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जेपीएससी 11वीं से 13वीं सत्र कटऑफ विवाद और देरी पर उमड़ा असंतोष: पारदर्शिता पर उठे सवाल

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#रांची #जेपीएससी : कटऑफ उलझन और देरी से उम्मीदवारों में गहरा आक्रोश
  • जेपीएससी 11वीं से 13वीं सत्र की चयन प्रक्रिया पर विवाद।
  • कटऑफ अंक को लेकर खड़े हुए सवाल, ईबीसी का कटऑफ जनरल से ज्यादा।
  • आयोग की देरी ने उम्मीदवारों का करियर प्रभावित किया।
  • रोहित कुमार हिमांशु ने आयोग की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल।
  • विशेषज्ञों और उम्मीदवारों ने पारदर्शिता और समयबद्ध परीक्षा की मांग की।

गढ़वा/रांची। झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की 11वीं से 13वीं संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा की चयन प्रक्रिया एक बार फिर विवादों में आ गई है। 342 पदों के लिए आयोजित इस परीक्षा में कटऑफ अंक और आयोग की देरी ने उम्मीदवारों और आम लोगों को नाराज कर दिया है। प्रीलिम्स परीक्षा 17 मार्च 2024 को हुई थी और मुख्य परीक्षा 22 से 24 जून 2024 तक आयोजित हुई थी। अंतिम परिणाम में 342 अभ्यर्थी सफल घोषित हुए।

कटऑफ पर उठा विवाद

इस बार जारी कटऑफ सूची में सामान्य वर्ग का कटऑफ 652 और ईबीसी का कटऑफ 653.25 अंक घोषित किया गया। यह अंतर कई अभ्यर्थियों और सामाजिक संगठनों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। सवाल यह है कि क्या आयोग ने ईबीसी वर्ग को जनरल से ऊपर रखा है, या फिर यह केवल बेहतर प्रदर्शन का नतीजा है।

गढ़वा कांग्रेस ओबीसी जिलाध्यक्ष रोहित कुमार हिमांशु ने कहा:

“ईबीसी को जनरल से ऊपर कटऑफ देना कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक है। इससे यह गलतफहमी भी पैदा हो रही है कि जेपीएससी के नजर में ओबीसी उम्मीदवार जनरल से ऊपर हैं। आयोग को इस पर स्पष्टता देनी चाहिए।”

आयोग की देरी पर नाराजगी

जेपीएससी की कार्यशैली पहले से ही विवादों में रही है। झारखंड गठन को 25 साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक केवल 13 ही परीक्षाएं आयोजित हो पाई हैं। यह देरी कई उम्मीदवारों के करियर और भविष्य को प्रभावित करती रही है।

रोहित कुमार हिमांशु ने आरोप लगाया:

“जेपीएससी की परीक्षा होती भी है तो हर बार गड़बड़ी की शिकायत आयोग पर ही आती है। सीटें कम होती हैं और उम्मीदवार ज्यादा, ऐसे में छोटे-मोटे विवाद भी बड़ी समस्या बन जाते हैं। सरकार और आयोग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।”

विशेषज्ञों की राय और सामाजिक असर

विशेषज्ञों का कहना है कि कटऑफ विवाद और परीक्षा में देरी का असर केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक भी है। पारदर्शिता बनाए रखना और समय पर परीक्षा आयोजित करना आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

उम्मीदवारों की पीड़ा

आम उम्मीदवार और उनके अभिभावक भी इस मामले में बेहद नाराज हैं। उनका कहना है कि कटऑफ में असमानता और परीक्षा की देरी सीधे उनके करियर को प्रभावित करती है। अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि आयोग इस प्रक्रिया को किस तरह और कितनी जल्दी पूरा करता है।

इस दौरान राजू कुमार, विवेक कुमार, विकास कुमार, चंदन कुमार, अमर कुमार, सौरभ कुमार सहित कई लोग उपस्थित रहे और इस मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर की।

न्यूज़ देखो: जेपीएससी पर भरोसा बहाल करना ही सबसे बड़ी चुनौती

झारखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं की पारदर्शिता और समयबद्धता बार-बार सवालों के घेरे में रही है। यह केवल अभ्यर्थियों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का मुद्दा है। जब तक आयोग अपने निर्णयों पर स्पष्टता और निष्पक्षता नहीं दिखाता, तब तक युवाओं का भरोसा डगमगाता रहेगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

युवाओं की उम्मीदें और पारदर्शिता की मांग

यह विवाद हमें याद दिलाता है कि युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। अब समय है कि हम सब पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग को और मजबूत करें। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को साझा करें ताकि यह संदेश और दूर तक पहुंचे।

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