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फर्जी OBC प्रमाण पत्र से सब-इंस्पेक्टर बनीं अलीशा कुमारी का जाति प्रमाण पत्र रद्द

#धनबाद #फर्जी_जातिप्रमाणपत्र : हाईकोर्ट के निर्देश पर जांच में उजागर हुई अनियमितता — राजगंज थाना प्रभारी की नौकरी पर लटक रही तलवार

हाईकोर्ट के निर्देश पर सामने आया फर्जी प्रमाण पत्र का सच

धनबाद के राजगंज थाना प्रभारी और 2018 बैच की सब-इंस्पेक्टर अलीशा कुमारी का मामला अब गंभीर रूप ले चुका है। झारखंड के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव कृपा नंद झा के आदेश पर उनका पिछड़ा वर्ग (OBC) जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया है।

यह कार्रवाई हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका के बाद शुरू हुई, जिसमें प्रदीप कुमार नामक याचिकाकर्ता ने अलीशा द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्र को फर्जी बताया था। कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए जांच के आदेश दिए, जिसके बाद सारी अनियमितताएं उजागर हुईं।

विजिलेंस जांच में खुली दस्तावेजी हेराफेरी

जांच की ज़िम्मेदारी विजिलेंस सेल को सौंपी गई, जिसने दस्तावेजों, वंशावली और भूमि रजिस्ट्री की बारीकी से पड़ताल की। रिपोर्ट में सामने आया कि अलीशा कुमारी ने जाति प्रमाण पत्र के लिए जो दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, उनमें गंभीर विसंगतियां थीं।

उनके पिता भुवनेश्वर प्रसाद अग्रवाल, जो एक व्यवसायी हैं, ने झारखंड के जामताड़ा जिले के डुमरी में एक जमीन खरीदकर घर बनाया था, लेकिन उनका मूल निवास बिहार के नवादा जिले में है। अलीशा ने प्रमाण पत्र हेतु जो जमीन की रजिस्ट्री और लगान रसीद सौंपी थी, उसमें वंशावली में गड़बड़ी पाई गई।

रिपोर्ट के अनुसार: “अलीशा ने पिता के दादा के रूप में स्व. रघुवीर प्रसाद अग्रवाल का नाम दिया, जबकि अन्य अभिलेखों में नंदकिशोर भगत और भुवनेश्वर प्रसाद को पिता-पुत्र दर्शाया गया था।”

दोनों वंशावली में विरोधाभास ने यह स्पष्ट कर दिया कि OBC प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जानबूझकर गलत जानकारी दी गई थी।

विभागीय स्तर पर प्रमाण पत्र अमान्य घोषित

इन सभी तथ्यों के आधार पर झारखंड पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने अलीशा का जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया। विभागीय सचिव ने इसका आदेश जारी करते हुए धनबाद के जिला कल्याण पदाधिकारी को भी इसकी कॉपी भेजी है।

यह फैसला न केवल प्रशासनिक रूप से संवेदनशील, बल्कि कानूनी और सेवा नियमों के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अब इस मामले में सेवा रद्दीकरण या अन्य दंडात्मक कार्रवाई की संभावना प्रबल हो गई है।

गढ़वा और हजारीबाग में रह चुकी हैं अहम पदों पर तैनात

अलीशा कुमारी इससे पहले गढ़वा और हजारीबाग जिलों में भी महत्वपूर्ण पुलिस पदों पर कार्य कर चुकी हैं। उनकी छवि एक सख्त लेकिन संवेदनशील महिला अफसर की रही है, परंतु इस मामले ने उनके पूरे करियर को संदेह के घेरे में ला दिया है।

अब सवाल उठता है कि अगर फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर उन्हें नियुक्ति मिली, तो क्या यह सरकारी सेवा नियमों का खुला उल्लंघन नहीं है? और क्या अब उन पर सेवा समाप्ति या आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा?

एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा: “यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि नियुक्ति फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर हुई है, तो यह सेवा अनुशासन और धोखाधड़ी दोनों के अंतर्गत गंभीर अपराध बनता है।”

आगे की कार्रवाई पर टिकी सबकी नजर

जाति प्रमाण पत्र रद्द हो जाने के बाद अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कार्मिक विभाग, पुलिस मुख्यालय, और नियुक्ति करने वाली एजेंसियां इस पर क्या रुख अपनाती हैं। संभव है कि जल्द ही आंतरिक विभागीय जांच या निलंबन की कार्रवाई शुरू हो।

इस पूरे मामले ने झारखंड पुलिस भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और निगरानी प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह इकलौता मामला है, या और भी नियुक्तियां इसी तरह के फर्जी दस्तावेजों से हुई हैं, इसकी जांच की आवश्यकता अब महसूस की जा रही है।

न्यूज़ देखो: पारदर्शिता की परीक्षा में फेल होती व्यवस्था

एक सब-इंस्पेक्टर की नियुक्ति में फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उजागर होना, न केवल न्याय और समान अवसर के मूल्यों का उल्लंघन है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की लापरवाही और मिलीभगत को उजागर करता है। न्यूज़ देखो इस बात पर बल देता है कि अब समय आ गया है जब भर्ती प्रक्रिया की व्यापक समीक्षा और फर्जी दस्तावेजों की स्क्रीनिंग अनिवार्य की जाए।

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