
#रांची #DSPMUनामविवाद — डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत बनाम आदिवासी सम्मान की राजनीतिक बहस
- झारखंड सरकार ने DSPMU का नाम बदलकर वीर बुधु भगत विश्वविद्यालय करने का फैसला लिया
- भाजपा ने इस निर्णय को बताया “राजनीतिक स्टंट”, जताई कड़ी आपत्ति
- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वीर बुधु भगत दोनों की विरासत को नुकसान पहुंचाने का आरोप
- भाजपा ने नए विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग की, पुनर्विचार की अपील
- सरकार पर आदिवासी नेताओं के नामों के बहाने राजनीतिकरण का आरोप
एक ऐतिहासिक संस्था का बदला नाम, उठा नया विवाद
रांची स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (DSPMU) के नाम को वीर बुधु भगत विश्वविद्यालय करने का निर्णय हेमंत सोरेन सरकार के लिए नया विवाद लेकर आया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब राज्य में राजनीतिक ध्रुवीकरण तेज़ है।
भाजपा ने इस निर्णय को सिरे से खारिज कर दिया है और इसे “एक राष्ट्रीय नेता की विरासत को मिटाने का प्रयास” करार दिया है।
1926 से शिक्षा का स्तंभ रहा है DSPMU
इस संस्था की शुरुआत 1926 में रांची कॉलेज के रूप में हुई थी और यह वर्षों से इस क्षेत्र की उच्च शिक्षा व्यवस्था की नींव रही है।
1960 में रांची विश्वविद्यालय से संबद्ध होकर इसने कई प्रतिष्ठित छात्र और शिक्षाविद दिए हैं।
2017 में इसे राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा मिला, जब राज्य में रघुबर दास की सरकार थी। ऐसे में इसका नाम परिवर्तन केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक महत्व वाला फैसला माना जा रहा है।
वीर बुधु भगत : झारखंड के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी
वीर बुधु भगत, जो 17 फरवरी 1792 को रांची के सिलागाई गांव में जन्मे थे, ने 1831-32 के कोल विद्रोह का नेतृत्व किया था।
वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध के पहले प्रमुख नेता माने जाते हैं।
उनका योगदान झारखंड के आदिवासी इतिहास और संघर्ष की प्रेरणा रहा है, और उनकी स्मृति में राज्य सरकार ने नामकरण को सही ठहराया है।
भाजपा का विरोध : दोनों नेताओं के सम्मान को बताया क्षतिग्रस्त
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा,
“यह न तो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के सम्मान में है, न ही वीर बुधु भगत जी को न्याय देता है।”
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को यदि श्रद्धांजलि ही देनी है, तो एक नया विश्वविद्यालय वीर बुधु भगत के नाम पर खोला जाए, जिससे दोनों नेताओं की विरासत बची रहे।
भाजपा प्रवक्ता अजय साह ने भी सरकार पर आरोप लगाया कि
“झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार आदिवासी नेताओं का इस्तेमाल केवल राजनीति करने के लिए कर रही है, वास्तविक सम्मान देने के लिए नहीं।”
उन्होंने कहा कि इससे पहले भी सरकार ने कई परियोजनाओं का नाम राजनीतिक नेताओं पर रखकर जननायकों को नजरअंदाज किया है।
भाजपा ने की पुनर्विचार और नई पहल की मांग
भाजपा ने मांग की है कि राज्य सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करे और वीर बुधु भगत के सम्मान में एक नया विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा करे।
बाबूलाल मरांडी ने कहा,
“ऐसी सकारात्मक पहल का हम समर्थन करेंगे, जिससे राज्य के युवाओं को शिक्षा का नया मंच मिलेगा और वीर बुधु भगत जी की विरासत को सही अर्थों में सम्मान मिलेगा।”
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