
#बरवाडीह #अवैध_बीड़ीपत्ता_कारोबार – सुरक्षित जंगलों में खुलेआम हो रही तुड़ाई, वन संपदा के साथ-साथ राजस्व का भी नुकसान
- बरवाडीह के मोरवाई, छेचा, मंडल जैसे इलाकों में अवैध बीड़ी पत्ता तुड़ाई जोरों पर
- पलामू टाइगर रिजर्व के सुरक्षित जंगलों में भी हो रही तुड़ाई, वन विभाग बेबस
- माफिया मजदूरों को सरकारी दर से ज्यादा मजदूरी देकर खींच रहे अपने पाले
- सामान्य वन क्षेत्रों के संवेदकों को हो रहा आर्थिक नुकसान
- अवैध खलिहानों में जमा हो रहे पत्तों से सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल
माफिया का मजबूत नेटवर्क और वन विभाग की लाचारगी
बरवाडीह (लातेहार)। पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंदर इस साल फिर अवैध बीड़ी पत्ता तुड़ाई का खेल शुरू हो चुका है। मोरवाई कलां, सैदुप, छेचा, बढनिया, ततहा, मंडल और झरना जैसे जंगलों में बीड़ी पत्ता माफिया पूरी बेखौफी से पत्तों की तुड़ाई करा रहे हैं। इसके लिए वे जंगलों के भीतर खलिहान बनाकर पत्तों को एकत्र कर रहे हैं, जहां से इसे खुले बाजार में सप्लाई किया जा रहा है। वन विभाग को इसकी जानकारी होने के बावजूद अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो सकी है।
टेंडर प्रक्रिया को चुनौती दे रहे अवैध कारोबारी
राज्य सरकार हर साल सामान्य वन क्षेत्रों में टेंडर प्रक्रिया के तहत बीड़ी पत्ता तुड़ाई की अनुमति देती है, लेकिन टाइगर रिजर्व जैसे सुरक्षित जंगलों में तुड़ाई पूरी तरह प्रतिबंधित है। बावजूद इसके अमवाटिकर, ओपाग, होशिर, लात मुंडू और हरातू जैसे जंगलों में तुड़ाई धड़ल्ले से जारी है।
इन अवैध कारोबारियों को न तो सरकार को कोई राजस्व देना होता है, न ही किसी नियम का पालन करना पड़ता है। इसके उलट वैध संवेदकों को सरकारी नियमों का पालन करते हुए मजदूरी और शुल्क देना होता है, जिससे वे बाजार में टिक नहीं पाते। यही वजह है कि माफिया मजदूरों को ज्यादा पैसे देकर अपनी पकड़ मजबूत बना रहे हैं।
पारदर्शिता पर सवाल और जंगलों का ह्रास
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, ये माफिया सामान्य वन क्षेत्र से भी बीड़ी पत्ते खरीदकर सुरक्षित जंगलों के खलिहानों में मिलाते हैं, जिससे यह साबित करना मुश्किल हो जाता है कि पत्ते किस क्षेत्र से लाए गए हैं। यह पूरे बीड़ी पत्ता व्यवसाय की पारदर्शिता को संदिग्ध बना देता है।
“अगर वन विभाग केवल टेंडर प्रक्रिया तक सिमटा रहा, तो माफिया पूरी व्यवस्था को हड़प लेंगे। जंगलों का संरक्षण तभी संभव है जब अवैध तुड़ाई पर कड़ा एक्शन हो,”
– एक स्थानीय ग्रामीण
स्थानीय आवाज़ें कर रहीं हैं कार्रवाई की मांग
गांव के लोगों का कहना है कि हर साल यही स्थिति बनती है और वन विभाग सिर्फ खानापूर्ति करता है। न तो क्षेत्र में नियमित निगरानी होती है, न ही माफिया पर कोई ठोस कार्रवाई। अगर इसी तरह चलता रहा तो सरकार को राजस्व का नुकसान और जंगलों का ह्रास दोनों साथ-साथ होंगे।
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