Giridih

अफ्रीका के कैमरून से झारखंड के सभी 19 मजदूर सकुशल लौटे, परिवारों में खुशी की लहर

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#गिरिडीह #प्रवासीमजदूर : चार महीने से फंसे मजदूरों की वापसी से गांवों में जश्न का माहौल
  • हजारीबाग और बोकारो के सभी 19 मजदूर सकुशल वतन लौटे।
  • फूलचंद मुर्मू और बब्लू सोरेन की भी वापसी पर परिवारों में खुशी।
  • कंपनी ने मजदूरों को महीनों तक वेतन नहीं दिया
  • सोशल मीडिया के जरिए मदद की गुहार लगाई गई थी।
  • सरकार, मीडिया और समाजसेवी सिकंदर अली की पहल से संभव हुई वापसी।

गिरिडीह जिले में आज राहत और खुशी का माहौल है। अफ्रीका के कैमरून में लंबे समय से फंसे झारखंड के 19 मजदूर आखिरकार सकुशल अपने घर लौट आए हैं। हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के नरकी निवासी फूलचंद मुर्मू और बोकारो जिले के नावाडीह थाना क्षेत्र के पोखरिया निवासी बब्लू सोरेन के लौटने के साथ ही सभी मजदूर अब सुरक्षित घर पहुंच चुके हैं।

परिजनों के चेहरों पर लौटी मुस्कान

मजदूरों की वापसी के बाद गांवों में जश्न और उल्लास का माहौल देखा गया। परिवारजन खुशी से भावुक हो गए और सभी ने सरकार, मीडिया और लगातार प्रयासरत रहे समाजसेवी सिकंदर अली का आभार जताया। परिजनों ने कहा कि इस कठिन दौर में प्रशासन और समाज की मदद से ही यह संभव हो सका है।

कैमरून में मजदूरों की दुश्वारियां

ज्ञात हो कि हजारीबाग और बोकारो के ये मजदूर रोजगार की तलाश में कैमरून गए थे। वहां वे ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड कंपनी में कार्यरत थे। लेकिन कंपनी ने 11 मजदूरों को चार महीने और 8 मजदूरों को दो महीने से वेतन नहीं दिया। इस कारण मजदूर खाने-पीने तक के लिए तरसने लगे। मजबूरी में उन्होंने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर वतन वापसी की गुहार लगाई थी।

सरकार और समाज की तत्परता

मजदूरों की गुहार सुनकर सरकार ने तुरंत पहल की और पूरी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई। इसके साथ ही मीडिया और समाजसेवी सिकंदर अली के प्रयास भी निर्णायक साबित हुए। अब सभी मजदूर सकुशल घर लौट चुके हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में राहत और संतोष की लहर दौड़ गई है।

पहले लौट चुके थे 17 मजदूर

इससे पहले 17 मजदूर अपने वतन लौट चुके थे। इनमें बोकारो जिले के प्रेम टुडू, सिबोन टुडू, सोमर बेसरा, पुराण टुडू, रामजी हांसदा, विरवा हांसदा, महेंद्र हांसदा और हजारीबाग जिले के आघनू सोरेन, अशोक सोरेन, चेतलाल सोरेन, महेश मरांडी, रामजी मरांडी, लालचंद मुर्मू, बुधन मुर्मू, जिबलाल मांझी, छोटन बासके और राजेंद्र किस्कू शामिल थे। अब शेष दो मजदूरों के लौटने के साथ यह संघर्षपूर्ण कहानी आखिरकार सफल और सुखद अंत तक पहुंच गई है।

न्यूज़ देखो: प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और सबक

यह घटना दिखाती है कि विदेश में रोजगार की तलाश करने वाले मजदूर किस तरह शोषण और कठिनाइयों का सामना करते हैं। सरकार और समाज की तत्परता से यह संकट टल गया, लेकिन इससे यह सबक भी मिलता है कि मजदूरों की सुरक्षा और अधिकारों पर सख्त निगरानी जरूरी है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

मजबूरी नहीं, सुरक्षित अवसर बने प्राथमिकता

प्रवासी मजदूरों की वापसी राहत की खबर है, लेकिन यह भी समय है कि हम सब मिलकर सोचें कि राज्य के मजदूरों को मजबूरी में पलायन क्यों करना पड़ता है। अब जरूरत है कि झारखंड में ही रोजगार के अवसर बढ़ें ताकि किसी को अपनी सुरक्षा दांव पर लगाकर विदेश न जाना पड़े। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को शेयर करें ताकि जागरूकता फैले।

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