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गढ़वा में परंपरागत लौहकर्मियों संग कॉफी विद एसडीएम—समस्याएं और समाधान पर खुली चर्चा

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#गढ़वा #कॉफीविदएसडीएम : परंपरागत लौह कर्मियों ने रखीं समस्याएं—एसडीएम ने दिया सहयोग और आधुनिकीकरण का भरोसा
  • 80 से अधिक लौहकर्मी हुए शामिल, परंपरागत औजार बनाने वालों ने भाग लिया
  • भांथी और धोंकनी से काम करने की पुरानी परंपरा अब भी जारी
  • आधुनिकीकरण और पूंजी की कमी से पेशा छोड़ने को मजबूर नई पीढ़ी
  • विश्वकर्मा योजना, ऋण और आवास योजनाओं की जानकारी दी गई
  • 2 साल पहले आवेदन करने के बावजूद कई लाभुक वंचित, एसडीएम ने समाधान का आश्वासन दिया

परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष

गढ़वा अनुमंडल पदाधिकारी के संवाद कार्यक्रम कॉफी विद एसडीएम में इस बार परंपरागत लौहकर्मी शामिल हुए। जिले के विभिन्न प्रखंडों से आए करीब 80 से अधिक कारीगरों ने बताया कि वे आज भी भांथी और धोंकनी जैसे पारंपरिक साधनों से लोहे को गलाकर खुरपी, गेंता, फावड़ा और कुल्हाड़ी जैसे कृषि औजार बनाते हैं। यह काम बेहद कठिन और समयसाध्य है, लेकिन पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को निभाने के लिए वे आज भी इसी में जुटे हैं।

पेशे को छोड़ रही नई पीढ़ी

अधिकांश लौहकर्मियों ने स्वीकार किया कि नई पीढ़ी अब इस पारंपरिक धंधे से दूरी बना रही है। उनका कहना था कि आधुनिक उपकरण, बाजार और पूंजी की कमी के कारण यह काम अब लाभकारी नहीं रहा। यदि सरकार और प्रशासन की ओर से मशीनरी और आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराया जाए तो वे इस व्यवसाय को जारी रख सकते हैं।

योजनाओं से जोड़े जाने का प्रयास

कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों ने प्रतिभागियों को विश्वकर्मा योजना, ऋण और अनुदान योजनाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास से जुड़ी योजनाओं की जानकारी दी। कारीगरों ने विशेष रूप से सरकारी ऋण सुविधा और स्थायी आवास उपलब्ध कराने की मांग रखी। उनका कहना था कि यदि आर्थिक सहयोग मिले तो वे अपने कारीगरी व्यवसाय को नई दिशा दे सकते हैं।

एसडीएम गढ़वा ने कहा: “पारंपरिक कारीगरी सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी है। लोहार समुदाय की समस्याओं पर प्राथमिकता से कार्रवाई की जाएगी। जल्द ही उद्योग विभाग, श्रम विभाग और बैंकिंग संस्थानों के सहयोग से कैंप आयोजित कर इन्हें योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा।”

अधूरी योजनाओं पर जताई नाराज़गी

लगमा निवासी विक्रम विश्वकर्मा और देवगाना निवासी आशीष विश्वकर्मा सहित कई लाभुकों ने शिकायत की कि उन्होंने दो वर्ष पहले विश्वकर्मा योजना के तहत आवेदन किया था, लेकिन अब तक उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। इस पर एसडीएम ने आश्वासन दिया कि वे उद्योग विभाग से समन्वय कर समस्या का समाधान कराएंगे।

प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी

संवाद कार्यक्रम में आनंद विश्वकर्मा, रमेश विश्वकर्मा, डॉक्टर अर्जुन विश्वकर्मा, मुखदेव विश्वकर्मा, संतोष विश्वकर्मा, सरजू मिस्त्री, रामशरण मिस्त्री, हीरा विश्वकर्मा, किशन विश्वकर्मा, राकेश कुमार, अमरेश विश्वकर्मा, अरुण विश्वकर्मा, अनुज विश्वकर्मा, रवि रंजन, अशोक विश्वकर्मा, श्रवण विश्वकर्मा, शिवनाथ विश्वकर्मा, अमित विश्वकर्मा, उपेंद्र विश्वकर्मा, गिरजा मिस्त्री, दिलीप कुमार, विजय विश्वकर्मा, मिथिलेश विश्वकर्मा सहित कई कारीगरों ने अपने विचार रखे।

न्यूज़ देखो: परंपरा और विकास के बीच सेतु

गढ़वा में आयोजित यह संवाद कार्यक्रम इस बात का प्रमाण है कि परंपरागत व्यवसाय को बचाने के लिए प्रशासन गंभीर है। परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाकर न केवल आजीविका के साधन को संरक्षित किया जा सकता है, बल्कि समाज को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से भी जोड़ा जा सकता है। न्यूज़ देखो मानता है कि यदि प्रशासन और समुदाय मिलकर काम करें तो परंपरागत धंधे को नई ऊर्जा मिल सकती है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

परंपरा को सहेजें, आत्मनिर्भरता बढ़ाएं

लौहकर्मियों की मेहनत हमारे समाज की रीढ़ है। इन्हें आधुनिक संसाधन और उचित बाज़ार उपलब्ध कराकर हम न केवल इनकी आजीविका बचा सकते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित कर सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर ऐसे प्रयासों का समर्थन करें और परंपरागत कला को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं।
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