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50 दिन बाद आया शव: सऊदी में हादसे का शिकार हुए विष्णुगढ़ निवासी धनंजय महतो की पार्थिव देह पहुँची पैतृक गांव

#हजारीबाग #प्रवासी_श्रमिक : विदेश में मेहनत करने गए युवक की दुखद मौत, परिवार में पसरा मातम

काम के लिए विदेश गए, मौत बनकर लौटी देह

हजारीबाग जिला अंतर्गत विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के जोबर पंचायत स्थित बंदखारो गांव के रहने वाले धनंजय महतो की पार्थिव देह 50 दिन बाद रविवार को रांची एयरपोर्ट पहुंची। सऊदी अरब के ताबुक शहर में काम के दौरान छत से गिरकर उनकी दर्दनाक मौत हो गई थी।

जानकारी के अनुसार, धनंजय एलएंडटी कंपनी के ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट में हेल्पर के रूप में एक साल से कार्यरत थे। घटना के दिन वह डेरा की बालकनी में मोबाइल पर बात कर रहे थे, इसी दौरान उन्हें चक्कर आया और वह नीचे गिर पड़े। उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

परिवार में मातम, छोड़ गए पीछे बेसहारा परिवार

धनंजय महतो अपने पीछे पत्नी गीतांजलि देवी और दो बेटे — संजय कुमार और सुनील कुमार को छोड़ गए हैं। परिवार के आर्थिक भविष्य की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। अचानक हुई इस दुर्घटना ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया है।

समाजिक कार्यकर्ता सिकन्दर अली ने निभाई मानवता

धनंजय का शव भारत लाने की प्रक्रिया में प्रवासी श्रमिक हितों के लिए कार्य कर रहे समाजिक कार्यकर्ता सिकन्दर अली ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने रांची एयरपोर्ट पहुंचकर धनंजय के शव को सम्मानपूर्वक रिसीव किया और परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की।

“यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उन हजारों प्रवासी श्रमिकों की स्थिति की तस्वीर है जो रोज़गार की तलाश में विदेश जाते हैं और सुरक्षा की कमी के कारण जान गंवा बैठते हैं।” — सिकन्दर अली, सामाजिक कार्यकर्ता

प्रशासन और सरकार से मांग

स्थानीय ग्रामीणों और परिजनों ने सरकार से मांग की है कि पीड़ित परिवार को आपदा राहत और प्रवासी श्रमिक सहायता योजना के तहत मुआवजा एवं आर्थिक सहायता प्रदान की जाए। साथ ही श्रमिकों की सुरक्षा और विदेश में काम के दौरान बीमा जैसे प्रावधानों को मजबूत किया जाए।

न्यूज़ देखो: प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा पर हो ठोस पहल

न्यूज़ देखो यह मानता है कि विदेश में काम करने वाले लाखों भारतीयों की सुरक्षा और कल्याण के लिए ठोस नीति की आवश्यकता है। धनंजय महतो की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उन खामियों की ओर संकेत है जिन पर सरकार, कंपनियों और एजेंसियों को तत्काल ध्यान देना चाहिए।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

मजबूरी में विदेश, उम्मीदों के साथ विदाई — पर लौटे ताबूत में

धनंजय महतो की यह कहानी उन तमाम युवाओं को सोचने पर मजबूर करती है, जो रोज़गार की तलाश में देश छोड़ने को मजबूर हैं। सरकार, समाज और सिस्टम को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि अब किसी और धनंजय की मौत के बाद परिवार 50 दिनों तक शव का इंतज़ार न करे।

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