
#चैनपुर #सरकारी_भूमि : डाक बंगला की बेशकीमती जमीन पर वर्षों से अतिक्रमण, कार्रवाई के नाम पर केवल आश्वासन।
गुमला जिले के चैनपुर अंचल में सरकारी डाक बंगला की बहुमूल्य भूमि पर वर्षों से अतिक्रमण का गंभीर मामला सामने आया है। आरोप है कि भू-माफियाओं ने प्रशासन की निष्क्रियता का लाभ उठाकर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है। पूर्व अधिकारियों की पहल के बाद भी वर्तमान में ठोस दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकी है। यह मामला न केवल सरकारी संपत्ति की सुरक्षा, बल्कि राजस्व और जनहित से जुड़ा अहम सवाल बन गया है।
- चैनपुर डाक बंगला की सरकारी जमीन पर वर्षों से अतिक्रमण।
- पूर्व सीओ गौतम कुमार द्वारा लगाए गए बोर्ड और घेराबंदी हटाए गए।
- वर्तमान सीओ दिनेश कुमार गुप्ता ने निर्माण रुकवाया, लेकिन एफआईआर नहीं।
- सरकारी भवन, बस स्टैंड, खेल मैदान के लिए भूमि की भारी कमी।
- पूर्व डीसी सुशांत गौरव ने मांगा था जवाब, फाइल ठंडे बस्ते में।
- ग्रामीणों में प्रशासनिक चुप्पी को लेकर गहरा आक्रोश।
गुमला जिले के चैनपुर अंचल में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण का मामला लगातार गंभीर होता जा रहा है। स्थिति यह है कि अब सरकारी भवनों के निर्माण तक के लिए उपयुक्त भूमि उपलब्ध नहीं रह गई है। ताजा मामला चैनपुर स्थित सरकारी डाक बंगला की बेशकीमती भूमि से जुड़ा है, जहां खुलेआम भू-माफियाओं द्वारा कब्जा किया जा रहा है और प्रशासनिक कार्रवाई सवालों के घेरे में है।
डाक बंगला की जमीन पर वर्षों से अतिक्रमण
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, चैनपुर डाक बंगला की भूमि वर्षों से अतिक्रमण की चपेट में है। यह भूमि न केवल ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में सरकारी उपयोग के लिए भी अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। इसके बावजूद अतिक्रमणकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम सरकारी संपत्ति पर निर्माण और कब्जा करने से नहीं हिचक रहे।
पूर्व अंचलाधिकारी की पहल, तबादले के बाद हालात बदले
ग्रामीणों ने बताया कि तत्कालीन अंचलाधिकारी गौतम कुमार ने अपने कार्यकाल के दौरान डाक बंगला की जमीन को सुरक्षित करने के लिए ठोस पहल की थी।
उन्होंने भूमि के दोनों छोर पर सरकारी नोटिस बोर्ड लगवाए और घेराबंदी भी करवाई, ताकि अतिक्रमण रोका जा सके।
लेकिन जैसे ही उनका तबादला हुआ, भू-माफियाओं ने मौका पाकर न केवल सरकारी बोर्ड उखाड़ फेंके, बल्कि बाड़ को भी कबाड़ में बदल दिया।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस स्पष्ट सरकारी संपत्ति के नुकसान के बावजूद अब तक दोषियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है।
वर्तमान अंचलाधिकारी की भूमिका पर उठे सवाल
हाल ही में विवादित भूमि पर दोबारा निर्माण कार्य शुरू किया गया था, जिसे वर्तमान अंचलाधिकारी दिनेश कुमार गुप्ता ने हस्तक्षेप कर रुकवा दिया।
हालांकि ग्रामीण इस कार्रवाई को केवल खानापूर्ति मान रहे हैं। उनका कहना है कि निर्माण रुकवाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि अतिक्रमणकारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
ग्रामीणों का आरोप है कि—
“अगर जमीन सरकारी है और अतिक्रमण स्पष्ट है, तो नोटिस और एफआईआर से क्यों बचा जा रहा है?”

जनसुविधाओं पर अतिक्रमण का सीधा असर
चैनपुर को अनुमंडल का दर्जा मिलने के बावजूद अतिक्रमण की समस्या के कारण जनसुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
ग्रामीणों के अनुसार—
- अनुमंडल स्तरीय बस स्टैंड के लिए जमीन उपलब्ध नहीं।
- युवाओं के लिए कोई सरकारी खेल मैदान शेष नहीं।
- कई महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के भवन निर्माण में भूमि की कमी।
- राजस्व को हर साल लाखों रुपये का नुकसान।
सूत्रों का दावा है कि निचले स्तर से लेकर वरीय अधिकारियों तक कथित रूप से मामलों को “मैनेज” करने का खेल चल रहा है, जिसके कारण नियमपूर्वक कार्रवाई टलती जा रही है।
उपायुक्त स्तर तक पहुंचा मामला, फिर भी ठोस कार्रवाई नहीं
पूर्व उपायुक्त सुशांत गौरव ने इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए अंचल प्रशासन से जवाब तलब किया था।
लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद यह मामला फिर से फाइलों में दब गया।
वर्तमान उपायुक्त प्रेरणा दीक्षित से भी स्थानीय लोगों को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन अब तक डाक बंगला की भूमि को लेकर कोई ठोस अभियान शुरू नहीं किया गया है। इससे ग्रामीणों में नाराजगी और अविश्वास बढ़ता जा रहा है।
ग्रामीणों की सीधी मांग
स्थानीय ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि—
- चैनपुर में भी रांची की तर्ज पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाए।
- दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाए।
- डाक बंगला की भूमि को स्थायी रूप से अतिक्रमण मुक्त कराया जाए।
ग्रामीणों का सवाल है कि क्या चैनपुर की सरकारी संपत्ति को यूं ही भू-माफियाओं के हवाले छोड़ दिया जाएगा?

न्यूज़ देखो: सरकारी जमीन की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
चैनपुर का यह मामला झारखंड में सरकारी भूमि की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जब स्पष्ट अतिक्रमण के बावजूद कार्रवाई नहीं होती, तो यह प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी दर्शाता है। अब यह देखना अहम होगा कि जिला प्रशासन इस बार केवल आश्वासन देता है या वाकई डाक बंगला की जमीन को मुक्त कराकर सरकारी साख बचाता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सरकारी संपत्ति की रक्षा में नागरिकों की भूमिका
सरकारी जमीन जनता की धरोहर होती है और इसकी रक्षा हम सभी की जिम्मेदारी है।
यदि आपके क्षेत्र में भी अतिक्रमण या प्रशासनिक लापरवाही हो रही है, तो आवाज उठाएं।
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