
#सिमडेगा #संस्कृति_उत्सव : इंद्र देव की पूजा से शुरू हुआ पारंपरिक इंद मेला, जदुरा नृत्य बना आकर्षण का केंद्र
- बानो प्रखंड के नवगांव में पारंपरिक इंद मेला का आयोजन ग्रामीण उत्साह के साथ संपन्न हुआ।
- पाहन पुजार ने इंद्र देव व ग्राम देवता की पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
- जदुरा टीम ने पारंपरिक संगीत और नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोहा।
- रविन्द्र सिंह, अध्यक्ष झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा बानो प्रखंड, ने मेला की सांस्कृतिक महत्ता बताई।
- विजेता ग्राम कुसुम और उपविजेता जामुडसोया करमकोचा टीम को किया गया पुरस्कृत।
सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड के बड़का डुईल पंचायत अंतर्गत नवगांव में इस वर्ष का पारंपरिक इंद मेला उल्लासपूर्ण वातावरण में आयोजित किया गया। मेला की शुरुआत पाहन पुजार द्वारा विधिवत इंद्र देव और ग्राम देवता की पूजा-अर्चना के साथ की गई। इसके बाद जदुरा टीम द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक संगीत और नृत्य ने पूरे आयोजन को जीवंत बना दिया और दर्शकों का मन मोह लिया।
परंपरा और एकता का प्रतीक बना इंद मेला
कार्यक्रम में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा बानो प्रखंड अध्यक्ष रविन्द्र सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि इंद मेला हमारे पूर्वजों की परंपरा और आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है। यह आयोजन हमारी पहचान को बनाए रखने और एकता का संदेश देने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को इस तरह के मेलों से अपनी जड़ों से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है।
रविन्द्र सिंह ने कहा: “इंद मेला हमारी परंपरा, संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों की यह धरोहर आज भी हमें एक साथ रहने और अपनी पहचान बनाए रखने की प्रेरणा देती है।”
विजेताओं को किया गया सम्मानित
मेला समिति की ओर से प्रथम पुरस्कार ग्राम कुसुम टीम को और द्वितीय पुरस्कार ग्राम जामुडसोया करमकोचा टीम को प्रदान किया गया। पुरस्कार वितरण के दौरान कमेटी अध्यक्ष गणेश सिंह, उपाध्यक्ष मुनु बड़ाइक, सचिव सुशील कंडुलना, कोषाध्यक्ष बलजीत सिंह, एवं सदस्य अर्जुन सिंह मौजूद रहे। सभी ने विजेता प्रतिभागियों को बधाई दी और आगामी वर्ष भी इस परंपरा को और बड़े स्तर पर मनाने का संकल्प लिया।

न्यूज़ देखो: लोक परंपरा में झारखंड की असली पहचान
इंद मेला जैसे आयोजन न सिर्फ लोक संस्कृति को जीवंत रखते हैं, बल्कि ग्रामीण एकता और सामाजिक सद्भाव को भी मजबूत करते हैं। बानो प्रखंड का यह उत्सव झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनकर उभरा है। ऐसे आयोजनों से ग्रामीण जीवन में उमंग और पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ती है।
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संस्कृति से जुड़े, अपनी पहचान बचाएं
यह मेला सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि हमारी संस्कृति, एकता और पहचान का प्रतीक है। आज जरूरत है कि हम अपने लोक उत्सवों को जीवित रखें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। आप भी अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और झारखंड की पारंपरिक धरोहर को सहेजने की मुहिम में सहभागी बनें।




