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विकासशील लातेहार, पर बढ़ती बेरोज़गारी की मार – युवा बोले अब विकास से पहले रोजगार चाहिए

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#लातेहार #रोजगार_संकट : सरकारी योजनाओं की नाकामी से युवा हताश – हजारों ने पलायन को चुना सहारा
  • लातेहार जिले में बेरोज़गारी अब गंभीर सामाजिक संकट बन चुकी है।
  • सरकारी रोजगार योजनाएँ कागज़ों तक सीमित रह गई हैं।
  • डिग्रीधारी युवक-युवतियाँ दिहाड़ी और पलायन को मजबूर हैं।
  • रोजगार मेले व ट्रेनिंग सेंटर सिर्फ दिखावा साबित हो रहे हैं।
  • युवा संगठनों ने चेताया — अगर जल्द कदम नहीं उठे तो होगा जनआंदोलन।

लातेहार। झारखंड का लातेहार जिला आज बेरोज़गारी की मार झेल रहा है। यह सिर्फ एक आर्थिक समस्या नहीं रही, बल्कि अब यह सामाजिक और मानवीय संकट का रूप ले चुकी है। गाँव-गाँव में पढ़े-लिखे युवक बिना काम के बैठे हैं। कोई स्नातक चाय बेचने को मजबूर है तो कोई पोस्ट-ग्रेजुएट खेत में मजदूरी कर रहा है। सरकारी दफ्तरों में योजनाएँ तो हैं, लेकिन ज़मीन पर उनका असर कहीं नहीं दिखता।

कागज़ों पर विकास, ज़मीनी स्तर पर निराशा

सरकारी वेबसाइटों और रिपोर्टों में लातेहार को “विकासशील जिला” बताया जाता है, लेकिन असल तस्वीर इससे बिल्कुल उलट है। प्रशिक्षित और शिक्षित युवाओं के पास रोजगार नहीं है। उद्योग लगाने की घोषणाएँ सालों से होती आ रही हैं, परंतु धरातल पर एक भी स्थायी यूनिट स्थापित नहीं हो पाई है। शिक्षा पूरी करने के बाद युवाओं को यही सवाल सताता है — “अब आगे क्या?

सरकारी योजनाएँ सिर्फ नाम भर

प्रधानमंत्री रोजगार योजना, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं का लाभ लातेहार तक नहीं पहुँच पा रहा। बैंक लोन के लिए महीनों चक्कर काटने पड़ते हैं, आवेदन प्रक्रिया जटिल है और अधिकारी टालमटोल करते हैं। प्रशिक्षण केंद्रों की स्थिति जर्जर है। रोजगार मेलों में नौकरियों की घोषणाएँ होती हैं, परंतु भर्ती का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आता।

स्थानीय युवक हेमंत कुमार ने कहा: “हमसे हर साल वादा किया जाता है कि अब रोजगार मिलेगा, पर साल गुजर जाता है और हमारी स्थिति वहीं की वहीं रह जाती है।”

पलायन बना रोज़गार का स्थायी रास्ता

हर साल लातेहार से हजारों युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, गुजरात और मुंबई जैसे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। गाँवों में अब बुजुर्ग और बच्चे ही रह गए हैं। जो युवा लौटते हैं, वे फिर से किसी अवसर की प्रतीक्षा में भटकने लगते हैं। पलायन अब मजबूरी नहीं, बल्कि ज़िंदा रहने का तरीका बन गया है।

स्थानीय व्यापारी शिवनाथ प्रसाद ने बताया: “गाँव के अधिकतर लड़के अब बाहर काम करते हैं। त्योहारों पर ही लौटते हैं, वरना गाँवों में सन्नाटा रहता है।”

स्थानीय प्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल

स्थानीय विधायक और सांसदों ने बेरोज़गारी पर अब तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई है। विधानसभा सत्रों और जनसभाओं में वादे तो बहुत होते हैं, लेकिन उनके अमल का कोई निशान नहीं दिखता। प्रशासनिक तंत्र पर भी युवाओं ने लापरवाही का आरोप लगाया है। “कब तक सिर्फ सर्वे और मीटिंग से रोजगार आएगा?” — यह अब युवाओं की सामान्य प्रतिक्रिया बन चुकी है।

युवाओं का आक्रोश उफान पर

युवा संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि नवंबर तक ठोस कदम नहीं उठाए गए तो धरना-प्रदर्शन और आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अब “वोट नहीं, काम चाहिए”। बेरोज़गारी से तंग आकर कुछ युवाओं ने स्वरोजगार शुरू करने की कोशिश की, परंतु सरकारी सहयोग न मिलने से वो भी असफल रहे।

छात्र नेता अरशद अली ने कहा: “सरकार अगर अब भी नहीं जागी, तो लातेहार के युवा सड़कों पर उतर आएंगे। यह आंदोलन अब हमारी पहचान की लड़ाई बन चुका है।”

सामाजिक असर और भविष्य की चिंता

बेरोज़गारी ने न सिर्फ युवाओं को आर्थिक रूप से कमजोर किया है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित किया है। बढ़ती हताशा के कारण अपराध, पलायन और अवसाद जैसे खतरे बढ़ रहे हैं। अभिभावक चिंतित हैं कि उनके बच्चों का भविष्य अब किस दिशा में जाएगा।

प्रशासनिक उदासीनता या व्यवस्था की विफलता?

सरकार के विभिन्न विभाग रोजगार, उद्योग और कौशल विकास की योजनाएँ चला रहे हैं, लेकिन उनका तालमेल कमजोर है। ज़िला प्रशासन की समीक्षा बैठकें नियमित होती हैं, मगर नतीजे नहीं निकलते। योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी, फाइलों का अटकना और फंड का दुरुपयोग जैसे मुद्दे सामने आते रहे हैं।

न्यूज़ देखो: विकास की परिभाषा अब रोजगार से तय होगी

लातेहार की तस्वीर यह बताती है कि केवल सड़कों और घोषणाओं से विकास नहीं मापा जा सकता। जब तक युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा, तब तक हर योजना अधूरी रहेगी। सरकार को इस दिशा में ठोस नीति बनानी होगी और स्थानीय उद्योगों को प्राथमिकता देनी होगी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

जागरूकता ही बदलाव की पहली सीढ़ी

अब समय है कि लातेहार के युवा सिर्फ शिकायत नहीं, समाधान का हिस्सा बनें। स्थानीय स्तर पर उद्यमिता को बढ़ावा देना, सामूहिक प्रशिक्षण केंद्रों की मांग उठाना और प्रशासन से जवाबदेही मांगना जरूरी है।
सजग बनें, सक्रिय रहें — बेरोज़गारी के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और एक ऐसे समाज के निर्माण में योगदान दें जहाँ हर युवा को काम और सम्मान दोनों मिले।

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