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तमाड़ में पेसा कानून और आदिवासी जमीन सुरक्षा पर महा बैठक सम्पन्न

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#तमाड़ #पेसा_कानून : भूमि सुरक्षा, ग्रामसभा अधिकार और रैयती जमीन संरक्षण को लेकर आदिवासी प्रतिनिधियों की बड़ी बैठक में गूंजे मजबूत क्रियान्वयन के स्वर
  • तमाड़, रांची के पुराने बाजार टांड़ में पेसा कानून और आदिवासी जमीन सुरक्षा पर महा बैठक आयोजित हुई।
  • कई जिलों से आए सैकड़ों आदिवासी प्रतिनिधियों और बुद्धिजीवियों ने इसमें भाग लिया।
  • सिमडेगा प्रतिनिधिमंडल से प्रदीप टोप्पो, पंकज टोप्पो, दीपक लकड़ा, किशोर मांझी और दीप्ति लकड़ा उपस्थित रहे।
  • वक्ताओं ने ग्रामसभा अधिकार, रैयती जमीन संरक्षण, और जमीन लूट रोकने के मुद्दों पर जोर दिया।
  • बैठक में पेसा कानून के सख्त और ईमानदार क्रियान्वयन की मांग प्रमुख रूप से उठी।

तमाड़ के पुराने बाजार टांड़ में शनिवार को पेसा कानून, आदिवासी स्वशासन, रैयती जमीन सुरक्षा और कथित जमीन लूट के मुद्दों को केंद्र में रखते हुए एक बड़ी महा बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में विभिन्न जिलों से भारी संख्या में आदिवासी जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और युवा शामिल हुए। कार्यक्रम का उद्देश्य समुदाय के सामने मौजूद भूमि-संबंधी चुनौतियों और पेसा कानून लागू न होने की चिंताओं को सार्वजनिक रूप से उठाना था। सिमडेगा से पहुंचे प्रतिनिधियों ने भी अपने अनुभव और जमीनी समस्याओं को साझा किया।

विभिन्न जिलों से भारी उपस्थिति

महा बैठक में झारखंड के कई जिलों से आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग पहुंचे। भीड़ में युवाओं से लेकर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं तक की मजबूत भागीदारी देखने को मिली। इससे बैठक की गंभीरता और समुदाय की चिंता साफ झलकती रही।
सिमडेगा जिला से प्रदीप टोप्पो, पंकज टोप्पो, दीपक लकड़ा, किशोर मांझी और दीप्ति लकड़ा ने विशेष रूप से हिस्सा लिया और अपने सुझाव रखे।

पेसा कानून के सही क्रियान्वयन की मांग

बैठक में वक्ताओं ने जोर दिया कि पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासी स्वशासन को मजबूत करना है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में लापरवाही और राजनीतिक व प्रशासनिक उदासीनता के कारण भूमि संकट गहराता जा रहा है।

वक्ताओं ने कहा कि ग्रामसभा को पेसा कानून में सर्वोच्च अधिकार दिया गया है, लेकिन व्यवहारिक रूप में ग्रामसभा की अनदेखी सबसे बड़ी समस्या है।

एक वक्ता ने कहा: “पेसा कानून की मूल भावना तभी साकार होगी जब ग्रामसभा को निर्णय लेने की पूरी आज़ादी और सम्मान दिया जाएगा।”

भूमि हस्तांतरण और जमीन लूट पर गंभीर चिंता

बैठक के दौरान कथित भूमाफियाओं, बाहरी तत्वों और भ्रष्ट तंत्र पर भी अनेक प्रतिनिधियों ने चिंता व्यक्त की।
मुख्य मांगें थीं—

  • ग्रामसभा की अनुमति के बिना किसी भी प्रकार का भूमि हस्तांतरण अवैध घोषित किया जाए।
  • जमीन लूट में शामिल दलालों, भूमाफियाओं और संबंधित अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई हो।
  • आदिवासी समुदाय के पारंपरिक अधिकारों की पुनर्स्थापना सुनिश्चित की जाए।

प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि यदि प्रशासन और सरकार समय रहते इन मुद्दों पर सक्रिय नहीं होते, तो आने वाले वर्षों में आदिवासी जमीन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

आदिवासी स्वशासन की मजबूती पर बल

सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि पेसा कानून केवल एक कानून नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान, स्वायत्तता और सांस्कृतिक अधिकारों का प्रतीक है।
उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की कि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामसभा को फैसला लेने का वास्तविक अधिकार मिले, ताकि संसाधनों के उपयोग और जमीन से जुड़े मसलों पर समुदाय स्वयं निर्णय ले सके।

एक प्रतिनिधि ने कहा: “ग्रामसभा ही असली सरकार है—इसे मजबूत करना हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी भी है।”

जन-जागरण अभियान का संकल्प

बैठक के समापन पर सभी उपस्थित प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि पेसा कानून की रक्षा, आदिवासी रैयती जमीन की सुरक्षा और ग्रामसभा की शक्तियों के संरक्षण के लिए राज्यव्यापी जन-जागरण अभियान चलाया जाएगा।
जरूरत पड़ने पर व्यापक जन-आंदोलन की रणनीति भी बनाई जाएगी।

न्यूज़ देखो: आदिवासी स्वशासन की सुरक्षा का बड़ा संदेश

तमाड़ की यह बैठक बताती है कि आदिवासी समुदाय अपनी जमीन, अधिकार और पहचान को लेकर जागरूक और एकजुट है।
सरकार और प्रशासन के लिए यह एक महत्वपूर्ण संदेश है कि पेसा कानून का प्रभावी क्रियान्वयन अब समय की मांग है।
भूमि सुरक्षा और ग्रामसभा को अधिकार देना ही वास्तविक विकेंद्रीकरण और न्याय का मार्ग है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अधिकारों की रक्षा तभी जब आवाजें उठें

आदिवासी जमीन, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि समुदाय की एकता और जागरूकता से संभव है।
हर आवाज महत्वपूर्ण है—हर पहल बदलाव लाती है।
अपने हक की रक्षा के लिए संगठित रहना ही समाज की सबसे बड़ी शक्ति है।
आप भी अपने विचार साझा करें, इस खबर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं और जन-जागरण की इस प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाएं।
जुड़ें, जागें और अपनी जमीन–अपने अधिकारों के संरक्षक बनें।

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Birendra Tiwari

सिमडेगा

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