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हूल दिवस पर सीएम हेमंत सोरेन का नमन: “वीर पुरुखों की सीख हमें न्याय और स्वाभिमान के लिए प्रेरित करती रहेगी”

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#रांची #हूल_दिवस_2025 – संथाल विद्रोह की 170वीं वर्षगांठ पर मुख्यमंत्री ने वीर शहीदों को किया श्रद्धापूर्वक याद
  • सीएम हेमंत सोरेन ने सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो को किया श्रद्धांजलि अर्पित
  • संथालों के 1855 के हूल विद्रोह को बताया ‘आदिवासी अस्मिता का उद्घोष’
  • जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए लड़ी गई लड़ाई को बताया प्रेरणास्रोत
  • ‘हूल जोहार’ के नारों से झारखंड में गूंजा सम्मान और गर्व का स्वर
  • मुख्यमंत्री बोले: यह विद्रोह आजादी से पहले के सबसे बड़े आंदोलनों में शामिल

संथाल विद्रोह: आदिवासी चेतना की अमर मशाल

30 जून 1855 – इतिहास का वह दिन जब संथाल आदिवासियों ने सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो जैसे नायकों के नेतृत्व में अंग्रेजों के अत्याचार और ज़मींदारी शोषण के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। इस हूल आंदोलन ने न केवल अंग्रेजों को चुनौती दी बल्कि आदिवासी चेतना और अस्मिता का प्रतीक भी बना।

मुख्यमंत्री का संदेश: “हमें वीर पुरखों की राह पर चलना है”

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हूल दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भावुक संदेश दिया। उन्होंने कहा:

“हूल विद्रोह के महानायक अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और अन्य वीर शहीदों तथा वीरांगनाओं के संघर्ष और शहादत को शत-शत नमन।”

उन्होंने आगे कहा:

“आजादी की लड़ाई से पहले ही हमारे वीरों ने अंग्रेजी हुकूमत और महाजनों के शोषण व अत्याचार के खिलाफ जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए अस्मिता की मशाल जलाई थी। हमारे वीर पुरुखों की यही सीख हमें हमेशा न्याय और स्वाभिमान के लिए प्रेरित करती रहेगी।”

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा:

“अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू अमर रहें! झारखण्ड के वीर शहीद अमर रहें! जय झारखण्ड! हूल जोहार!”

पूरे झारखंड में श्रद्धा और सम्मान का वातावरण

हूल दिवस पर झारखंड के विभिन्न जिलों में आदिवासी समाज द्वारा शौर्य जुलूस, शहादत सभाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कई स्कूलों और कॉलेजों में हूल क्रांति की ऐतिहासिक जानकारी साझा की गई और वीर शहीदों के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।

न्यूज़ देखो: हूल विद्रोह की विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा दायित्व

न्यूज़ देखो मानता है कि हूल दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना और इतिहास का गर्वपूर्ण अध्याय है।
यह वह दिन है जब झारखंड के वीरों ने एक बुलंद संदेश दिया — शोषण के खिलाफ संघर्ष और अस्मिता के लिए बलिदान ही हमारी परंपरा है।
हम इस विरासत को संजोएंगे, आगे बढ़ाएंगे और हर वर्ष गर्व से ‘हूल जोहार’ कहेंगे।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

गर्व से कहो: हम हैं संथाल हूल के उत्तराधिकारी

आज का दिन हमें हमारे इतिहास से जुड़ने और उससे प्रेरणा लेने का अवसर देता है। आइए मिलकर प्रण लें कि हम अपने वीरों की परंपरा को जीवित रखेंगे, अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे, और जल, जंगल, जमीन की रक्षा में आगे रहेंगे।

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