#रांची #संथालसमाजआंदोलन – संथाल समाज ने मुख्यमंत्री से की ऐतिहासिक पर्वत की मान्यता की मांग, जैन समुदाय के एकतरफा कब्जे को बताया असंवैधानिक
- मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को धार्मिक तीर्थ स्थल घोषित करने की उठी मांग
- संथाल समाज ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सौंपा ज्ञापन
- वन अधिकार कानून और कस्टमरी राइट्स के तहत ग्राम सभा को सौंपने की मांग
- ईको सेंसिटिव जोन घोषित करने की अधिसूचना को बताया असंवैधानिक
- सरना, जाहेर थान, माँझी थान जैसे स्थलों की सुरक्षा के लिए विशेष अधिनियम की मांग
मुख्यमंत्री से मिला 51 सदस्यीय संथाल प्रतिनिधिमंडल
रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सोमवार को मरांग बुरू बचाओ संघर्ष समिति (संथाल समाज) का 51 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल उनके आवासीय कार्यालय में मिला। इस दौरान मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को संथाल समाज के धार्मिक तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता देने की औपचारिक मांग रखी गई। साथ ही इससे जुड़े संरक्षण, प्रबंधन व निगरानी की जिम्मेवारी ग्राम सभा को देने की भी अपील की गई।
इस प्रतिनिधिमंडल में समिति के अध्यक्ष रामलाल मुर्मू, साहित्यकार भोगला सोरेन और राज्य मंत्री फागू बेसरा विशेष रूप से मौजूद थे।
युगों-युगों से “मरांग बुरू” की पूजा करता आया है संथाल समाज
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को बताया कि संथाल आदिवासी समुदाय सदियों से पारसनाथ पर्वत को “मरांग बुरू” नाम से ईश्वर रूप में पूजता आ रहा है। इस स्थल को लेकर छोटानगपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, प्रीवी काउंसिल, पटना हाई कोर्ट व कमीशनरी कोर्ट तक से संथालों को प्रथागत अधिकार (Customary Rights) प्राप्त हैं।
धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए बने विशेष कानून
संथाल समाज ने झारखंड सरकार से अपील की कि मरांग बुरू, लुगू बुरू, जाहेर थान (सरना), माँझी थान, मसना जैसे आदिवासी धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए एक विशेष अधिनियम बनाया जाए ताकि इन स्थलों की पहचान और पवित्रता बनी रहे।
जैन तीर्थ घोषित करना बताया असंवैधानिक
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि अभी तक पारसनाथ पर्वत को केवल जैन समुदाय के सम्मेद शिखर के रूप में प्रचारित किया गया है, जो एकतरफा और असंवैधानिक है। इसके साथ ही वन मंत्रालय के 2023 के पत्र और राज्य पर्यटन विभाग की अधिसूचना में मदिरा सेवन पर प्रतिबंध के साथ केवल जैन धर्म का जिक्र किया गया है, जबकि आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों की उपेक्षा की गई है।
वन अधिकार अधिनियम के तहत ग्राम सभा को दी जाए ज़िम्मेदारी
समिति ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत सामूहिक वन भूमि अधिकार को लागू कर मरांग बुरू की निगरानी, नियंत्रण व अनुश्रवण की ज़िम्मेदारी स्थानीय ग्राम सभा को देने की मांग की। साथ ही उन्होंने 2019 की अधिसूचना, जिसमें पारसनाथ को ईको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है, को ग्राम सभा की सहमति के बिना किया गया निर्णय बताकर असंवैधानिक करार दिया।
राजकीय महोत्सव का दर्जा मिले “मरांग बुरू युग जाहेर”
समिति ने सरकार से मांग की कि फागुन शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाए जाने वाले “मरांग बुरू युग जाहेर, वाहा-बोंगा पूजा महोत्सव” को राजकीय महोत्सव घोषित किया जाए ताकि इसे संवैधानिक दर्जा मिल सके।
अवैध निर्माण को हटाने की मांग
प्रतिनिधिमंडल ने आरोप लगाया कि जैन समुदाय द्वारा पर्वत पर अवैध रूप से मठ-मंदिर, धर्मशालाएं बनाई गई हैं, जिन्हें वन भूमि अतिक्रमण मानते हुए हटाया जाए।
मुख्यमंत्री का आश्वासन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि:
“राज्य सरकार द्वारा आपकी मांगों पर विधिसम्मत यथोचित कार्रवाई की जाएगी।”
इस मुलाकात में झारखंड, बंगाल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ से आए संथाल बुद्धिजीवी शामिल रहे।
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मरांग बुरू सिर्फ एक पर्वत नहीं, संथाल अस्मिता, आस्था और परंपरा का केंद्र है। आज जब समुदाय के लोग अपने अधिकारों की शांति पूर्ण और संवैधानिक लड़ाई लड़ रहे हैं, ‘न्यूज़ देखो’ आपके संघर्ष की आवाज़ को हर मंच तक पहुंचाएगा।
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