
#पलामू #धार्मिक_पर्व : 1 नवम्बर को भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह पूरे झारखंड में श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाएगा
- 1 नवम्बर 2025 (शनिवार) को पूरे देश में तुलसी विवाह का पावन पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।
- यह पर्व देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है जब भगवान विष्णु अपने शयन से जागते हैं।
- पलामू सहित पूरे झारखंड में मंदिरों और घरों में तैयारियाँ जोरों पर हैं।
- इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि।
- भक्तजन सुबह से तुलसी माता की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे और शाम को विवाह विधि संपन्न होगी।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला तुलसी विवाह हर साल भक्तों के लिए आध्यात्मिक उल्लास लेकर आता है। इस वर्ष यह पावन अवसर 1 नवम्बर को पड़ रहा है, जो शनिवार का दिन है। झारखंड के पलामू, लातेहार, गढ़वा, रांची और अन्य जिलों में मंदिरों में दीपों की रौशनी और भक्ति के स्वर गूंजने लगे हैं। श्रद्धालु अपने घरों में तुलसी चौरे को सजा रहे हैं और देवउठनी एकादशी की पूजा की तैयारियाँ पूरी कर चुके हैं।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के योगनिद्रा से जागते हैं। इसी दिन तुलसी माता (वृंदा देवी) और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह संपन्न किया जाता है। यह विवाह धर्म, प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह के बाद पुनः सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
आचार्य सुरेन्द्र पांडेय ने बताया: “तुलसी विवाह के साथ ही शुभ मुहूर्तों की पुनः शुरुआत होती है। इस दिन किया गया पूजा-पाठ और दान सौगुना फल देता है।”
भक्तिभाव से सजेंगे मंदिर और आंगन
सुबह से ही भक्तजन तुलसी माता की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे। तुलसी के पौधे को गंगाजल से स्नान कराकर उसे चुनरी, चूड़ी, बिछिया और सिंदूर से सजाया जाएगा। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप को वर के रूप में तैयार किया जाएगा। संध्या समय तुलसी माता के साथ विवाह की विधि पूरी होगी। जयकारों से वातावरण गूंज उठेगा — “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” और “जय तुलसी माता” की गूंज चारों ओर भक्ति का भाव भर देगी। विवाह के बाद प्रसाद वितरण किया जाएगा और कई जगहों पर भजन-कीर्तन व संध्या आरती का आयोजन होगा।
तुलसी विवाह से जुड़े शुभ संकेत
धार्मिक मान्यता है कि तुलसी विवाह के आयोजन से घर में सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है। यह विवाह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक एकता का भी प्रतीक है। तुलसी को हिंदू संस्कृति में माँ के समान माना गया है और इसका हर भाग औषधीय महत्व रखता है। इसलिए तुलसी विवाह का दिन भक्ति के साथ-साथ जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता का भी संदेश देता है।
न्यूज़ देखो: भक्ति और परंपरा का संगम बनेगा तुलसी विवाह
तुलसी विवाह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के उस जीवंत पक्ष को दर्शाता है जहाँ प्रकृति, धर्म और परिवार एक सूत्र में बंधे हैं। इस दिन श्रद्धालु अपनी आस्था को कर्म में बदलते हैं और समाज में भक्ति का माहौल फैलाते हैं।
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आस्था का पर्व, पर्यावरण का संदेश
तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का भी अवसर है। इस पवित्र अवसर पर हम सभी को अपने घरों में तुलसी लगाने और उसकी देखभाल करने का संकल्प लेना चाहिए।
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