
#दुमका #अवैधखनन — म्यूराक्षी नदी में बदिया घाट से रोजाना उड़ाई जा रही कानून की धज्जियाँ
- खनन विभाग से महज़ 6 किलोमीटर दूर चल रहा अवैध बालू कारोबार, प्रशासनिक चुप्पी बनी रहस्य
- बदिया घाट से प्रतिदिन 150 ट्रैक्टर बालू का अवैध खनन, भारी राजस्व नुकसान
- सूत्रों के अनुसार घाट का CTO अब तक अप्रूव नहीं, फिर भी खुलेआम हो रहा कारोबार
- जिला प्रशासन और खनन विभाग की निष्क्रियता पर उठे सवाल
- दुमका के कई बालू घाटों में अवैध उत्खनन जोरों पर, कोई रोक-टोक नहीं
जब विभाग के पड़ोस में ही चल रहा अवैध धंधा
दुमका सदर अंचल में खनन विभाग के कार्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बदिया बालू घाट इन दिनों चर्चाओं में है। वजह है — यहां से रोजाना लगभग 150 ट्रैक्टर अवैध रूप से बालू की ढुलाई की जा रही है। म्यूराक्षी नदी के किनारे स्थित यह घाट बिना सरकारी अनुमति के चालू है, जिससे न केवल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, बल्कि सरकार को लाखों रुपये का राजस्व नुकसान भी हो रहा है।
CTO अप्रूव नहीं, फिर भी चल रहा कारोबार
सूत्रों की मानें तो बदिया बालू घाट का CTO (क्लियर टैक्स ऑर्डर) अब तक पेंडिंग है, यानी सरकार की ओर से इसे अभी तक अधिकृत स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे में घाट से बालू का खनन पूरी तरह अवैध है। फिर भी यह कार्य बिना रोक-टोक के जारी है, जिससे प्रशासन और विभाग की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
चुप्पी से उठ रहे बड़े सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि खनन विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस तीनों ही जानबूझकर आंख मूंदे बैठे हैं। जबकि घाट से निकलते ट्रैक्टरों की आवाजाही और धूल-धक्कड़ से पूरा इलाका परेशान है।
“अगर इतना बड़ा अवैध कारोबार खनन कार्यालय के सामने हो रहा है और विभाग अनजान बना है, तो यह या तो मिलीभगत है या भारी लापरवाही।”
— एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता
अवैध घाटों का जाल बनता जा रहा है दुमका
बदिया घाट अकेला नहीं है। दुमका जिले में दर्जनों ऐसे बालू घाट हैं, जहाँ बिना स्वीकृति के खनन कार्य जोरों पर है। म्यूराक्षी, बराकर, और छोटे नालों में बिना पर्यावरणीय मंजूरी, बिना सीटीओ और बिना खनन अनुज्ञप्ति के कार्य किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता और राजनीतिक संरक्षण के चलते यह समस्या विकराल होती जा रही है।
“इस तरह के अवैध खनन से न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि युवा वर्ग का भरोसा भी तंत्र से उठता जा रहा है।”
— एक स्थानीय शिक्षक
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जनता की निगरानी से ही बचेगा प्रकृति का संतुलन
दुमका जैसे इलाकों में जहाँ प्राकृतिक संसाधनों पर जनजीवन निर्भर करता है, वहाँ अवैध खनन सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं बल्कि सामाजिक और पारिस्थितिकीय संकट है। ज़रूरत है स्थानीय भागीदारी, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और पारदर्शिता की।
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