Gumla

जानहुपाठ में दो माह से अंधेरा: सोलर ग्रिड ठप, बिजली विभाग मौन

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#गुमला #बिजलीसमस्या : जानहुपाठ के आदिवासी ग्रामीण अंधेरे में जीने को मजबूर—जनप्रतिनिधियों पर नाराज़गी
  • दो माह से बिजली गुल, गांव में हाहाकार।
  • सोलर ग्रिड खराब, मरम्मत नहीं हुई।
  • असुर और बृजया जनजाति प्रभावित।
  • बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह बाधित
  • ग्रामीणों ने प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग की।

झारखंड के गुमला जिले के जानहुपाठ गांव में पिछले दो महीनों से बिजली गायब है। गांव का सोलर पावर ग्रिड भी खराब हो चुका है, जिससे आदिवासी समुदायों को गहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने नेताओं और विभाग पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए समाधान की मांग की है।

दो महीने से अंधेरे में जानहुपाठ

विशुनपुर प्रखंड के जानहुपाठ गांव में करीब दो महीने से बिजली आपूर्ति पूरी तरह ठप है। गांव के लोग, खासकर असुर और बृजया जनजाति, बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। इस दौरान बिजली विभाग की ओर से कोई पहल नहीं की गई

सोलर ग्रिड भी हुआ बेकार

गांव में सौर ऊर्जा से चलने वाला एक सोलर पावर ग्रिड लगा था, जो बिजली का एकमात्र स्रोत था। लेकिन भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने के कारण यह ग्रिड पूरी तरह खराब हो गया। तब से ग्रामीण पूरी तरह अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।

बच्चों की पढ़ाई और जीवन अस्त-व्यस्त

बिजली संकट का सबसे बड़ा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। रात के समय पढ़ाई ठप हो चुकी है, और घर के कामकाज में भी परेशानी बढ़ गई है। ग्रामीणों का कहना है कि स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।

नेताओं और विभाग पर आक्रोश

ग्रामीणों ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि नेता सिर्फ चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं, उसके बाद कोई हालचाल तक नहीं पूछता। बिजली विभाग और प्रशासन भी अब तक चुप है।

गांव के एक बुजुर्ग ने कहा: “दो महीने से अंधेरे में जी रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। नेता चुनाव में वादे करते हैं, लेकिन निभाते नहीं।”

ग्रामीणों की मांग: तुरंत समाधान

ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि या तो सोलर ग्रिड की मरम्मत कराई जाए या वैकल्पिक बिजली आपूर्ति की व्यवस्था की जाए। उनका कहना है कि यह समस्या अब बर्दाश्त से बाहर है।

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जानहुपाठ की यह समस्या बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों की बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी किस हद तक हो रही है। बिजली जैसी आवश्यक सेवा पर ध्यान न देना विकास के दावों को खोखला साबित करता है। सवाल है—क्या जिम्मेदार लोग जल्द कदम उठाएंगे? हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब समय है आवाज उठाने का

समाज की भागीदारी से ही बदलाव संभव है। इस खबर को अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें, कमेंट करके अपनी राय दें और ग्रामीणों की आवाज़ को बुलंद करने में मदद करें।

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