
#गिरिडीह #इंटरपरीक्षा – शास्त्रीनगर का मामला, प्लस टू परीक्षा में कम अंक से निराश होकर छात्र ने लगाई फांसी, माता-पिता की आंखों का तारा था इकलौता बेटा
- प्लस टू में कम अंक आने से गहरे तनाव में था 18 वर्षीय पियूष कुमार
- बुधवार शाम पिता के साथ मेडिकल दुकान से लौटने के बाद खुद को कमरे में कर लिया था बंद
- कमरे में फांसी लगाकर दी जान, मौके पर ही हुई मौत
- परिजनों ने समझाया, लेकिन रिजल्ट से था बेहद आहत
- गुरुवार सुबह शव का पोस्टमार्टम सदर अस्पताल में कराया गया
- इलाके में मातम, लोग बोले— “ऐसी व्यवस्था हो जहां छात्र खुलकर बात कर सकें”
पढ़ाई के दबाव और निराशा ने ली युवा जान
गिरिडीह के शास्त्रीनगर मोहल्ले में बुधवार शाम दर्दनाक घटना घट गई, जहां 18 वर्षीय पियूष कुमार ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पियूष के पिता सुधीर साव स्थानीय मेडिकल दुकानदार हैं। परिवार का इकलौता बेटा पियूष इंटरमीडिएट परीक्षा में कम अंक आने से आहत था।
बुधवार को वह दिनभर परेशान था और लगातार रो रहा था। पिता और परिजन उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसका दुख गहराता चला गया।
मेडिकल से लौटकर लगाई फांसी, परिजनों के पहुंचने से पहले हो चुकी थी मौत
बुधवार शाम पियूष अपने पिता के साथ मेडिकल दुकान गया था। लौटकर सीधे घर की पहली मंज़िल पर बने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया। जब काफी देर तक वह बाहर नहीं आया तो परिजन दरवाजा तोड़कर अंदर पहुंचे। वहां उसे फांसी के फंदे से लटका हुआ पाया गया। पड़ोसियों ने भी तुरंत पहुंचकर मदद की, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
पोस्टमार्टम के बाद गमगीन माहौल, हर आंख नम
गुरुवार सुबह सदर अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम कराया गया। अस्पताल परिसर और मोहल्ले में मातमी सन्नाटा छाया रहा। पियूष पढ़ाई में औसत था, लेकिन परिवार की उम्मीदें उससे जुड़ी थीं। इस घटना ने परिवार की खुशियां छीन लीं और मोहल्ले में गहरी संवेदना की लहर दौड़ गई।
“बेटा पढ़ाई को लेकर बहुत संजीदा था, रिजल्ट आने के बाद से चुपचाप रहने लगा था,” — सुधीर साव, पिता
क्या युवाओं के लिए है कोई मानसिक सहारा?
इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या हम अपने बच्चों को असफलता से उबरने का साहस सिखा पा रहे हैं? क्या हमारे स्कूल-कॉलेजों में कोई ऐसी व्यवस्था है जहां छात्र खुलकर अपनी चिंता और तनाव साझा कर सकें?
शिक्षा व्यवस्था में मानसिक परामर्श और विद्यार्थियों से संवाद जरूरी हो गया है, ताकि ऐसे हादसे दोबारा न हों।
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