#रांची #हक_की_राजनीति – वित्त मंत्री ने अनुसूचित जातियों की अनदेखी पर जताई नाराजगी — आयोग और परिषद को पुनर्जीवित करने का दिया सुझाव
- वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
- एससी आयोग को पुनर्जीवित कर अधिसूचना जारी करने की मांग
- हरिजन समाज के राजनीतिक शोषण पर भाजपा को घेरा
- 2008 की एससी परामर्शदात्री परिषद अब भी निष्क्रिय
- 50 लाख की आबादी वाले एससी समुदाय की हालत आदिम जनजाति से भी बदतर
राजनीतिक उपेक्षा और संवैधानिक संस्थाओं की निष्क्रियता पर चिंता
रांची। झारखंड के वित्त मंत्री सह कांग्रेस नेता राधाकृष्ण किशोर ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखकर अनुसूचित जातियों के राजनीतिक अधिकारों और संस्थागत प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पत्र में उन्होंने एससी समाज के साथ लगातार हो रही राजनीतिक उपेक्षा और शोषण की बात करते हुए राज्य एससी आयोग और परामर्शदात्री परिषद को पुनर्जीवित करने की मांग की है।
एससी आयोग 2018 में बना, लेकिन कभी कार्यशील नहीं हुआ
पत्र में वित्त मंत्री ने उल्लेख किया कि 2018 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया था, लेकिन कोई पदस्थापन नहीं किया गया, जिससे यह संस्था कभी अस्तित्व में ही नहीं आ सकी। उन्होंने बताया कि 2019 विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह घोषणा की गई थी, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए। वर्तमान में एससी आयोग पूरी तरह निष्क्रिय है, जिससे एससी समाज के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
2008 में बनी परामर्शदात्री परिषद भी ठंडी फाइलों में दबी
वित्त मंत्री ने पत्र में लिखा कि 15 सितंबर 2008 को राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति परामर्शदात्री परिषद का गठन किया गया था। इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और 17 सदस्य भी नामित किए गए थे। इसके लिए नियमावली भी तैयार की गई, लेकिन 17 वर्षों में यह परिषद कभी नियमित रूप से सक्रिय नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि इस महत्वपूर्ण परामर्श संस्था को पुनर्जीवित किया जाए और इसे अधिकारपूर्वक सक्रिय किया जाए।
राधाकृष्ण किशोर ने आरोप लगाया: “भाजपा ने अनुसूचित जातियों के साथ ‘उपयोग करो और फेंक दो’ की नीति अपनाई है, जिससे एससी समाज का राजनीतिक सशक्तिकरण अधूरा रह गया है।”
आदिम जनजातियों से भी खराब स्थिति में है एससी समाज
वित्त मंत्री के मुताबिक झारखंड में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या करीब 50 लाख है। इनमें से बहुत से लोग भूमिहीन हैं और मजदूरी पर निर्भर हैं। भुइयां, मुसहर, चर्मकार, सफाईकर्मी जैसे समुदायों की स्थिति आदिम जनजातियों से भी खराब है। महिलाएं और बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। एससी समाज के लिए जो योजनाएं हैं, वे सिर्फ बकरी, मुर्गी और सूकर पालन तक सीमित हैं। यह विकास का नहीं, अवसरों की संकीर्णता का प्रतीक है।
इंडिया गठबंधन से है बड़ी उम्मीद
राधाकृष्ण किशोर ने अपने पत्र में यह भी लिखा कि हरिजन समाज ने इस बार इंडिया गठबंधन सरकार से काफी उम्मीदें बांध रखी हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार एससी समाज के संवैधानिक अधिकारों को लागू करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।
उन्होंने अपने पत्र के साथ राज्य आयोग अधिनियम 2018 और 2008 की अधिसूचना की कॉपी भी संलग्न की है ताकि सरकार इन संस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए विधिक प्रक्रिया शुरू कर सके।
न्यूज़ देखो: हाशिए के समाज की आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
अनुसूचित जातियों की अनदेखी और उनके प्रतिनिधित्व के अभाव का मुद्दा कोई नया नहीं, लेकिन जब कोई मंत्री स्तर का नेता खुद मुख्यमंत्री को पत्र लिखे, तो यह सिर्फ राजनीति नहीं, सामाजिक चेतावनी बन जाता है। न्यूज़ देखो मानता है कि यदि कोई समुदाय 50 लाख की आबादी होने के बावजूद विकास की मुख्यधारा से दूर है, तो इसके लिए नीतिगत चूक की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
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हर वर्ग को समान अधिकार मिले, तभी बनेगा समावेशी झारखंड
राजनीतिक प्रतिनिधित्व और योजनाओं का लाभ सिर्फ कागज़ पर नहीं, ज़मीनी स्तर पर दिखना चाहिए। एससी समाज की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को संवेदनशीलता के साथ सक्रियता भी दिखानी होगी।
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