बक्सर रैली में कांग्रेस की फजीहत: जनता से नहीं, सिर्फ कैमरे से संवाद करती दिखी पार्टी

#बक्सर #राजनीतिक_विफलता — जिलाध्यक्ष की बर्खास्तगी से शुरू हुआ कांग्रेस में आत्मचिंतन

जब रैली से ज़्यादा सुर्खियाँ बटोरी विफलता ने

बक्सर के दलसागर मैदान में 20 अप्रैल को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा को लेकर काफी उम्मीदें थीं। इसे पार्टी ने ‘संकल्प रैली’ का नाम दिया था और इसे बिहार में संगठन की मजबूती के संकेत के तौर पर पेश किया गया था। लेकिन मैदान में सन्नाटा और हजारों खाली कुर्सियाँ पार्टी के जमीनी हकीकत की पोल खोलती रहीं।

बिहार कांग्रेस के लिए यह रैली एक संगठनात्मक असफलता बनकर सामने आई। हाईकमान की मौजूदगी और मीडिया कवरेज के बावजूद जनता नदारद रही, जिससे पार्टी की रणनीति और कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

जिलाध्यक्ष पर गिरी गाज, लेकिन क्या काफी है?

रैली की विफलता के तुरंत बाद बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने जिलाध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार पांडेय को निलंबित कर दिया। प्रदेश अध्यक्ष की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में यह स्पष्ट कहा गया कि:

“सभा की तैयारियों में घोर लापरवाही और आपसी समन्वय का पूर्ण अभाव देखा गया। जिला कांग्रेस समिति अपने उत्तरदायित्व में विफल रही।”
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी

लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सिर्फ एक पदाधिकारी को हटाकर संगठनात्मक खामियों को नहीं ढका जा सकता। यह निलंबन केवल राजनीतिक दबाव की प्रतिक्रिया भर है।

जब फोटो ज़्यादा, फील्डवर्क कम रहा

सभा से जुड़े सूत्रों के अनुसार, कई नेता फोटो सेशन और सोशल मीडिया पोस्टिंग में व्यस्त रहे, जबकि रैली के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से भीड़ जुटाने पर कोई खास मेहनत नहीं की गई। स्थानीय कार्यकर्ताओं में ग़लतफहमी, तालमेल की कमी और जिम्मेदारियों का बंटवारा सही तरीके से नहीं हो सका।

ऐसे आयोजनों में जमीनी समर्थन की बजाय दिखावे पर फोकस पार्टी की गंभीर कमजोरी बनता जा रहा है। जब नेता जनता से जुड़ने के बजाय कैमरे से संवाद करने में लगे हों, तो संगठन मजबूत कैसे होगा?

कांग्रेस के लिए चेतावनी है बक्सर की यह घटना

बक्सर की यह सभा एक राजनीतिक झटके से कम नहीं। यह न केवल स्थानीय नेतृत्व की विफलता का संकेत देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कांग्रेस अब भी जमीनी राजनीति में पिछड़ रही है। जिस प्रदेश में जनता की भागीदारी सबसे बड़ा मूल्य हो, वहाँ खाली कुर्सियाँ सबसे बड़ा संदेश देती हैं।

“रैली एक आयोजकीय चुनौती थी, लेकिन उसका संदेश एक संगठनात्मक संकट बन गया है।”
एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता (नाम न छापने की शर्त पर)

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लोकतंत्र में दिखावे से नहीं, भरोसे से बनता है भविष्य

बक्सर की सभा कांग्रेस के लिए एक सबक है — नेतृत्व के पोस्टर और प्रचार से ज़्यादा ज़रूरी है जमीनी मेहनत। अगर जनता को जोड़ने के लिए ईमानदार प्रयास नहीं होंगे, तो सिर्फ सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना काफी नहीं होगा।
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