमडेगा परिसर में हुआ इलेक्ट्रिक चाक वितरण कार्यक्रम।
- 23 कुम्हारों को 90% अनुदान पर मिला इलेक्ट्रिक चाक और टूलकिट।
- उपायुक्त कंचन सिंह और अपर समाहर्ता ज्ञानेंद्र ने किया वितरण।
- झारखंड माटी कला बोर्ड और लघु एवं कुटीर उद्यम बोर्ड का संयुक्त आयोजन।
- तकनीकी उन्नयन से उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों में होगा सुधार।
आज सिमडेगा में पारंपरिक कारीगरों के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा। झारखंड सरकार की पहल पर समाहरणालय परिसर में आयोजित विशेष कार्यक्रम में उपायुक्त श्रीमती कंचन सिंह एवं अपर समाहर्ता श्री ज्ञानेंद्र के हाथों 23 कुम्हारों के बीच इलेक्ट्रिक चाक और टूलकिट का वितरण किया गया। यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड और झारखंड माटी कला बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ, जिसका उद्देश्य माटी शिल्पकारों को आधुनिक तकनीक से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना है।
आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम
उपायुक्त श्रीमती कंचन सिंह ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि पारंपरिक रूप से हमारे कुम्हार भाई-बहन लकड़ी के चाक से बर्तन और दीये बनाते आए हैं, लेकिन अब समय है कि उनकी मेहनत को तकनीक का साथ मिले। उन्होंने बताया कि 90 प्रतिशत अनुदान पर दिए गए इस इलेक्ट्रिक चाक से कार्य में सहजता आएगी और उत्पादन बढ़ेगा। इससे न केवल मेहनत घटेगी बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता भी बेहतर होगी, जिससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन और आय में वृद्धि के अवसर बढ़ेंगे।
उपायुक्त कंचन सिंह ने कहा: “इलेक्ट्रिक चाक मिलने से अब नई पीढ़ी के कुम्हार भी मिट्टी के बर्तन बनाने की कला में रुचि दिखाएंगे। पारंपरिक कारीगरी को तकनीक से जोड़ना समय की मांग है और यही आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम है।”
सरकारी योजनाओं से ग्रामीण शिल्प को नई दिशा
अपर समाहर्ता ज्ञानेंद्र ने कहा कि मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड राज्य के ग्रामीण उद्यमियों को सशक्त करने के लिए लगातार प्रयासरत है। इस योजना से न केवल पारंपरिक कुम्हारों को लाभ मिलेगा बल्कि अन्य ग्रामीण शिल्पकारों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपनी कला को और निखारें तथा बाज़ार से जुड़ें। उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य है कि हर ग्रामीण कलाकार तकनीक और प्रशिक्षण के सहारे आर्थिक रूप से सक्षम बने।
कार्यक्रम के दौरान जिले के विभिन्न प्रखंडों से आए कई अधिकारी उपस्थित रहे। इनमें जिला उद्यमी समन्वयक आशीष कोनगाड़ी, प्रखंड उद्यमी समन्वयक लक्ष्मण साहू (जलडेगा/बानो), किम्मी कुमारी (सिमडेगा), ऋतु रानी (कोलेबिरा), उषा केरकेट्टा (बांसजोर) तथा राजन पॉल बाड़ा (पाकरटांड) शामिल थे। सभी ने इस योजना के लिए जिला प्रशासन और सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया।
त्योहारों से पहले बढ़ा उत्साह
त्योहारों के मौसम में जब मिट्टी के दीयों और बर्तनों की मांग बढ़ जाती है, तब यह इलेक्ट्रिक चाक वितरण कार्यक्रम कुम्हारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। लाभुकों ने बताया कि अब वे अधिक मात्रा में और बेहतर गुणवत्ता वाले दीये, बर्तन व सजावटी सामग्री तैयार कर सकेंगे। इससे न केवल उनकी बिक्री बढ़ेगी बल्कि आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा।
एक लाभुक कुम्हार ने कहा: “पहले लकड़ी के चाक से काम में समय और मेहनत बहुत लगती थी, अब इलेक्ट्रिक चाक से हमारी उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। यह सरकार की ओर से दिवाली से पहले मिला बड़ा तोहफा है।”
स्थानीय उद्योग को मिलेगी मजबूती
झारखंड सरकार की यह पहल केवल कुम्हार समुदाय तक सीमित नहीं रहेगी। इससे प्रेरित होकर अन्य ग्रामीण शिल्पकार भी अपनी कला को तकनीक के माध्यम से आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। इस योजना के तहत सरकार का लक्ष्य है कि हर जिले में पारंपरिक कला को जीवित रखते हुए उसे आधुनिकता के साथ जोड़ा जाए ताकि राज्य के ग्रामीण उद्योगों को नई ऊर्जा मिले।

न्यूज़ देखो: माटी कला से आत्मनिर्भरता की ओर
सिमडेगा में हुआ यह वितरण कार्यक्रम केवल सरकारी औपचारिकता नहीं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता का सशक्त संकेत है। इलेक्ट्रिक चाक से सुसज्जित कुम्हार अब स्थानीय और क्षेत्रीय बाज़ार में अपनी पहचान मजबूत कर सकेंगे। सरकार की यह पहल न केवल परंपरा को संजीवित करती है बल्कि युवाओं को अपने पूर्वजों की कला से जोड़ने का एक सुनहरा अवसर भी देती है।
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बदलाव की माटी से उठेगी नई रोशनी
जब परंपरा और तकनीक का संगम होता है, तो विकास की राह अपने आप खुल जाती है। झारखंड के कुम्हार अब केवल दीये नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की नई कहानी गढ़ रहे हैं। आइए, हम सब मिलकर ऐसे प्रयासों का समर्थन करें। अपनी राय कमेंट में लिखें, इस खबर को साझा करें और माटी कला के इस नवयुग का हिस्सा बनें।