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दीपावली के करीब आते ही कुम्हारों की गलियों में रौनक, मिट्टी के दीयों की बन रही श्रृंखला

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#बरवाडीह #दीपावली : प्रकाश पर्व के मौके पर पारंपरिक मिट्टी के दीयों की मांग में तेजी, कुम्हार परिवार जुटे आजीविका और त्योहार की तैयारी में
  • बरवाडीह (लातेहार) में दीपावली के करीब कुम्हार परिवारों ने मिट्टी के दीयों के निर्माण में तेज़ी दिखाना शुरू किया।
  • द्वारिक प्रजापति, ईश्वरी प्रजापति, गुना प्रजापति और राम बिलास प्रजापति सहित कई कुम्हार सक्रिय रूप से दीयों का निर्माण कर रहे हैं।
  • बाजार में सस्ते चाइनीज लाईट्स, झालर और मोमबत्तियों की उपलब्धता के बावजूद मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ रही है।
  • कुम्हार परिवारों ने बताया कि दीपावली सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि उनकी आजीविका का सबसे बड़ा अवसर है।
  • इस वर्ष दीपावली पर मांग में तेजी के कारण व्यापार और त्योहार दोनों के बेहतर रहने की संभावना जताई जा रही है।

बरवाडीह में दीपावली के आस-पास कुम्हारों की गलियों में मिट्टी की खुशबू और चाक की आवाज़ गूंजने लगी है। द्वारिक प्रजापति ने बताया कि “दीपावली हमारे लिए केवल त्योहार नहीं है, यह आजीविका का सबसे बड़ा अवसर भी है।” कुम्हार परिवार सुबह से देर शाम तक मिट्टी के दीयों को आकार देते हुए रंग-बिरंगे और आकर्षक ढंग से तैयार कर रहे हैं।

मिट्टी के दीयों की पारंपरिक विशेषता और आकर्षण

मिट्टी के दीयों की खासियत है उनका परंपरागत रूप और दीयों की गर्म चमक, जो दीपावली की रौनक में चार चांद लगाती है। गुना प्रजापति ने बताया कि प्रत्येक दीया हाथ से बनाया जाता है और उसकी गुणवत्ता और रंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कुम्हार यह भी बताते हैं कि पारंपरिक दीयों की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है क्योंकि लोग अब बाजार में फैली कृत्रिम वस्तुओं की बजाय प्राकृतिक और हाथ से बने दीयों को पसंद कर रहे हैं।

आजीविका और स्थानीय व्यापार के लिए महत्व

दीपावली के इस मौसम में कुम्हारों के लिए यह समय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। राम बिलास प्रजापति ने कहा कि “हमारे परिवार की आजीविका सीधे तौर पर दीयों के इस कारोबार से जुड़ी है। जितना अच्छा त्योहार, उतना अच्छा व्यवसाय।” हालांकि बाजार में सस्ते विकल्पों की उपलब्धता के बावजूद पारंपरिक दीयों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे कुम्हारों का उत्साह और बढ़ गया है।

लोक संस्कृति और त्योहार की परंपरा

मिट्टी के दीयों की परंपरा दशकों पुरानी है और यह न केवल घरों को रोशन करती है, बल्कि संस्कृति और परंपरा का प्रतीक भी है। कुम्हार इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि उनके बनाये दीये हर घर में प्रकाश और उमंग फैलाते हैं।

न्यूज़ देखो: पारंपरिक दीयों में टिकाऊ आजीविका और सांस्कृतिक पहचान

बरवाडीह के कुम्हार इस दीपावली के मौसम में न केवल अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने में जुटे हैं, बल्कि लोगों को सच्ची और प्राकृतिक रोशनी का अनुभव भी दे रहे हैं। यह कहानी स्थानीय संस्कृति, परंपरा और व्यापार के संतुलन को उजागर करती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

दीपावली की रौनक और सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखें

परंपरागत दीयों का महत्व सिर्फ रोशनी में नहीं, बल्कि हमारे समाज और संस्कृति में भी है। इस दीपावली अपने घरों में मिट्टी के दीयों का उपयोग करें और कुम्हारों के उत्साह और मेहनत का समर्थन करें। इस खबर को साझा करें, अपने अनुभव साझा करें और अपने आस-पास दीपावली की पारंपरिक रौनक फैलाने में योगदान दें।

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