
#चैनपुर #भ्रष्टाचार_मामला : 0–5 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क आधार पंजीकरण पर 200 रुपये की जबरन वसूली का आरोप
- 0–5 वर्ष के बच्चों का आधार पंजीकरण पूरी तरह निःशुल्क, फिर भी 200 रुपये वसूले जाने की शिकायत।
- चैनपुर उप डाकघर के कर्मचारी/एजेंट पर अवैध वसूली का आरोप।
- गरीब ग्रामीणों ने बताया—धान बेचकर बड़ी मुश्किल से देते हैं 200 रुपये।
- सरकारी नियमों का उल्लंघन, UIDAI दिशानिर्देश स्पष्ट: नामांकन मुफ्त।
- ग्रामीणों ने उच्च अधिकारियों से जांच और कार्रवाई की मांग की।
चैनपुर, गुमला। चैनपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित उप डाकघर में 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों के आधार पंजीकरण में गंभीर अनियमितता और भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है। ग्रामीणों के अनुसार कर्मचारियों या उनके एजेंट द्वारा प्रत्येक बच्चे के आधार नामांकन के लिए 200 रुपये अनिवार्य रूप से वसूले जा रहे हैं, जबकि सरकारी नियमों के अनुसार यह सेवा पूरी तरह निःशुल्क है।
स्थानीय लोग, जिनकी आय का मुख्य आधार धान और चावल की बिक्री है, बताते हैं कि बच्चों का आधार कार्ड बनवाना उनके लिए सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने हेतु आवश्यक है। ऐसे में उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर पैसे मांगे जा रहे हैं। एक ग्रामीण ने बताया कि “बच्चों का आधार न बनने पर कई योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। पोस्ट ऑफिस में कहा जाता है कि पैसे दो, तभी काम होगा। हमारे लिए 200 रुपये बहुत बड़ी रकम है।”
सरकार के स्पष्ट नियमों का उल्लंघन
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के दिशानिर्देशों के अनुसार नवजात से 5 वर्ष तक के सभी बच्चों का आधार नामांकन पूरी तरह मुफ्त है।
इसके बावजूद चैनपुर उप डाकघर में गरीब और अशिक्षित ग्रामीणों को गुमराह कर उनसे अवैध रूप से पैसा वसूला जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि वे विरोध भी नहीं कर पाते, क्योंकि बच्चे का आधार कार्ड जरूरी है और गांव में विकल्प बेहद सीमित हैं।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़ा ग्रामीणों का आक्रोश
ग्रामीणों के अनुसार इस अनियमितता की शिकायत पहले भी की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे अवैध वसूली का हौंसला बढ़ा है।
चैनपुर क्षेत्र की आर्थिक स्थिति बेहद साधारण है, ऐसे में 200 रुपये की वसूली यहां के लोगों के लिए एक दिन की मजदूरी से भी अधिक का बोझ है।
लोगों ने कहा कि “सरकार गरीबों के लिए योजना चलाती है, मगर बीच के लोग ही उसका फायदा खा जाते हैं।”
ग्रामीणों की मांग: जांच हो, पैसा लौटाया जाए
स्थानीय लोगों ने डाक विभाग और जिला प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की तत्काल जांच करवाई जाए।
- वसूली गई राशि ग्रामीणों को अविलंब वापस दिलाई जाए।
- दोषी कर्मचारियों पर कठोर विभागीय कार्रवाई हो।
- उप डाकघर की पूरी प्रणाली की जांच कर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
ग्रामीणों का कहना है कि जब तक ऐसे मामलों पर सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक सरकारी योजनाओं का वास्तविक लाभ गरीब और जरूरतमंद परिवारों तक नहीं पहुंच पाएगा।
न्यूज़ देखो: कमजोर वर्ग की योजनाओं पर भ्रष्टाचार की चोट
यह मामला स्पष्ट रूप से दिखाता है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार कैसे गरीब परिवारों को प्रताड़ित करता है।
निःशुल्क सरकारी सेवाओं पर पैसा वसूलना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक अन्याय भी है।
प्रशासन को ऐसे मामलों पर त्वरित हस्तक्षेप कर भरोसा बहाल करना होगा।
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किसी भी अनियमितता की सूचना तुरंत अधिकारियों तक पहुंचाएं।
समुदाय के रूप में एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएं।
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