
#हुसैनाबाद #सबजेलविवाद : तकनीकी खामियों का हवाला देकर सरकार ने रोका निर्माण, करोड़ों खर्च पर जांच की मांग तेज।
- हुसैनाबाद अनुमंडलीय कारागार निर्माण 2019-20 से लंबित।
- करीब 1.17 करोड़ रुपये की लागत से बाउंड्रीवाल निर्माण का टेंडर जारी।
- सरकार ने विधानसभा में भूमि को तकनीकी रूप से अनुपयुक्त बताया।
- सड़क गुजरने और एंगल वाली चहारदीवारी को बताया गया सुरक्षा मानकों के विपरीत।
- मॉडर्न प्रिजन मैनुअल 2016 के अनुसार 6 एकड़ अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता।
- बाउंड्रीवाल निर्माण में 50 प्रतिशत से अधिक कार्य पूर्ण होने की जानकारी।
हुसैनाबाद (पलामू) में प्रस्तावित अनुमंडलीय कारागार (सब-जेल) निर्माण एक बार फिर बड़े विवाद का कारण बन गया है। वर्ष 2019-20 में भूमि अधिग्रहण और बाउंड्रीवाल निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद आज तक जेल निर्माण शुरू नहीं हो सका है। हाल ही में 08 दिसंबर 2025 को विधानसभा में उठे तारांकित प्रश्न के बाद यह मामला फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है।
सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया कि वर्ष 2019-20 में सब-जेल निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहित की गई थी, लेकिन बाद में तकनीकी कारणों से उसी भूमि पर निर्माण संभव नहीं हो पाया। इस स्वीकारोक्ति के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब भूमि ही मानकों पर खरी नहीं उतरती थी, तो करोड़ों रुपये खर्च कर बाउंड्रीवाल निर्माण की अनुमति कैसे दी गई।
तकनीकी खामियों का हवाला
सरकारी जवाब के अनुसार झारखण्ड पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन लिमिटेड, रांची द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में स्पष्ट किया गया कि चिह्नित भूमि की चहारदीवारी कई स्थानों पर कोण (एंगल) बनाती है, जो जेल सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं है। इसके अलावा प्रस्तावित स्थल के बीच से एक सड़क गुजर रही है, जिसे बंद या डायवर्ट किए बिना जेल निर्माण असंभव बताया गया।
अतिरिक्त भूमि की जरूरत
इसी क्रम में केंद्रीय कारा, मेदिनीनगर के अधीक्षक ने मॉडर्न प्रिजन मैनुअल, 2016 का हवाला देते हुए कहा कि मानक और सुरक्षित जेल निर्माण के लिए कम से कम छह एकड़ अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होगी। इस संबंध में उपायुक्त, पलामू से अतिरिक्त भूमि उपलब्ध कराने और सड़क डायवर्जन का अनुरोध किया गया है, जो अब तक लंबित है। सरकार का कहना है कि भूमि संबंधी समस्याओं के समाधान के बाद ही आगे की कार्रवाई संभव है।
करोड़ों खर्च पर बड़ा सवाल
सबसे अहम और गंभीर सवाल यह है कि जब कुड़वा कला मौजा की उक्त भूमि जेल मैनुअल और सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं थी, तो वर्ष 2020 में सब-जेल की बाउंड्रीवाल निर्माण के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक का टेंडर कैसे जारी कर दिया गया?
उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, बाउंड्रीवाल निर्माण का प्राक्कलन ₹1,17,71,416 का था। इसके लिए ई-टेंडर निकाला गया और निर्माण कार्य शुरू भी हुआ। सूत्रों के अनुसार अब तक 50 प्रतिशत से अधिक कार्य पूर्ण किया जा चुका है।
प्रशासनिक स्वीकृति पर सवाल
अब जब सरकार स्वयं यह स्वीकार कर रही है कि यह भूमि जेल निर्माण के लिए अनुपयुक्त है, तो सवाल उठता है कि:
- बाउंड्रीवाल निर्माण से पहले तकनीकी स्वीकृति कैसे दी गई?
- क्या बिना समुचित जांच-पड़ताल के सरकारी धन खर्च कर दिया गया?
- यदि भूमि अनुपयुक्त थी, तो अब तक खर्च की गई राशि की रिकवरी क्यों नहीं की जा रही?
सियासी घमासान तेज
इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक हलकों में भी हलचल तेज है। स्थानीय विधायक संजय कुमार सिंह यादव द्वारा सदन में सवाल उठाने के बावजूद सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं माना जा रहा है। विपक्ष और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने हेमंत सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए जवाबदेही तय करने की मांग की है।
जनता का कहना है कि वर्ष 2020 में भी यही सरकार सत्ता में थी और आज भी वही सरकार है, तो फिर इस गंभीर प्रशासनिक चूक के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या करोड़ों रुपये की सरकारी राशि बिना किसी जवाबदेही के खर्च कर दी जाएगी?
वर्षों से अधूरी परियोजनाएं
हुसैनाबाद में कोषागार स्थापना हो या सब-जेल निर्माण, दोनों ही योजनाएं वर्षों से अधर में लटकी हुई हैं। बाउंड्रीवाल निर्माण पर करोड़ों खर्च होने के बावजूद जेल निर्माण को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है।
न्यूज़ देखो: जवाबदेही तय होना जरूरी
हुसैनाबाद सब-जेल का मामला केवल एक अधूरी परियोजना नहीं, बल्कि सरकारी सिस्टम में लापरवाही और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। यदि समय रहते जांच और कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला भविष्य में और बड़े विवाद का रूप ले सकता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अब जनता सवाल पूछ रही है
सरकारी धन जनता का पैसा है।
यदि योजनाएं अधूरी रहेंगी, तो भरोसा कैसे बनेगा?
दोषियों की पहचान और कार्रवाई जरूरी है।
आपकी राय क्या है—क्या इस मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए?
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