
#गिरिडीह #आयुष्मानस्वास्थ्ययोजना – दुखद हादसे के बाद जब ज़रूरत थी तत्काल इलाज की, दो बड़े निजी अस्पतालों में नहीं मिली आपातकालीन सेवा
- पचंबा में दुकान और घर में आग लगने से दो महिलाओं की मौत
- घायलों को बोड़ो के साई हॉस्पिटल और जीडी बगेड़िया हॉस्पिटल ले जाया गया
- दोनों अस्पतालों में डॉक्टर नहीं होने के कारण इलाज नहीं हो सका
- गोवर्धन लाल नर्सिंग होम के डॉक्टर विकास लाल ने दी इमरजेंसी सेवा
- परिजनों ने उठाए 24 घंटे सेवा देने वाले अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर सवाल
- आयुष्मान भारत योजना की हकीकत पर उठा बड़ा प्रश्नचिन्ह
आग की लपटों में गई दो जिंदगियां, परिवारों का रो-रो कर बुरा हाल
गिरिडीह के पचंबा इलाके में सोमवार को भीषण आग लगने से एक दुकान और घर जलकर खाक हो गया। इस दर्दनाक हादसे में संगीता डालमिया और खुशी डालमिया की मौत हो गई। स्थानीय लोगों के अनुसार, आग में झुलसे कई लोग धुएं के कारण गंभीर रूप से बीमार हो गए।
हादसे के बाद परिजन आनन-फानन में पीड़ितों को बोड़ो स्थित साई हॉस्पिटल और जीडी बगेड़िया हॉस्पिटल ले गए, लेकिन दोनों जगह डॉक्टर मौजूद नहीं थे।
अस्पतालों की संवेदनहीनता: 24×7 सेवा का दावा सिर्फ़ कागज़ों तक?
पीड़ित परिवार के सदस्य रवि डालमिया ने जानकारी देते हुए बताया:
“हम जान बचाने की उम्मीद में अस्पताल भागे, लेकिन वहां डॉक्टर तक नहीं मिले। यह शर्मनाक है कि जो अस्पताल 24 घंटे सेवा देने का दावा करते हैं, आपातकालीन स्थिति में वहां कोई मौजूद ही नहीं था।”
— रवि डालमिया, पीड़ित परिजन
यह सवाल उठना लाज़मी है कि अगर आपातकालीन स्थिति में अस्पताल मरीजों को मना कर दें, तो फिर आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य क्या है?
क्या यह योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर चल रही हैं?
निजी नर्सिंग होम ने दिखाई मानवता, डॉक्टर विकास लाल की तत्परता से बची जान
जब सभी दरवाज़े बंद हो गए, तब गोवर्धन लाल नर्सिंग होम के डॉक्टर विकास लाल ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए तुरंत इमरजेंसी सेवा शुरू की। इससे एक घायल की जान बच सकी।
डॉ. विकास लाल की तत्परता और संवेदनशीलता ने यह दिखा दिया कि चिकित्सा सेवा सिर्फ डिग्री से नहीं, जिम्मेदारी से चलती है।
अग्निशमन व्यवस्था पर भी उठे सवाल
परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि फायर ब्रिगेड की टीम घटनास्थल पर देर से पहुंची, जिससे आग पर समय रहते काबू नहीं पाया जा सका। यदि समय रहते अग्निशमन दस्ते की तैनाती हो जाती, तो शायद दो जिंदगियां बचाई जा सकती थीं।
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