बिहार सरकार का बड़ा फैसला: बालू खनन से पहले होगी पांच नदियों की गहराई से जांच

#बिहार #कैबिनेटनिर्णय – सोन, फल्गू, मोरहर जैसी नदियों का होगा पुनर्भरण अध्ययन

पांच नदियों की होगी खास निगरानी

पटना। बालू खनन को लेकर अब बिहार सरकार ने नई वैज्ञानिक पद्धति अपनाने का निर्णय लिया है। राज्य की नदियों में वर्षा ऋतु के बाद जमा होने वाले बालू की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करने का प्रस्ताव नीतीश कैबिनेट की बैठक में 17 जून को मंजूर किया गया।

इसके तहत सोन, कियूल, फल्गू, मोरहर और चानन नदियों का पुनर्भरण अध्ययन कराया जाएगा, जिसके लिए केंद्रीय खान योजना एवं डिजाइन संस्थान (CMPDI) को जिम्मा सौंपा गया है। इस प्रक्रिया पर 2 करोड़ 58 लाख 61 हजार 352 रुपये खर्च होंगे।

वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर होगा खनन

खान एवं भूतत्व विभाग के प्रस्ताव के मुताबिक, इस रिपोर्ट से यह तय किया जाएगा कि किन क्षेत्रों में और कितनी मात्रा में बालू की निकासी संभव है। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि खनन से पर्यावरणीय संतुलन और नदी की प्राकृतिक धारा को नुकसान न पहुंचे।

विभागीय सूत्रों के अनुसार:
“पहली बार बिहार सरकार वैज्ञानिक अध्ययन के बाद ही बालू खनन की अनुमति देगी, जिससे अवैज्ञानिक दोहन और विवादों पर अंकुश लगेगा।”

नदियों की सूखी होती स्थिति भी चिंता का विषय

वर्तमान में बिहार की 78 नदियों में से 119 मुख्य बिंदुओं पर स्थिति गंभीर है। इनमें 61 स्थानों पर पानी की स्थिति शून्य है। राज्य की 10 प्रमुख नदियों में भी जल की भारी कमी दर्ज की गई है, जिससे न सिर्फ सिंचाई व्यवस्था प्रभावित हो रही है, बल्कि भूगर्भ जलस्तर भी नीचे जा रहा है।

कैबिनेट बैठक में यह चिंता जताई गई कि बिना पूर्व अध्ययन के बालू खनन से नदियों का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हो रहा है और पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

न्यूज़ देखो: नीति में बदलाव, विकास में संतुलन

न्यूज़ देखो बिहार सरकार के इस फैसले को एक सकारात्मक और दूरदर्शी कदम मानता है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मदद करेगा, बल्कि खनन विवादों और कोर्ट केसों से भी राहत दिलाएगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम और संरक्षण अधिक सुनिश्चित किया जा सकेगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

विकास और प्रकृति के बीच संतुलन की जरूरत

बिहार जैसे जल-आधारित राज्य में नदियों की सेहत और खनिज नीति के बीच संतुलन आवश्यक है। सरकार का यह निर्णय बताता है कि भविष्य में नीतियां सिर्फ राजस्व नहीं, बल्कि संसाधन संरक्षण को ध्यान में रखकर बनाई जाएंगी।
जनहित और प्रकृति दोनों के लिए यह कदम एक उदाहरण बन सकता है।

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