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बानो प्रखंड के जनप्रतिनिधि बने बेबस दर्शक, दो साल बाद भी विकास कार्य ठप

#बानो #जनविकास : जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे चुने हुए जनप्रतिनिधि – सड़क, आंगनबाड़ी और पुल जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी अधूरी
  • बानो प्रखंड के 16 पंचायतों के जनप्रतिनिधि विकास कार्य न होने से स्वयं लाचार महसूस कर रहे हैं।
  • चुनाव के दौरान किए गए वायदों और भरोसों पर अब तक अमल नहीं हो सका है।
  • कई जनप्रतिनिधि बैठकों में आने के लिए भी निजी खर्च या महुआ बेचकर काम चला रहे हैं।
  • सड़क, पुल और आंगनबाड़ी केंद्रों की मरम्मत जैसे बुनियादी कार्य ठप पड़े हैं।
  • सरकारी योजनाओं की बड़ी-बड़ी घोषणाएं अब ग्रामीणों को निराश कर रही हैं।

बानो प्रखंड की लगभग 80 हजार की आबादी आज भी उन जनप्रतिनिधियों की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है, जिन्हें उन्होंने दो साल पहले विकास की आस में चुना था। लेकिन इन दो वर्षों में ना तो कोई ठोस विकास कार्य हो पाया और ना ही जनता के भरोसे को साकार रूप मिला। स्थिति यह है कि मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और वार्ड सदस्य सभी अपने अधिकारों और सीमित संसाधनों के कारण खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं।

चुनावी वादे अब बने बोझ

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों ने गांव के विकास के लिए सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे कई वादे किए थे। लेकिन अब जब दो साल बीत चुके हैं, तो न कोई योजना धरातल पर आई और न ही पंचायतों को पर्याप्त फंड मिल पाया। एक स्थानीय जनप्रतिनिधि ने व्यथा साझा करते हुए कहा—

एक जनप्रतिनिधि ने कहा: “जिस उम्मीद के साथ चुनाव में खड़ा हुआ था, वह धरा का धरा रह गया। घर का धान तो खत्म हो गया, अब महुआ बेचकर प्रखंड कार्यालय की बैठकों में जाता हूं।”

यह बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले प्रतिनिधियों की हालत कितनी दयनीय है।

विकास कार्यों पर सन्नाटा

जनप्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार की तरफ से लगातार विकास की घोषणाएं तो की जा रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में योजनाओं का क्रियान्वयन लगभग ठप है। कई पंचायतों में आज भी ऐसी सड़कें हैं जहां मोटरसाइकिल से भी पहुंचना मुश्किल है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्रामीणों को रोजमर्रा की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

कुछ जनप्रतिनिधियों ने बताया कि कई छोटे कार्य उन्होंने अपनी जेब से इस उम्मीद में कराए थे कि बाद में उनकी भरपाई सरकार करेगी, लेकिन अब वह पैसा डूब गया। स्थानीय दुकानदार भी जनप्रतिनिधियों के प्रति सम्मान रखते हुए कुछ कह नहीं पाते, परंतु अंदर ही अंदर वे भी असंतोष जताते हैं।

अधूरे सपनों में घिरा गांव

गांवों में आज भी आंगनबाड़ी केंद्रों की मरम्मत, पथ निर्माण, और पुल निर्माण जैसे कार्य केवल कागजों तक सीमित हैं। पिछले दिनों एक दर्दनाक घटना ने प्रशासन की नाकामी उजागर कर दी—एक मरीज की रास्ते में मौत इसलिए हो गई क्योंकि बरसाती नाले पर पुल नहीं था और समय पर इलाज नहीं मिल सका।

यह घटना बताती है कि योजनाओं की नाकामी केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि जिंदगी और मौत के बीच का फर्क भी बन चुकी है।

न्यूज़ देखो: जब जनप्रतिनिधि भी हो जाएं बेबस

बानो प्रखंड की यह स्थिति एक गंभीर सवाल खड़ा करती है—जब जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही संसाधनों के अभाव में कुछ न कर पाएं, तो विकास का सपना कौन पूरा करेगा? यह रिपोर्ट बताती है कि सरकारी योजनाओं और जमीनी हकीकत के बीच की खाई कितनी गहरी है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब वक्त है जागरूक प्रतिनिधित्व का

जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना केवल सरकार का नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र का दायित्व है। बानो प्रखंड के हालात हमें याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र में असली शक्ति जनता के हाथ में है। अब जरूरी है कि नागरिक अपने प्रतिनिधियों के साथ मिलकर आवाज उठाएं, योजनाओं की पारदर्शिता की मांग करें और हर पंचायत में जवाबदेही तय हो।
अपनी राय कमेंट करें, खबर को साझा करें और इस जनसमस्या को आगे बढ़ाएं ताकि बानो का हर गांव विकास की रोशनी देख सके।

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Shivnandan Baraik

बानो, सिमडेगा

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