महुआडांड़ में हुआ 11 गरीब जोड़ों का भव्य सामूहिक विवाह, दहेज और धर्मांतरण के खिलाफ प्रेरणादायक पहल

#महुआडांड़ #सामूहिकविवाह – आदिवासी परंपरा की रक्षा और बेटी सम्मान के लिए प्रेरणा परमार्थ आश्रम का अनूठा आयोजन

आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए सजी अनोखी शादी की मंडप

लातेहार जिला अंतर्गत महुआडांड़ प्रखंड के सोहरपाठ गांव में सोमवार को 11 आदिवासी जोड़ों ने एक साथ विवाह के सात फेरे लिए। यह आयोजन प्रेरणा परमार्थ आश्रम द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर बेटियों की दहेज-मुक्त और सम्मानजनक शादी कराना था।

सभी नवविवाहित जोड़े आदिवासी समुदाय से थे और विवाह के बाद उन्हें जीवन यापन के लिए आवश्यक सामग्री जैसे बर्तन, कपड़े, पलंग, बिस्तर आदि उपहारस्वरूप प्रदान किए गए।

दहेज प्रथा और धर्मांतरण के खिलाफ सामाजिक संदेश

सामूहिक विवाह समिति के सक्रिय सदस्य रंजीत सिंह ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में लगातार धर्मांतरण के मामले बढ़ रहे हैं, जो आदिवासी संस्कृति और परंपरा के लिए खतरा है। उन्होंने कहा: “हमारा उद्देश्य है कि ऐसी पहल से समाज में सांस्कृतिक चेतना बढ़े, दहेज की कुप्रथा खत्म हो और कोई बेटी गरीबी के कारण विवाह से वंचित न रहे।”

उन्होंने आगे कहा कि समाज को दंपत्तियों को सुसंस्कृत जीवन जीने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि विवाह का अर्थ सिर्फ बंधन नहीं बल्कि समर्पण और आदर बन सके।

प्रेरणा परमार्थ आश्रम की सामाजिक जिम्मेदारी

वरिष्ठ परमार्थी प्रकाश सिंह ने बताया कि आश्रम की ओर से हर साल इस तरह के आयोजनों के माध्यम से जरूरतमंद बेटियों का विवाह कराया जाएगा। उन्होंने कहा: “यह आश्रम का संकल्प है कि पैसे की कमी अब किसी भी बेटी की शादी में बाधा नहीं बनेगी।”

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रेरणा परमार्थ आश्रम के सदस्यों — रंजीत सिंह, रंधीर सिंह, धीरज कुमार सिंह, कृपा शंकर सिंह, मनोज कुमार सिंह, मिस्टर सिंह, अजीत दीक्षित, पप्पू सिंह, धर्मेंद्र चौधरी, रामप्रवेश सिंह — ने अहम भूमिका निभाई।

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की रही उपस्थिति

सामाजिक समरसता और आदिवासी संस्कृति के इस पुनीत आयोजन में महुआडांड़ के जिला परिषद सदस्य इस्तेला नगेसिया, वनवासी कल्याण केंद्र के जिलाध्यक्ष अजय उरांव, सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने सक्रिय भागीदारी निभाई। कार्यक्रम में सभी मेहमानों और ग्रामीणों के लिए भोजन की भी विशेष व्यवस्था की गई थी, जिससे आयोजन सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बन गया।

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