
#रांची #आदिवासी_सिनेमा : राजधानी में तीन दिवसीय आदिवासी फिल्म महोत्सव में देश भर की 52 फिल्में होंगी प्रदर्शित
- रांची में आयोजित होने वाला तीन दिवसीय धरती आबा आदिवासी फिल्म महोत्सव 16 अक्टूबर को समापन होगा।
- महोत्सव का उद्घाटन कल्याण मंत्री चमरा लिंडा करेंगे।
- कार्यक्रम में कुल 52 फिल्में शॉर्ट, फीचर और डॉक्यूमेंट्री श्रेणियों में प्रदर्शित होंगी।
- निर्णायक मंडली में श्यामला कर्मकार, अंजलि मोंटेरिया, केपी जयशंकर, महादेव टोप्पो, कृष्णा सोरेन और स्नेहा मुंडारी शामिल हैं।
- फिल्मों को सात कैटेगरी में बांटा गया है, जिसमें पहचान, प्रतिरोध, स्वदेशी ज्ञान, सामुदायिक परिवर्तन और आदिवासी सशक्तिकरण पर फोकस किया गया है।
राजधानी रांची में मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान की ओर से आयोजित इस महोत्सव में आदिवासी समुदाय की कहानियों और जीवनशैली को बड़े पर्दे पर पेश किया जाएगा। महोत्सव के दौरान देश भर के आदिवासी जीवन, संस्कृति और परंपराओं पर आधारित फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी। मंगलवार को शॉर्ट फिल्मों का प्रदर्शन होगा, जिसमें 14 मिनट की नागपुरी फिल्म और संथाली भाषा की शॉर्ट फिक्शन शामिल हैं। इसके अलावा “मेकिंग सॉयल एलियन टू अर्थ” और “वर्ली आर्ट” जैसी फिल्में भी दिखाई जाएंगी।
निर्णायक मंडली और भागीदारी
महोत्सव में ग्रांड ज्यूरी के रूप में फिल्मकार श्यामला कर्मकार, अंजलि मोंटेरिया, केपी जयशंकर, महादेव टोप्पो, कृष्णा सोरेन और स्नेहा मुंडारी शामिल हैं। निर्णायक मंडली में मेघनाथ, दीपक बाड़ा, प्रबल महतो, निरंजन कुजूर, सेराल मुर्मू, निलेश कुमार उरांव और रूपेश साहू शामिल हैं। महोत्सव में विश्वविद्यालय और कॉलेज के शिक्षक, पीएचडी व एम.फिल शोधकर्ता और स्नातकोत्तर छात्र भी भाग ले रहे हैं।
महोत्सव की थीम और उद्देश्य
फिल्म महोत्सव की सात कैटेगरी हैं—पहचान और प्रतिरोध, ज्ञान प्रणाली और आदिवासी दर्शन, स्वदेशी ज्ञान, सामुदायिक परिवर्तन, आदिवासी सशक्तिकरण की कहानियां, बायोपिक, और स्लाइस ऑफ ट्राइबल लाइफ। इस माध्यम से आदिवासी जीवन, उनकी परंपरा, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक अनुभव देशभर के दर्शकों तक पहुँचाए जाएंगे। महोत्सव भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में आयोजित किया जा रहा है और इसका उद्देश्य आदिवासी समाज की कहानियों को एक मंच प्रदान करना है।
न्यूज़ देखो: रांची का आदिवासी फिल्म महोत्सव संस्कृति और परंपरा का जश्न
यह महोत्सव दर्शाता है कि सिनेमा न केवल मनोरंजन का माध्यम है बल्कि यह आदिवासी समुदाय की पहचान, संघर्ष और सांस्कृतिक धरोहर को साझा करने का प्लेटफ़ॉर्म भी बन सकता है। आयोजकों और शिक्षाविदों के सहयोग से यह पहल आदिवासी युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगी।
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आदिवासी संस्कृति को सिनेमा के जरिये आगे बढ़ाएं
सभी फिल्म प्रेमियों और युवाओं से अपील है कि वे इस महोत्सव में शामिल हों और आदिवासी जीवन और संस्कृति को समझें। अपने विचार साझा करें, खबर को दोस्तों तक पहुँचाएँ और इस सांस्कृतिक आयोजन में सक्रिय भागीदारी करें।