#महुआडांड़ #करमा_पर्व : बैगई भूमि पर पूजा की अनुमति को लेकर सरना समिति नाराज़, विरोध की राह पर उठे कदम
- बैगई जमीन पर करमा पर्व की अनुमति को लेकर विवाद गहराया।
- सरना समिति ने चेतावनी दी कि अनुमति नहीं मिलने पर गांव-गांव काला झंडा लगेगा।
- अध्यक्ष कमेश्वर मुंडा ने कहा – पहले भी यहां पूजा हो चुकी है।
- समिति ने एसडीएम महुआडांड़ के रवैये की निंदा की।
- सीआरपीसी 147 के तहत जांच रिपोर्ट आने पर ही प्रशासन देगा निर्णय।
महुआडांड़ अनुमंडल क्षेत्र में करमा पर्व की तैयारियों के बीच बैगई जमीन पर पूजा करने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। रविवार को सरना भवन महुआडांड़ में अनुमंडल सह प्रखंड सरना समिति की बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता कमेश्वर मुंडा ने की। बैठक में शामिल सदस्यों ने प्रशासनिक रवैये पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि यदि 3 सितंबर तक पूजा की अनुमति नहीं दी गई, तो गांव-गांव में काला झंडा फहराकर करमा पर्व मनाया जाएगा।
समिति का आरोप और चेतावनी
अध्यक्ष कमेश्वर मुंडा ने कहा कि सरना समिति के सदस्य और बैगा पहले से इस स्थल पर करमा पर्व मना चुके हैं, बावजूद इसके इस बार अनुमति रोक दी गई है। उनका आरोप है कि प्रशासनिक स्तर पर दोहरा रवैया अपनाया जा रहा है।
कमेश्वर मुंडा: “हमारे सरना समिति के कुछ सदस्य और बैगा पहले से इस स्थल पर करमा पर्व मना चुके हैं। इसके बावजूद हमें अनुमति नहीं दी जा रही। जबकि इसी बैगई स्थल पर ईसाई मिशनरी समर्थक आदिवासी सरना विकास मंच के लोगों को पूजा की अनुमति दी जा चुकी है।”
उन्होंने कहा कि 28 अगस्त को अनुमंडल कार्यालय में हुई बैठक में प्रस्ताव संख्या-7 में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि सर्ना पूजा पद्धति में आस्था रखने वाले किसी भी व्यक्ति को पूजा करने से नहीं रोका जाएगा। ऐसे में अनुमति न मिलना धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ है।
प्रशासन का पक्ष
एसडीएम विपिन कुमार दुबे ने बताया कि थाना को निर्देश दिया गया है कि इस स्थल पर पहले से करमा पर्व मनाने का कोई रिकॉर्ड है या नहीं, इसकी जांच कर रिपोर्ट दी जाए।
एसडीएम विपिन कुमार दुबे: “सीआरपीसी 147 के अनुसार, जिस भूमि पर जो लोग पहले से पूजा कर रहे हों, उन्हें ही अनुमति दी जाएगी। जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे का निर्णय लिया जाएगा।”
बढ़ते तनाव की आहट
बैगई भूमि पर पूजा की अनुमति को लेकर प्रशासन और सरना समिति के बीच यह टकराव सामुदायिक विवाद का रूप ले सकता है। समिति ने साफ संकेत दिए हैं कि यदि अनुमति नहीं मिली तो विरोध तेज किया जाएगा।
न्यूज़ देखो: आस्था और अधिकार की टकराहट
करमा पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आदिवासी अस्मिता और परंपरा का प्रतीक है। जब आस्था और प्रशासनिक निर्णय टकराते हैं, तो सामाजिक असंतोष गहराता है। यह जरूरी है कि प्रशासन संवेदनशीलता दिखाए और विवाद को न्यायपूर्ण समाधान की ओर ले जाए।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
करमा पर्व पर सुलह से ही बनेगी राह
करमा पर्व आस्था, एकता और सामाजिक सामंजस्य का पर्व है। ऐसे अवसर पर विवाद की जगह संवाद हो, यही समय की मांग है। अब ज़रूरत है कि सभी पक्ष मिलकर समाधान खोजें ताकि परंपरा भी बचे और शांति भी कायम रहे। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को शेयर करें ताकि जागरूकता फैले।