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किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण संपन्न, उद्यान योजनाओं पर विस्तृत चर्चा

#गुमला #कृषि_प्रशिक्षण : तीन दिवसीय मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण के समापन पर किसानों को प्रमाणपत्र वितरण, उद्यान विकास योजनाओं की जानकारी साझा की गई।

गुमला जिले में कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ना और आत्मनिर्भरता की दिशा में सशक्त बनाना था। इस प्रशिक्षण में मधुमक्खी पालन की वैज्ञानिक विधियाँ, शहद उत्पादन के चरण, और मधुमक्खियों की देखभाल के आधुनिक तरीके सिखाए गए। प्रशिक्षण 06 अक्टूबर से 08 अक्टूबर 2025 तक चला, जिसमें जिले के विभिन्न प्रखंडों से आए कुल 25 किसानों ने सक्रिय सहभागिता की।

प्रशिक्षण का समापन और प्रमाणपत्र वितरण

कार्यक्रम के समापन अवसर पर जिला उद्यान पदाधिकारी, गुमला, केवीके गुमला के वरीय वैज्ञानिक, और प्रखंड विकास पदाधिकारी, बिशुनपुर ने संयुक्त रूप से प्रतिभागी किसानों को प्रमाणपत्र प्रदान किया। अधिकारियों ने बताया कि इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रशिक्षण के दौरान किसानों को मधुमक्खी पालन से जुड़ी सभी तकनीकी जानकारियाँ दी गईं ताकि वे अपने स्तर पर उत्पादन बढ़ा सकें।

जिला उद्यान पदाधिकारी ने कहा: “मधुमक्खी पालन न केवल शहद उत्पादन का साधन है, बल्कि फसल परागण बढ़ाकर कृषि उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। हमारा उद्देश्य किसानों को ऐसे उद्यमों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना है।”

उद्यान विकास योजनाओं पर विस्तृत चर्चा

इसी क्रम में प्रखंड घाघरा के बेटी पंचायत में एक जागरूकता सत्र आयोजित हुआ, जिसमें किसानों के साथ उद्यान विकास योजनाओं, फलदार पौधों के वितरण, और सब्जी उत्पादन को प्रोत्साहन देने वाली योजनाओं पर चर्चा की गई। अधिकारियों ने बताया कि सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत किसानों को आधुनिक कृषि उपकरण, पौध सामग्री, और प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

केवीके गुमला के वरीय वैज्ञानिक ने कहा: “आज का किसान अगर वैज्ञानिक पद्धति से खेती करेगा तो उसकी उत्पादकता दोगुनी हो सकती है। प्राकृतिक खेती और उद्यानिकी दोनों ही टिकाऊ कृषि के मुख्य स्तंभ हैं।”

किसानों के अनुभव और सीख

कार्यक्रम के दौरान किसानों ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में प्राप्त वर्मीबेड के उपयोग से केंचुआ खाद निर्माण के अपने अनुभव साझा किए। कई किसानों ने बताया कि इस जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी है और फसल की गुणवत्ता में सुधार आया है। प्रशिक्षण में यह भी बताया गया कि मधुमक्खी पालन और प्राकृतिक खेती को एक साथ अपनाने से अतिरिक्त आय के साथ पर्यावरण संरक्षण भी संभव है।

आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में पहल

अधिकारियों ने किसानों को प्रेरित किया कि वे इन प्रशिक्षणों से मिली जानकारी को अपने खेतों में लागू करें ताकि कृषि कार्य अधिक लाभकारी और टिकाऊ बन सके। प्रशिक्षण का मुख्य लक्ष्य किसानों में नवाचार और आत्मनिर्भरता की भावना जगाना था, जिससे वे ग्रामीण विकास के वास्तविक वाहक बन सकें।

न्यूज़ देखो: कृषि नवाचार की नई राह

गुमला में आयोजित यह प्रशिक्षण न सिर्फ किसानों के लिए सीखने का मंच साबित हुआ, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन कैसे ग्रामीण जीवन में परिवर्तन ला सकता है। किसानों की बढ़ती रुचि और प्रशासनिक सहयोग मिलकर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूत कदम हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

ग्रामीण विकास की ओर बढ़ता गुमला

मधुमक्खी पालन, प्राकृतिक खेती और उद्यानिकी जैसे क्षेत्रों में ग्रामीण किसानों की बढ़ती सक्रियता झारखंड की कृषि अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रही है। अब जरूरत है कि हर किसान ऐसे प्रशिक्षणों से जुड़कर अपनी क्षमता को बढ़ाए और अपनी मिट्टी से आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम करे।
आप भी अपनी राय कमेंट में दें, इस खबर को शेयर करें और किसानों की मेहनत को सलाम करें।

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