
#लातेहार #भूमि विवाद : कोर्ट डिक्री के बावजूद ऑनलाइन रसीद नहीं — प्रशासनिक उदासीनता से पीड़ित परिवार
- ग्राम धोबी टोला के करमा बैठा ने उपायुक्त लातेहार को सौंपा आवेदन
- कोर्ट ने अप्रैल 2025 में भूमि स्वामित्व का निर्णय करमा बैठा के पक्ष में सुनाया था
- 1.30 एकड़ जमीन की ऑनलाइन रसीद अब तक नहीं काटी गई
- विपक्षियों पर जमीन हड़पने और धमकी देने का गंभीर आरोप
- करमा बैठा ने उच्चाधिकारियों से हस्तक्षेप की चेतावनी दी
वर्षों से चल रहा था भूमि विवाद, आखिरकार न्यायालय ने सुनाया स्पष्ट आदेश
लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड अंतर्गत ग्राम धोबी टोला निवासी करमा बैठा (पिता – जितु बैग) इन दिनों न्यायालय से मिले फैसले के बावजूद प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। करमा बैठा की पुश्तैनी जमीन खाता संख्या 76 सी.एस. एवं प्लॉट संख्या 112 (रकबा 1.30 एकड़) को लेकर वर्ष 2007 से विवाद चल रहा था। यह मामला सिविल अपील वाद संख्या 08/2022 के रूप में न्यायालय में लंबित था।
कई वर्षों की लंबी सुनवाई और साक्ष्यों की जांच के बाद 9 अप्रैल 2025 को अदालत ने करमा बैठा के पक्ष में फैसला सुनाया, और उन्हें वैध भूमिधारी घोषित करते हुए भूमि स्वामित्व की डिक्री जारी की।
बावजूद स्पष्ट आदेश के, विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई
करमा बैठा ने बताया कि अदालत द्वारा खतियान, नक्शा, पूर्व रसीदों सहित तमाम दस्तावेजों की जांच के बाद उनके पक्ष में निर्णय हुआ। फिर भी अब तक ऑनलाइन रसीद नहीं काटी गई है, जिससे उन्हें मानसिक, सामाजिक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्व विभाग के जिम्मेदार अधिकारी आदेश की अवहेलना कर रहे हैं, जिससे साफ प्रतीत होता है कि प्रशासनिक तंत्र में लापरवाही और उदासीनता बनी हुई है।
जबरन बिक्री, धमकी और दबाव की भी कहानी
करमा बैठा ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्व में विपक्षी पक्ष ने प्रशासनिक दबाव दिखाकर उनकी जमीन की जबरन बिक्री करवा दी थी। उन्होंने विरोध किया, तो उन्हें धमकाया गया, मारपीट की गई, और झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजने की धमकी भी दी गई।
करमा बैठा का कहना है कि आज भी स्थानीय राजस्व कर्मी और अंचल अधिकारी मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे, जिससे न्यायालय की डिक्री भी व्यर्थ होती प्रतीत हो रही है।
उपायुक्त से लगाई गुहार, चेताया उच्चस्तरीय शिकायत का रास्ता
करमा बैठा ने अब उपायुक्त लातेहार को आवेदन सौंप कर न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने मांग की है कि तत्काल संबंधित विभाग को आदेश देकर उनकी जमीन की ऑनलाइन रसीद जारी करवाई जाए।
करमा बैठा ने चेतावनी दी: “यदि शीघ्र कोई कार्रवाई नहीं हुई तो मैं मजबूर होकर उच्चाधिकारियों से शिकायत करने और कानूनी रास्ता अपनाने को बाध्य हो जाऊंगा।”
न्याय की उम्मीद, लेकिन तंत्र की चुप्पी
इस पूरे मामले में यह सवाल उठता है कि जब अदालत ने करमा बैठा को वैध भूमिधारी मान लिया है, तो संबंधित राजस्व कार्यालय किस आधार पर प्रक्रिया में देरी कर रहा है? क्या आम नागरिक को न्याय पाने के लिए न्यायालय से आदेश मिलने के बाद भी संघर्ष करना पड़ेगा?
लातेहार प्रशासन की इस चुप्पी ने न्यायिक आदेशों की ताकत पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
न्यूज़ देखो: अदालत के आदेशों की अवहेलना या तंत्र की उदासीनता?
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की पुश्तैनी जमीन से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह उदाहरण है कि जब अदालतें फैसला सुना भी देती हैं, तब भी आम आदमी को प्रशासन से जूझना पड़ता है। न्यूज़ देखो सवाल करता है—क्या जिला प्रशासन न्यायपालिका के आदेशों को भी नजरअंदाज कर सकता है? अगर नहीं, तो फिर इस मामले में विलंब क्यों? प्रशासन को जवाब देना होगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सजग नागरिकों से अपील: न्याय के लिए आवाज़ उठाएं
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