
#डुमरी #विश्वआदिवासीदिवस : आदिवासी धरोहर की झलक के साथ मनाया गया सामूहिक उत्सव
- पारंपरिक पूजा-पाठ से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
- ढोल, नगाड़ा, मांदर, बांसुरी की गूंज से गूंजा पूरा गांव।
- बुजुर्गों के संदेश में सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का आह्वान।
- महिलाओं व पुरुषों ने पारंपरिक वेशभूषा में किया सामूहिक नृत्य।
- सैकड़ों लोगों की भागीदारी से कार्यक्रम बना सामूहिक पर्व।
सुबह से ही डुमरी का माहौल उत्सवमय हो गया। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी समाज के लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को संजोए हुए एकत्र हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ समाज के पुजार बैगा बीरबल और महिला अगुवा सुखमनी देवी द्वारा पारंपरिक पूजा-पाठ से हुआ। इसमें अर्पण, दीप प्रज्ज्वलन और भजन-गीतों के जरिए समाज की खुशहाली, एकता और स्वास्थ्य की कामना की गई। सुखमनी देवी की अगुवाई में सामूहिक प्रार्थना हुई, जिसमें उपस्थित सभी ने हाथ जोड़कर एक स्वर में ईश्वर से आशीर्वाद मांगा।
सांस्कृतिक धरोहर और एकता का संदेश
मंच से बुजुर्ग अकलू भगत और जगरनाथ भगत ने समाज को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व आदिवासी दिवस हमें अपने पूर्वजों के संघर्षों की याद दिलाने के साथ-साथ हमारी भाषा, रीति-रिवाज और पारंपरिक ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प भी दिलाता है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अपनी मातृभाषा और पहचान को जीवित रखें, क्योंकि यही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।
उत्साह से भरा नृत्य-गान
कार्यक्रम में पारंपरिक वाद्ययंत्रों — ढोल, नगाड़ा, मांदर, बांसुरी — की गूंज ने पूरे माहौल को जीवंत कर दिया। महिलाएं पारंपरिक आभूषणों और रंगीन पोशाक में सजी-धजी थिरकती रहीं, वहीं पुरुष रंगीन पगड़ी और पारंपरिक परिधान में नाचते नजर आए। नृत्य में सभी पीढ़ियां एक साथ शामिल हुईं, जो आदिवासी समाज की एकजुटता और उल्लासपूर्ण जीवन दृष्टि को दर्शाता है।
सामूहिक भागीदारी
इस मौके पर बीरेंद्र भगत, सुरेंद्र उरांव, शंकर भगत, प्रीतेश भगत, बेला देवी, अनुराधा देवी, दिलकुमारी देवी, सबिता कुमारी, एतवारी देवी, सुमति देवी, लौंगी देवी सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे। गांव के हर वर्ग और उम्र के लोगों ने इस आयोजन में भाग लेकर इसे एक सामूहिक पर्व का रूप दे दिया।
विश्व आदिवासी दिवस का महत्व
हर साल 9 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व आदिवासी दिवस 1994 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया भर में आदिवासी समुदायों की संस्कृति, भाषा, अधिकार और जीवन शैली की रक्षा करना है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि पर्यावरण संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विविधता में आदिवासी समाज की अहम भूमिका है।

न्यूज़ देखो: आदिवासी अस्मिता का रंगीन उत्सव
डुमरी में विश्व आदिवासी दिवस का यह आयोजन केवल सांस्कृतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और पहचान के प्रति गहरा सम्मान था। इसने दिखाया कि परंपरा और आधुनिकता के संगम में भी अपनी विरासत को सहेजना संभव है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
संस्कृति ही समाज की पहचान
समाज तभी मजबूत होता है जब वह अपनी परंपरा, संस्कृति और मूल्यों को सहेजकर रखे। ऐसे उत्सव न सिर्फ हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं, बल्कि आपसी एकता और भाईचारे को भी मजबूत करते हैं। अगर आपको यह खबर प्रेरणादायक लगी हो तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें और कमेंट में अपने विचार बताएं।