Garhwa

दलित आदिवासी महिला शिक्षिका के साथ हुई अन्यायपूर्ण कार्रवाई, शिक्षा विभाग की उदासीनता पर अभाविप की चेतावनी

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#गढ़वा #शिक्षाविभागअन्याय : प्राचार्या विद्यानी बखला के खिलाफ मनमानी और छेड़छाड़ के मामले में विभाग का मौन, अभाविप ने न्याय के लिए आंदोलन की चेतावनी दी
  • कांडी स्थित जमा दो उच्च विद्यालय की महिला प्राचार्या विद्यानी बखला अनुसूचित जनजाति से हैं, जिन्हें विद्यालय में ईमानदार और मेहनती कार्यशैली के कारण कई सहयोगी शिक्षकों द्वारा परेशान किया गया।
  • सात अगस्त 2024 को प्राचार्या को एंटी करप्शन ब्यूरो ने पकड़ लिया, जिसे अभाविप ने सुनियोजित साजिश करार दिया।
  • प्राचार्या ने मानवाधिकार आयोग सहित शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष न्याय की गुहार लगाई।
  • जिला शिक्षा पदाधिकारी गढ़वा ने जांच कर अलाउद्दीन और प्रधानाध्यापक आदित्य प्रसाद गुप्ता को दोषी पाया, लेकिन डीईओ ने कोई कार्रवाई नहीं की
  • अभाविप ने कहा कि यदि दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई तो संगठन आंदोलन के लिए बाध्य होगा।
  • यह मामला महिला, दलित और आदिवासी शिक्षकों के खिलाफ जारी भेदभाव और शिक्षा विभाग की उदासीनता का उदाहरण है।

मामला और प्रारंभिक घटनाएँ

कांडी स्थित जमा दो उच्च विद्यालय की प्राचार्या विद्यानी बखला ने अपने पद का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठा से किया। उनकी कार्यशैली से कुछ शिक्षक असंतुष्ट थे, जिन्होंने प्राचार्या के खिलाफ षड्यंत्र रचते हुए उन्हें मानसिक और प्रशासनिक तौर पर परेशान किया।

दिनांक 26 अप्रैल 2024 को प्रोजेक्ट इंपैक्ट की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में प्राचार्या ने उचित प्रस्ताव रखे और अपनी उपस्थिति में पंजी पर हस्ताक्षर किया। इसके बावजूद, अलाउद्दीन और प्रधानाध्यापक आदित्य प्रसाद गुप्ता ने बिना प्राचार्या की उपस्थिति के पंजी में छेड़छाड़ कर दिए, जिससे प्राचार्या के खिलाफ जालसाजी का मामला बन गया।

जब प्राचार्या ने इस छेड़छाड़ के खिलाफ आवाज़ उठाई और न्याय की गुहार लगाई, तब भी शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने मामले को दबाने का प्रयास किया। पत्रांक 1433 दिनांक 23.08.2025 के अनुसार शिकायत की पुष्टि के बावजूद दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

प्रिंस कुमार सिंह, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कहा: “एक अबला दलित आदिवासी महिला लगातार न्याय की गुहार लगाती रही है, लेकिन शिक्षा विभाग की उदासीनता और संरक्षण ने उसे न्याय से दूर रखा। हम इसे समाज और संगठन के स्तर पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

जांच और निष्कर्ष

जिला शिक्षा पदाधिकारी गढ़वा ने मामले की पूरी जांच की। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि प्राचार्या के प्रस्तावों और पंजी पर छेड़छाड़ के माध्यम से अलाउद्दीन और आदित्य प्रसाद गुप्ता ने जालसाजी की।

प्रिंस कुमार सिंह ने आगे कहा: “जांच में दोष सिद्ध हो चुका है, बावजूद इसके डीईओ ने दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की। यह शिक्षा व्यवस्था में गहरी लापरवाही और जातिगत, लैंगिक भेदभाव को दर्शाता है।”

विद्यानी बखला ने मामले को मानवाधिकार आयोग में भी प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, न्याय की मांग करते हुए भी शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की उदासीनता ने उन्हें मानसिक और सामाजिक दबाव में रखा।

अभाविप की चेतावनी और संगठन की प्रतिक्रिया

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने स्पष्ट किया कि दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई तो संगठन आंदोलन के लिए बाध्य होगा। संगठन ने चेतावनी दी कि यह केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गंभीर कमी और संवैधानिक उत्तरदायित्वों की अनदेखी का प्रतीक है।

संगठन ने कहा कि इस तरह के मामले न केवल महिला शिक्षकों, बल्कि पूरे समाज के लिए चिंताजनक हैं। यदि शिक्षा विभाग सक्रिय नहीं हुआ, तो यह नीति और प्रशासन में असमानता की मिसाल बन जाएगा।

सामाजिक और न्यायिक पहलू

यह मामला महिला, दलित और आदिवासी शिक्षकों के अधिकारों, उनके सम्मान और सुरक्षित कार्य वातावरण की अहमियत को उजागर करता है। शिक्षा विभाग की उदासीनता यह दर्शाती है कि संवैधानिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने में कमी है।

प्रिंस कुमार सिंह ने मीडिया से कहा: “हमारा संगठन और समाज दोषियों को बचाने की नीति को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह आंदोलन केवल न्याय की लड़ाई नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और समानता की लड़ाई भी है।”

विद्यानी बखला के संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा में केवल पद और अधिकार ही नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी और न्याय सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह मामला न केवल शिक्षा विभाग की घोर उदासीनता का उदाहरण है, बल्कि सामाजिक न्याय और अधिकारों की रक्षा के लिए संगठनात्मक दबाव की आवश्यकता को भी दर्शाता है।

न्यूज़ देखो: महिला शिक्षिका के खिलाफ अन्याय और शिक्षा विभाग की उदासीनता

यह मामला शिक्षा विभाग की लापरवाही और दलित, आदिवासी महिला शिक्षकों के साथ हो रहे भेदभाव को उजागर करता है। अभाविप ने चेतावनी जारी की है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन अवश्य होगा। यह कहानी शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, न्याय और समानता की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
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