
#गुमला : धान खरीद में भारी अनियमितता के आरोप पर जाँच रिपोर्ट के आधार पर दोषी अधिकारियों पर FIR और कड़ी कार्रवाई की मांग
- गुमला जिला में धान अधिप्राप्ति योजना के तहत लैम्पस द्वारा खरीद में गंभीर अनियमितता का आरोप।
- भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर FIR और सख्त कार्रवाई की मांग की।
- जाँच रिपोर्ट में जिला आपूर्ति पदाधिकारी, लैम्पस सचिव और राज्य खाद्य निगम के कंप्यूटर ऑपरेटर सोनु कुमार वर्मा की संलिप्तता का उल्लेख।
- E-Uparjan Portal पर भूमि सत्यापन के बिना भुगतान और बिचौलियों को लाभ पहुंचाने का आरोप।
- प्रति क्विंटल 600–700 रुपये तक गबन और वास्तविक किसानों को नुकसान का दावा।
- जाँच अनुशंसा के बावजूद अब तक दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने का आरोप।
गुमला जिले में धान अधिप्राप्ति योजना के तहत हुए कथित घोटाले को लेकर राज्य की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। भाजपा नेता और झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक विस्तृत पत्र लिखते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। पत्र में उन्होंने कहा है कि कृषकों के हित में चलाई जा रही राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी धान अधिप्राप्ति योजना को गुमला जिले में कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिलीभगत कर भ्रष्टाचार का जरिया बना दिया। उन्होंने जाँच प्रतिवेदन के आधार पर दोषियों के खिलाफ FIR दर्ज कर कड़ी कार्रवाई करने और चालू वर्ष की धान खरीद में पूर्ण पारदर्शिता बरतने की मांग की है।
धान अधिप्राप्ति योजना में कथित अनियमितताओं का विवरण
बाबूलाल मरांडी द्वारा लिखे गए पत्र के अनुसार, पिछले वर्ष गुमला जिले में धान अधिप्राप्ति योजना के तहत किसानों से धान की खरीद की गई थी। लेकिन इस प्रक्रिया में जिला आपूर्ति पदाधिकारी, प्रखण्ड आपूर्ति पदाधिकारी, लैम्पस अध्यक्ष और सचिव, तथा राज्य खाद्य निगम में कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर सोनु कुमार वर्मा ने कथित रूप से आपसी मिलीभगत कर वास्तविक किसानों को लाभ से वंचित किया।
पत्र में आरोप लगाया गया है कि E-Uparjan Portal पर निबंधित किसानों का अंचल स्तर पर भूमि सत्यापन कराए बिना ही भुगतान कर दिया गया। इससे बिचौलियों और अधिकारियों के करीबी लोगों को लाभ पहुंचाया गया, जबकि असली किसानों को योजना का वास्तविक लाभ नहीं मिल सका।
उपायुक्त के निर्देश पर हुई जाँच और रिपोर्ट के निष्कर्ष
जब इस मामले को लेकर वास्तविक किसानों ने शिकायत दर्ज कराई, तब उपायुक्त गुमला ने इसकी जाँच के लिए अपर समाहर्ता की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने धान खरीद प्रक्रिया की विस्तृत जाँच की।
जाँच प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से यह तथ्य सामने आया कि धान अधिप्राप्ति में भारी अनियमितताएँ हुई हैं। रिपोर्ट में जिला आपूर्ति पदाधिकारी, लैम्पस सचिव और राज्य खाद्य निगम के कंप्यूटर ऑपरेटर सोनु कुमार वर्मा की संलिप्तता का उल्लेख किया गया है। जाँच कमेटी ने इन पदाधिकारियों और कर्मचारियों के विलंबन और विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा भी की।
बाबूलाल मरांडी ने कहा: “जाँच प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से दोषियों की पहचान हो चुकी है, इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं होना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।”
पालकोट अंचल में भारी गड़बड़ियों का आरोप
पत्र में विशेष रूप से पालकोट अंचल का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यहां के विभिन्न लैम्पसों में धान खरीददारी के दौरान बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ की गईं। लाभुक किसानों के नाम पर दर्ज जमीन के वास्तविक रकबे से अधिक दिखाकर धान की खरीद की गई।
इस प्रक्रिया में प्रति क्विंटल लगभग 600 से 700 रुपये तक का गबन किए जाने का आरोप लगाया गया है। मरांडी ने यह भी उल्लेख किया कि सरकारी खरीद में देरी के कारण किसान मजबूरी में बाजार में 1600 से 1700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान बेच देते हैं, जिससे उन्हें उचित समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पाता।
जाँच अनुशंसा के बावजूद कार्रवाई नहीं होने का आरोप
बाबूलाल मरांडी ने पत्र में इस बात पर गहरी नाराजगी जताई है कि जाँच प्रतिवेदन में कार्रवाई की स्पष्ट अनुशंसा होने के बावजूद अब तक किसी भी दोषी अधिकारी या कर्मचारी पर ठोस कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने विशेष रूप से यह आरोप लगाया कि कंप्यूटर ऑपरेटर सोनु कुमार वर्मा आज भी अपने पद पर बने हुए हैं और अनियमितताओं को अंजाम दे रहे हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि जाँच रिपोर्ट के आलोक में तुरंत FIR दर्ज कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि किसानों का विश्वास बहाल हो सके।
न्यूज़ देखो: किसानों की योजना में भ्रष्टाचार या प्रशासनिक लापरवाही?
गुमला का यह मामला राज्य की धान अधिप्राप्ति व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यदि जाँच रिपोर्ट में दोष सिद्ध होने के बावजूद कार्रवाई नहीं होती, तो यह न केवल किसानों के साथ अन्याय है, बल्कि सरकारी योजनाओं की विश्वसनीयता पर भी असर डालता है। सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करे। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
किसानों के हक की लड़ाई में सजग बनें
धान अधिप्राप्ति जैसी योजनाएं तभी सफल होती हैं, जब उनका लाभ सही हाथों तक पहुंचे। यदि किसान संगठित होकर आवाज उठाएं और प्रशासन जवाबदेह बने, तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है।
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