
#मनातू #रसोईया_संघ : पांकी में हुई बैठक में निर्णय, रसोईया बहनों ने आवाज उठाई—सरकार से समान वेतन और स्थायीकरण की मांग
- बुनियादी विद्यालय पांकी में झारखंड राज्य विद्यालय रसोईया संघ की बैठक संपन्न हुई।
- बैठक की अध्यक्षता पांकी प्रखंड सचिव रेखा देवी ने की।
- जिला अध्यक्ष अनीता देवी रहीं मुख्य अतिथि, आंदोलन की रूपरेखा पर चर्चा हुई।
- 15 नवंबर को मनातू में रसोईया बहनों का विशाल जुलूस निकलेगा।
- बिरसा मुंडा की जयंती पर रेलवे स्टेशन चौक पर माल्यार्पण कार्यक्रम होगा।
- रसोईया बहनों ने सरकार से न्यायपूर्ण वेतन और स्थायित्व की मांग दोहराई।
मनातू प्रखंड के बुनियादी विद्यालय पांकी में झारखंड राज्य विद्यालय रसोईया संघ की बैठक आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता पांकी प्रखंड सचिव रेखा देवी ने की। बैठक में जिला अध्यक्ष अनीता देवी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। बैठक का उद्देश्य राज्य भर में कार्यरत रसोईया बहनों की समस्याओं, वेतन असमानता और स्थायीकरण की मांग को लेकर आगामी आंदोलन की रूपरेखा तय करना था।
रसोईया बहनों की मांगें और सरकार से सवाल
बैठक के दौरान जिला अध्यक्ष अनीता देवी ने राज्य सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक ओर मुख्यमंत्री मईया समान योजना के तहत महिलाओं को हर महीने पच्चीस सौ रुपये दिए जा रहे हैं, जो सराहनीय है, लेकिन दूसरी ओर विद्यालयों में सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक कार्य करने वाली रसोईया बहनों को मात्र तीन हजार रुपये मासिक पर काम करना पड़ रहा है। यह स्थिति महिलाओं के सम्मान और समानता की भावना के विपरीत है।
अनीता देवी ने कहा: “जब सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है, तो रसोईया बहनों के साथ इस तरह का वेतन भेदभाव समझ से परे है। हम वर्षों से नियमितीकरण और मानदेय वृद्धि की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार मौन है।”
उन्होंने कहा कि रसोईया बहनें दिनभर विद्यालय के बच्चों के लिए भोजन तैयार करती हैं, फिर भी उन्हें न तो स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिला है, न ही उनका वेतन उनकी मेहनत के अनुरूप है।
15 नवंबर को मनातू से निकलेगा रसोईया संघ का जुलूस
बैठक में निर्णय लिया गया कि 15 नवंबर, झारखंड स्थापना दिवस और भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर एक बड़ा जुलूस निकाला जाएगा। यह जुलूस शिवाजी मैदान से शुरू होकर छह मुहान चौक से होते हुए रेलवे स्टेशन चौक तक पहुंचेगा। वहां भगवान बिरसा मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का समापन किया जाएगा।
अनीता देवी ने बताया कि इस जुलूस के माध्यम से सरकार को यह संदेश दिया जाएगा कि रसोईया बहनों की मेहनत का भी उचित सम्मान हो। उन्होंने कहा कि अब यह आंदोलन सिर्फ वेतन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह राज्यभर में महिला श्रमिकों के अधिकार की आवाज बनेगा।
रेखा देवी ने कहा: “रसोईया बहनों ने विद्यालयों में बच्चों को पोषक भोजन देने में अपना योगदान दिया है, अब सरकार की बारी है कि वह हमारी मेहनत को पहचाने और हमें स्थायी करे।”
महिला सशक्तिकरण का वास्तविक अर्थ
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि झारखंड सरकार महिला सशक्तिकरण के कई दावे करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाली महिलाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। रसोईया बहनों का कार्य न केवल विद्यालयों के संचालन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं के आत्मनिर्भरता अभियान का भी प्रतीक है।
अनीता देवी ने कहा कि यदि सरकार सच में महिला सम्मान और समानता में विश्वास करती है, तो उसे रसोईया बहनों को स्थायी कर्मी का दर्जा देना चाहिए और मानदेय कम से कम दस हजार रुपये मासिक किया जाना चाहिए।
बैठक में पांकी, मनातू और आस-पास के प्रखंडों से आई दर्जनों रसोईया बहनों ने हिस्सा लिया। सभी ने अपने अनुभव साझा किए और एकजुट होकर आंदोलन को सफल बनाने का संकल्प लिया।
प्रशासन को सौंपा जाएगा ज्ञापन
बैठक में यह भी तय हुआ कि जुलूस के बाद उपायुक्त पलामू और जिला शिक्षा पदाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा जाएगा, जिसमें रसोईया संघ की प्रमुख मांगें शामिल होंगी।
- रसोईया बहनों को स्थायी कर्मी का दर्जा मिले।
- वेतनमान बढ़ाकर दस हजार रुपये प्रतिमाह किया जाए।
- सेवा अवधि के अनुसार पेंशन और अन्य लाभ लागू हों।
बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ कि अगर सरकार ने इन मांगों पर विचार नहीं किया, तो रसोईया संघ आगामी सत्र में राज्यव्यापी धरना की तैयारी करेगा।
न्यूज़ देखो: मेहनतकश रसोईया बहनों की आवाज को सरकार कब सुनेगी
झारखंड के विद्यालयों में काम करने वाली रसोईया बहनों की स्थिति महिला सशक्तिकरण के वास्तविक मापदंडों पर सवाल उठाती है। जब एक ओर सरकार समानता की बातें करती है, तो दूसरी ओर इन्हीं महिलाओं को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा। राज्य के लिए यह समय है कि इनकी आवाज सुनी जाए और नीतिगत सुधार किए जाएं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सम्मान के हक की लड़ाई में एकजुट हो रही हैं महिलाएं
यह आंदोलन केवल वेतन की मांग नहीं, बल्कि सम्मान और समान अवसर की लड़ाई है। जब समाज की आधी आबादी अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरती है, तो यह बदलाव की शुरुआत होती है। रसोईया बहनों का संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।
अब समय है कि हम सब मिलकर उनकी आवाज को और बुलंद करें।
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