
#डंडई #महापरिनिर्वाण_दिवस : भावुक श्रद्धांजलि के साथ डॉ. अंबेडकर की 68वीं पुण्यतिथि पर एकता, जागरूकता और शिक्षा का संकल्प
- डंडई गाँव के अंबेडकर चौक पर डॉ. भीमराव अंबेडकर की 68वीं पुण्यतिथि धूमधाम से मनाई गई।
- कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पु अ नि राधा मोहन यादव रहे, जिन्होंने व्यवस्था संभाली।
- बड़ी संख्या में ग्रामीणों और गणमान्यों ने माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।
- वक्ताओं ने एकता, शिक्षा, और सामाजिक सौहार्द को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।
- कई वक्ताओं ने कहा—“बाबा साहेब नहीं होते, तो हम मंच पर खड़े होकर बोल भी नहीं पाते।”
6 दिसंबर 2025 को डंडई थाना क्षेत्र स्थित डंडई गाँव में महापरिनिर्वाण दिवस पर लोगों में अद्भुत उत्साह और श्रद्धा देखने को मिली। भारतीय संविधान के निर्माता, भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की 68वीं पुण्यतिथि के अवसर पर अंबेडकर चौक पर आयोजित यह कार्यक्रम न केवल भावपूर्ण रहा, बल्कि समाज को एकजुट रहने और शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनने का संदेश भी देता दिखा। बड़ी संख्या में ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधियों ने एकत्र होकर बाबा साहेब को नमन किया और माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
श्रद्धांजलि और कार्यक्रम का शुभारंभ
सुबह से ही डंडई गाँव में लोगों की भीड़ अंबेडकर चौक पर जुटने लगी। कार्यक्रम का शुभारंभ बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पुलिस अवर निरीक्षक राधा मोहन यादव ने पूरे आयोजन के दौरान सुरक्षा और शांति व्यवस्था सुनिश्चित की।
भावुक और प्रेरक संबोधन—“अगर बाबा साहेब नहीं होते…”
कार्यक्रम के दौरान कई वक्ताओं ने बाबा साहेब के जीवन, संघर्ष और शिक्षा के प्रति उनके आग्रह को याद करते हुए अपने विचार रखे।
“आज हम मंच पर बोल पा रहे हैं, यह उनकी ही देन है”
डंडई पंचायत के मुखिया पति महेश्वर राम का वक्तव्य कार्यक्रम का सबसे भावुक क्षण रहा। उन्होंने कहा—
“अगर बाबा साहेब नहीं होते, तो हम जैसा चमार का बेटा आज इस मंच पर खड़ा होकर बोल नहीं पाता।”
उनके इस कथन पर उपस्थित जनसमूह ने जोरदार तालियों से प्रतिक्रिया दी।
“जो आगे न बढ़ा सके, उसे पीछे भी न खींचें”
पूर्व मुखिया पति दिनेश राम ने बाबा साहेब के अंतिम संदेश को याद करते हुए कहा—
“बाबा साहेब ने अंतिम समय में कहा था कि अगर लोग उसे आगे न बढ़ा सकें, तो पीछे भी न खींचें।”
उन्होंने यह भी बताया कि उनके अंतिम संस्कार में करोड़ों की भीड़ उपस्थित थी—जो उनकी लोकप्रियता और योगदान का प्रमाण है।
सामाजिक सौहार्द और भाईचारे की अपील
लावाही गाँव से आए समाजसेवी संदेश राम ने कहा—
“सभी भाई-बहन एक धागे में बंधकर रहें। सामाजिक सौहार्द ही हमारी शक्ति है।”
समाजसेवी अशोक प्रसाद ने भी एकता पर ज़ोर देते हुए कहा—
“सबको मिलजुलकर रहना होगा। तभी बाबा साहेब के संघर्ष को सफलता मिलेगी।”
शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार
समाजसेवी रामकिशुन ठाकुर ने बाबा साहेब के संघर्ष को प्रेरक बताते हुए कहा—
“बाबा साहब दयनीय अवस्था में पढ़कर इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँचे। हमें भी उनके पदचिन्हों पर चलना चाहिए।”
जरही से आए पूर्व मुखिया जामुना राम ने कहा—
“नून-रोटी खाकर जिंदगी बितावा लेकिन बल बच्चा के जरूर पढ़ावा।”
सोशल मीडिया और जागरूकता की अपील
भाजपा सोशल मीडिया प्रभारी दिलवर कुमार ने कहा—
“सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाहों से बचें और बाबा साहेब के आदर्शों को जीवन में उतारें।”
भाजपा युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष अलख निरंजन प्रसाद ने बताया कि—
“संविधान में हर वर्ग के अधिकार बाबा साहेब की देन हैं।”
सम्मानित अतिथियों की उपस्थिति
समारोह में समाजसेवी महावीर राम, रामदेव राम, सुभाष मेहता, रामसागर राम, शंकर राम, अजय प्रसाद, शंभू राम समेत कई सम्मानित ग्रामीण और कार्यकर्ता शामिल हुए। कार्यक्रम में शामिल हर व्यक्ति ने बाबा साहेब की जयंती को समाज सुधार और जागरूकता का अवसर बताया।
कार्यक्रम का समापन—शांति, व्यवस्था और संकल्प
मुख्य अतिथि पु अ नि राधा मोहन यादव ने अपने दल-बल के साथ कार्यक्रम की गरिमा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समारोह का समापन “मिलजुलकर रहने”, शिक्षा को प्राथमिकता देने, और समाज में समानता को बढ़ावा देने की शपथ के साथ हुआ।

न्यूज़ देखो: बाबा साहेब का संदेश—एकता, शिक्षा और संवैधानिक जागरूकता
डंडई में हुआ यह आयोजन संकेत देता है कि ग्रामीण समाज आज भी बाबा साहेब के विचारों को अपनी प्रेरणा मानता है। शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक समरसता के बिना समाज आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसे कार्यक्रम लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं और नई पीढ़ी को सही दिशा देते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
एकता और शिक्षा—बदलाव की कुंजी
जब समाज एकजुट होता है, तभी संघर्ष सफल होते हैं।
बाबा साहेब की राह हमें बताती है कि शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है।
आइए, हम भी संकल्प लें कि जाति-भेद से ऊपर उठकर एकता की मिसाल पेश करेंगे।
आप क्या सोचते हैं—क्या ऐसे कार्यक्रम हर गाँव में नियमित रूप से होने चाहिए?
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