#चंदवा #दुर्गा_पूजा : 1974 से जारी है बुधबाजार दुर्गा पूजा की परंपरा, इस बार भी भव्य पंडाल और आकर्षक सजावट से खिलेगा माहौल।
- 1974 में शुरू हुई थी बुधबाजार की पूजा परंपरा।
- स्व. निरंजन राम और साथियों ने रखी थी नींव।
- पंडाल निर्माण में बंगाल के कारीगर जुटे।
- सजावट में मुकेश टेंट की अहम भूमिका।
- खर्च होगा लगभग 6–7 लाख रुपये।
- समिति अध्यक्ष धनेश प्रसाद ने बताई खास तैयारी।
चंदवा (लातेहार) : शारदीय नवरात्र जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, चंदवा नगर की दुर्गा पूजा समितियां पूरी तरह सक्रिय हो गई हैं। थाना टोली, दुबे जी गोला, हरैया, स्टेशन रोड और महुआमिलाना में इस बार भी पंडाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि, सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बुधबाजार दुर्गा पूजा समिति का पंडाल है, जिसकी परंपरा को 51 साल पूरे हो रहे हैं।
परंपरा की नींव और योगदान
1974 में शुरू हुई इस पूजा का श्रेय स्व. निरंजन राम और उनके साथियों को जाता है। इनमें श्यामबिहारी साहू, स्व. बालानाथ पांडेय, भगवान दास वासिया, भुनेश्वर प्रसाद, स्व. रामावतार साहू, स्व. सुरेश सिंह, स्व. लालचंद साव और स्व. विजय सिंह उर्फ बच्चू बाबू शामिल थे। इन लोगों ने मिलकर चंदवा के सांस्कृतिक जीवन में नई परंपरा की शुरुआत की।
तैयारी में जुटी समिति
इस बार भी पंडाल को खास अंदाज में सजाया जा रहा है। समिति अध्यक्ष धनेश प्रसाद ने बताया कि पूजा पर कुल खर्च लगभग 6–7 लाख रुपये होने का अनुमान है। बंगाल से आए कारीगर पंडाल का निर्माण कर रहे हैं, वहीं सजावट की जिम्मेदारी स्थानीय मुकेश टेंट निभा रहा है। मूर्तिकार दास प्रतिमाओं को विशेष रूप देने में जुटे हैं।
समिति अध्यक्ष धनेश प्रसाद ने कहा: “हर साल की तरह इस बार भी हमारा प्रयास है कि श्रद्धालुओं को भव्यता और आस्था का संगम दिखे।”
आकर्षण और सुरक्षा व्यवस्था
पूजा स्थल पर इस बार विशेष रोशनी और सजावट भक्तों को आकर्षित करेगी। साथ ही सुरक्षा व्यवस्था को भी प्राथमिकता दी जा रही है ताकि भीड़-भाड़ के बीच श्रद्धालु सुरक्षित और सहज महसूस करें।
न्यूज़ देखो: परंपरा और आस्था का संगम
चंदवा का बुधबाजार पंडाल सिर्फ पूजा का स्थल नहीं, बल्कि स्थानीय सांस्कृतिक एकता और आस्था का प्रतीक है। 51 साल से चली आ रही इस परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना सामुदायिक सहयोग का उत्तम उदाहरण है।
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परंपरा को संजोएं, आस्था को आगे बढ़ाएं
बुधबाजार दुर्गा पूजा यह सिखाती है कि परंपरा तभी जीवित रहती है जब समाज उसे मिलकर निभाता है। आज जरूरत है कि हम सब इस सामूहिक आस्था को बनाए रखने में अपना योगदान दें। आइए, हम भी इस परंपरा का हिस्सा बनें और समाज में एकजुटता और सहयोग का संदेश फैलाएं। अपनी राय नीचे कमेंट करें और इस खबर को दोस्तों और परिचितों तक शेयर करें ताकि चंदवा की इस गौरवशाली परंपरा से हर कोई जुड़ सके।