
#सिमडेगा #अधिकार_संघर्ष : आदिवासी छात्र संघ की केंद्रीय समिति की बैठक में भूमि-अधिकार, शिक्षा, रोजगार और सांस्कृतिक अस्मिता पर निर्णायक लड़ाई का संकल्प लिया गया।
- आदिवासी छात्र संघ की महत्वपूर्ण जिला बैठक विकास केंद्र भवन, समटोली में संपन्न हुई।
- अतिथियों को अमरूद का पौधा देकर सम्मानित किया गया।
- 11 अप्रैल 2026 को रांची में परिषद भवन से सचिवालय तक विशाल अधिकार रैली निकालने की घोषणा।
- सीएनटी-एसपीटी कानून के उल्लंघन, वनाधिकार, पेसा लागू, रोजगार और शिक्षा सुधार पर कड़े प्रस्ताव पारित।
- सुरेश टोप्पो सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और पदाधिकारियों की सहभागिता।
- नेताओं का एक स्वर — “धरती हमारी, हक़ भी हमारा — संघर्ष अब निर्णायक होगा।”
सिमडेगा में रविवार, 07 दिसंबर 2025 को आदिवासी छात्र संघ केंद्रीय समिति की ऐतिहासिक बैठक बड़े उत्साह और संकल्प के साथ संपन्न हुई। आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों से लेकर शिक्षा, रोजगार, विस्थापन और सांस्कृतिक अस्मिता जैसे मूल मुद्दों पर गहन चर्चा की गई। नेताओं ने साफ कहा कि झारखंड में कई मूल कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा, जिससे संसाधनों पर कब्ज़े की नीतियाँ तेज़ हुई हैं। इसी कारण 11 अप्रैल 2026 को रांची में विशाल अधिकार रैली निकालने का निर्णय लिया गया, जिसमें झारखंड सहित पड़ोसी राज्यों के युवा भारी संख्या में जुटेंगे। बैठक में नए संघर्ष कार्यक्रम, नीतिगत चेतावनियाँ और विस्तार से मांगों को अंतिम स्वरूप दिया गया।
बैठक का उद्देश्य और प्रमुख मुद्दे
आदिवासी छात्र संघ की यह बैठक झारखंड के मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए बुलाई गई थी। नेताओं ने कहा कि शिक्षा में भेदभाव, स्थानीय युवाओं के अधिकारों की अनदेखी, विस्थापन, वनाधिकार का लागू न होना, और सीएनटी-एसपीटी उल्लंघन जैसी समस्याएँ लगातार बढ़ रही हैं।
नेताओं के प्रमुख बयान
बैठक के दौरान कई युवा नेताओं और पदाधिकारियों ने विस्तृत विचार रखे और निर्णायक संघर्ष की घोषणा की।
डॉ. सुशील कुमार मिंज ने कहा: “आदिवासी बोझ नहीं, देश की रीढ़ हैं। विकास तभी स्वीकार्य जब उसमें हमारे अधिकार सुरक्षित हों। हमारी संस्कृति प्रकृति की रक्षक है और इसे कमज़ोर दिखाने की मानसिकता अब समाप्त करनी होगी।”
आलोक बागे, केंद्रीय नेता ने कहा: “वनाधिकार कानून ज़मीन पर लागू नहीं, पेसा कागज़ों में कैद है। रोजगार में स्थानीय युवाओं को हक़ नहीं। अब यह लड़ाई संसद से सड़क तक साथ-साथ चलेगी।”
प्रदीप टोप्पो, छात्र नेता ने कहा: “जंगल-जल-जमीन से ही हमारी पहचान है। हमें बेघर और बेरोज़गार करने वाली नीतियों के विरुद्ध अब कार्रवाई होगी — सिर्फ़ नारे नहीं।”
अनमोल तिर्की, जिला महासचिव ने कहा: “अस्तित्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युवा अब निर्णायक भूमिका में हैं। 11 अप्रैल को पूरी दुनिया झारखंड की आदिवासी युवा शक्ति को देखेगी।”
नेताओं ने जोर दिया कि अब सिर्फ़ प्रतीक्षा करने का समय खत्म हो चुका है। यदि अधिकारों का हनन जारी रहा तो आंदोलन राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक तेज़ किया जाएगा।
11 अप्रैल 2026 को रांची में विशाल अधिकार रैली
बैठक में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय रांची में परिषद भवन से सचिवालय तक अधिकार रैली निकालने का रहा।
इस रैली में झारखंड के अलावा ओडिशा, छत्तीसगढ़, बंगाल और बिहार से भी आदिवासी छात्र-युवा बड़ी संख्या में शामिल होंगे।
नेताओं ने साफ कहा कि—
“अगर हमारी आवाज़ दबाई गई, तो राजभवन से लेकर दिल्ली तक युवा शक्ति का गर्जन गूंजेगा।”
विस्तारित प्रमुख मांगें
### 1. शिक्षा सुधार और छात्र हित
- कॉलेज और विश्वविद्यालयों में सीट बढ़ोतरी की मांग।
- छात्रावासों में सुरक्षा, भोजन और सुविधाओं के मानक तय किए जाएँ।
- जनजातीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित हो।
### 2. स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता आधारित रोजगार
- सरकारी व निजी क्षेत्र में स्थानीय कोटा लागू किया जाए।
- कॉरपोरेट और ठेका कंपनियों द्वारा शोषण रोकने के लिए कड़ी निगरानी।
- क्षेत्रीय परियोजनाओं में स्थानीय युवाओं को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।
### 3. विस्थापन के नाम पर जमीन लूट बंद हो
- किसी भी अधिग्रहण से पहले ग्रामसभा की सहमति अनिवार्य की जाए।
- पारंपरिक समुदायों की जमीन की कानूनी सुरक्षा स्पष्ट रूप से लागू हो।
- औद्योगिक परियोजनाओं के नाम पर अधूरी प्रक्रियाओं को रोका जाए।
### 4. वनाधिकार और पेसा कानून का जमीनी क्रियान्वयन
- पेसा को ग्रामसभा के अधिकारों के साथ लागू किया जाए।
- वन भूमियों पर समुदायों के परंपरागत अधिकार बहाल हों।
### 5. भाषा एवं संस्कृति की सुरक्षा
- कुड़ुक, खड़िया, हो, मुंडारी सहित सभी जनजातीय भाषाओं को शिक्षा व्यवस्था में प्रमुख स्थान मिले।
- सांस्कृतिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग और संरक्षण मिले।
सीएनटी-एसपीटी कानून का उल्लंघन: बड़ी चिंता
बैठक में नेताओं ने सर्वसम्मति से कहा कि सीएनटी और एसपीटी कानून आदिवासी पहचान, परंपरा और जमीन की सुरक्षा की ढाल हैं।
लेकिन इन कानूनों को दरकिनार करते हुए जमीन कब्ज़ा, गलत रजिस्ट्रेशन और नई परियोजनाओं के दबाव जैसे मामलों में तेजी आई है।
संगठन का स्पष्ट संदेश:
“जमीन लूट के किसी भी प्रयास को बंद नहीं किया गया तो यह संघर्ष और व्यापक होगा।”
बड़ी संख्या में नेताओं एवं छात्रों की उपस्थिति
बैठक में उपाध्यक्ष सुरेश टोप्पो सहित कई प्रमुख पदाधिकारी मौजूद रहे।
उपस्थित प्रमुख सदस्यों में शामिल थे:
सतीश भगत, बेलबस कुजूर, नील जस्टिन बेक, अगुस्टीना सोरेंग, जॉनसन खालखो, आनंद सोरेंग, एलेक्स जॉनसन केरकेट्टा, पंकज टोप्पो, अनुपम कुजूर, अजय सुरीन, हेमंत बाड़ा, फिलिक्स मिंज, अंजनी कुमारी, रीमा तिर्की, सरिता लकड़ा, नीतू समद, दीपक लकड़ा, सुनील मिंज, शिशिर टोप्पो, गिलबर्ट टेटे सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ शामिल रहे।
कार्यक्रम के अंत में रवि प्रधान ने सभी का आभार व्यक्त किया और अधिकार रैली को ऐतिहासिक बनाने का संकल्प दोहराया।
न्यूज़ देखो: सिमडेगा की बैठक से उभरता संघर्ष का नया स्वर
यह बैठक साफ बताती है कि आदिवासी समाज अब अधिकारों की सुरक्षा को लेकर शांत बैठने वाला नहीं है। शिक्षा, रोजगार और भूमि संरक्षण जैसे मुद्दों पर गहरी नाराजगी है और अब आंदोलन सरजमीं से राजधानी तक फैलने वाला है। सत्ता और प्रशासन के लिए यह चेतावनी भी है कि समय रहते कदम न उठाए गए तो युवा शक्ति का उभार व्यापक प्रभाव डाल सकता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अधिकार तभी सुरक्षित जब समाज जागृत हो
सिमडेगा की यह ऐतिहासिक बैठक बताती है कि जब युवा आगे बढ़ते हैं, तो बदलाव अनिवार्य हो जाता है। जमीन, संस्कृति और पहचान के अधिकार कोई दान नहीं, बल्कि संविधान प्रदत्त हक़ हैं, जिनकी रक्षा हर पीढ़ी को करनी होती है। यही जागरूकता आने वाले दिनों में समाज को मजबूत करेगी।
आइए इस संघर्ष को सकारात्मक दिशा देते हुए अपने क्षेत्र, गांव और समुदाय में जागरूकता फैलाएँ।
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