
#डुमरी #आदिवासीसमाज : रोहतासगढ़ धार्मिक स्थल की आगामी वर्ष तीर्थ यात्रा की तैयारी पर समाज के प्रतिनिधियों ने बनाई रणनीति
- जगरनाथ भगत की अध्यक्षता में बैठक सम्पन्न।
- रोहतासगढ़ को आदिवासी आस्था और विरासत का प्रमुख केंद्र बताया गया।
- प्रेमप्रकाश भगत ने यात्रा मार्ग, सुरक्षा और व्यवस्था पर चर्चा की।
- नई पीढ़ी को संस्कृति व पहचान से जोड़ने पर जोर।
- संजय उरांव, बीरेंद्र भगत, सुरेन्द्र उरांव ने सहयोग का आश्वासन दिया।
बैठक में आदिवासी समाज की आगामी वर्ष होने वाली रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा की व्यापक तैयारी पर विचार-विमर्श किया गया। अध्यक्षता कर रहे समाजसेवी जगरनाथ भगत ने रोहतासगढ़ के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि यह स्थल केवल प्राचीन दुर्ग नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की आस्था और परंपराओं का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है। पवित्र पहाड़ियों, प्राकृतिक गुफाओं और वन क्षेत्र में मौजूद प्राचीन स्थल आज भी आदिवासी परंपरा का प्रतीक हैं। उन्होंने यह भी बताया कि रोहतासगढ़ की प्राचीन संरचनाएँ, मंदिर, किलेबंदी और शिलालेख इसकी समृद्ध इतिहास और सभ्यता के प्रमाण हैं।
रोहतासगढ़ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
रोहतासगढ़ सदियों से आदिवासी समाज के आध्यात्मिक स्थलों में अग्रणी रहा है। यहाँ की प्राकृतिक संरचना और प्राचीन अवशेष ऐसे प्रमाण देते हैं कि यह क्षेत्र आदिकाल से सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। आदिवासी समाज के कई सामाजिक अनुष्ठान और रीति-रिवाज भी इस स्थल से जुड़े हैं, जिससे यह न केवल धार्मिक स्थल बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक बनता है।
यात्रा तैयारी पर विस्तृत चर्चा
बैठक में उपस्थित समाजसेवी प्रेमप्रकाश भगत ने यात्रा की सफलता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यात्रा मार्ग, सुरक्षा, भोजन-पानी, स्वास्थ्य सुविधाएँ और समूह समन्वय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता बताई। साथ ही यह भी कहा कि तीर्थ यात्रियों को रोहतासगढ़ के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराने के लिए यात्रा के दौरान जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
पहचान और एकता को मजबूत करने की पहल
बैठक में यह भी जोर दिया गया कि यह तीर्थ यात्रा केवल भक्ति का मार्ग नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का माध्यम है। इस यात्रा के जरिए नई पीढ़ी को अपनी विरासत और परंपराओं से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
इस अवसर पर मुखिया संजय उरांव, बीरेंद्र भगत, सुरेन्द्र उरांव ने यात्रा के सफल आयोजन हेतु पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
न्यूज़ देखो: सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए समाज की एकजुटता आवश्यक
रोहतासगढ़ को लेकर आयोजित यह बैठक समाज में बढ़ती सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। तीर्थ यात्रा की तैयारियाँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि समुदाय अपनी विरासत, पहचान और आध्यात्मिक परंपरा को मजबूत करने के लिए सजग है। ऐसी पहलें न केवल संस्कृति को जीवित रखती हैं, बल्कि समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी सुदृढ़ करती हैं।
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अपनी विरासत को जानें और उसे आगे बढ़ाएं
संस्कृति और परंपरा तभी जीवित रहती हैं जब समुदाय मिलकर उन्हें आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाए। रोहतासगढ़ की यात्रा आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का मार्ग दिखाती है।
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