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हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए अनुपम तिवारी की मांग

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#पलामू #राष्ट्रीयखेलदिवस : शिक्षक ने कहा ध्यानचंद का जीवन त्याग और समर्पण की मिसाल
  • 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है ध्यानचंद का जन्मदिवस।
  • हॉकी के महानायक ने भारत को दिलाए कई ओलंपिक पदक
  • 1936 बर्लिन ओलंपिक में हिटलर ने दिया था सेना में सर्वोच्च पद का प्रस्ताव।
  • ध्यानचंद ने प्रस्ताव ठुकराकर कहा था – “मैं केवल अपने देश के लिए खेलता हूँ।”
  • पलामू के शिक्षक अनुपम तिवारी ने भारत रत्न देने की रखी मांग

पलामू। खेल प्रेमियों के दिलों में आज भी ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद का नाम अमर है। उनका जन्मदिवस 29 अगस्त पूरे देश में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यानचंद ने अपने कठिन परिश्रम, अनुशासन और अद्वितीय खेल कौशल से न केवल भारत को कई ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए बल्कि पूरी दुनिया को भारतीय हॉकी की ताकत से भी अवगत कराया।

त्याग और समर्पण की मिसाल

पीएमश्री +2 उच्च विद्यालय, रत्नाग के फिजिकल एजुकेशन टीचर अनुपम तिवारी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद का जीवन हर खिलाड़ी के लिए प्रेरणादायी है। उनका त्याग और समर्पण भारतीय खेल इतिहास में एक सुनहरा अध्याय है।

तिवारी ने 1936 के बर्लिन ओलंपिक का उल्लेख करते हुए कहा कि ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपनी सेना में सर्वोच्च पद की पेशकश की थी। लेकिन ध्यानचंद ने इसे ठुकराते हुए स्पष्ट कहा था कि वे केवल अपने देश के लिए खेलते हैं।

अनुपम तिवारी: “मेजर ध्यानचंद का जीवन त्याग और समर्पण का प्रतीक है। ऐसे महान खिलाड़ी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए।”

भारत रत्न की मांग

तिवारी ने कहा कि ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ी को अगर भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है तो यह न केवल उनकी उपलब्धियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी बल्कि यह देशभर के खिलाड़ियों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। इससे खेल जगत में समर्पण और अनुशासन की भावना और मजबूत होगी तथा नई पीढ़ी को भी मार्गदर्शन मिलेगा।

न्यूज़ देखो: खेल भावना का सर्वोच्च सम्मान

यह मांग केवल एक व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे खेल जगत की भावना है। मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित करना भारतीय खेलों के गौरव को नई ऊँचाई देगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

खेल से जुड़ी प्रेरणा और सम्मान

खेल केवल पदक जीतने का नाम नहीं बल्कि त्याग, अनुशासन और समर्पण की भावना है। मेजर ध्यानचंद की विरासत हमें यही सिखाती है। अब समय है कि हम सब मिलकर खेल और खिलाड़ियों को उचित सम्मान दें। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को दोस्तों के साथ साझा करें ताकि प्रेरणा हर जगह पहुँचे।

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