
#दुमका #किसान_आंदोलन : बंदोबस्त कार्यालय में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर सैकड़ों कार्यकर्ताओं का जोरदार प्रदर्शन।
दुमका में गुरुवार को बंदोबस्त कार्यालय के समक्ष भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और दलाली के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। झारखंड राज्य किसान सभा और आदिवासी अधिकार मंच के संयुक्त आह्वान पर सैकड़ों कार्यकर्ता महाघेराव में शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने भूमि सर्वे और पर्चा वितरण में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए प्रशासन से तत्काल सुधार की मांग की। यह आंदोलन रैयतों के अधिकार और भूमि सुरक्षा के सवाल को केंद्र में लाता है।
- झारखंड राज्य किसान सभा और आदिवासी अधिकार मंच का संयुक्त प्रदर्शन।
- बंदोबस्त कार्यालय, दुमका के समक्ष महाघेराव और नारेबाजी।
- सीपीएम नेता कॉमरेड एहतेशाम अहमद ने लगाए गंभीर आरोप।
- पदाधिकारियों, कर्मचारियों और कथित दलालों की मिलीभगत का आरोप।
- आठ सूत्री मांगपत्र सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी को सौंपा गया।
दुमका में भूमि से जुड़े मामलों को लेकर असंतोष गुरुवार को खुलकर सामने आया, जब झारखंड राज्य किसान सभा दुमका और आदिवासी अधिकार मंच दुमका के संयुक्त तत्वावधान में बंदोबस्त कार्यालय का महाघेराव किया गया। सैकड़ों की संख्या में जुटे किसानों, आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, दलाली और बिचौलियागिरी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। प्रदर्शन के कारण कार्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र लंबे समय तक आंदोलन स्थल में तब्दील रहा।
प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि भूमि बंदोबस्त से जुड़े कार्यों में पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव है और वास्तविक रैयतों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। आंदोलनकारियों ने कहा कि खतियान और पर्चा में नाम चढ़ाने के नाम पर खुलेआम पैसे की मांग की जा रही है, जिससे गरीब और वंचित वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है।
भ्रष्टाचार का अड्डा बना बंदोबस्त कार्यालय: एहतेशाम अहमद
धरना सभा को संबोधित करते हुए सीपीएम राज्य सचिव मंडल सदस्य कॉमरेड एहतेशाम अहमद ने बंदोबस्त कार्यालय पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह कार्यालय अब आम जनता की सेवा का केंद्र नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा बन चुका है।
कॉमरेड एहतेशाम अहमद ने कहा: “पैसे के दम पर खतियान और पर्चा में नाम चढ़ाया जा रहा है, जबकि असली रैयत दर-दर भटकने को मजबूर हैं। यह सीधा-सीधा रैयती अधिकारों का हनन है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि पदाधिकारी, कर्मचारी, आउटसोर्सिंग कर्मी और कथित दलाल एक संगठित गिरोह की तरह काम कर रहे हैं। इसका खामियाजा किसानों और आदिवासियों को भुगतना पड़ रहा है, जिनकी जमीनें वर्षों से विवादों में फंसी हुई हैं।
प्रशासनिक जवाबदेही की मांग
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि भूमि सर्वे और बंदोबस्त प्रक्रिया को जानबूझकर लंबित रखा जा रहा है, ताकि अवैध वसूली का रास्ता खुला रहे। कई मामलों में आदेश होने के बावजूद पर्चा निर्गत नहीं किया जाता, जिससे रैयतों को न्याय नहीं मिल पाता।
आंदोलनकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि शिविर न्यायालयों का आयोजन दुमका मुख्यालय से बाहर कर दिया जाता है, जिससे दूर-दराज के रैयतों को अनावश्यक परेशानी झेलनी पड़ती है।
आठ सूत्री मांगपत्र सौंपा गया
बंदोबस्त पदाधिकारी की अनुपस्थिति में प्रदर्शनकारियों ने सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी को आठ सूत्री मांगपत्र सौंपा। मांगपत्र में प्रमुख रूप से निम्न बिंदु शामिल थे:
- बंदोबस्त मामलों में समयबद्ध आदेश सुनिश्चित किया जाए।
- आदेश के 15 दिनों के भीतर सत्यापित प्रति उपलब्ध कराई जाए।
- शिविर न्यायालयों की सुनवाई दुमका मुख्यालय में की जाए।
- लंबित सर्वे कार्य छह माह के भीतर पूरा किया जाए।
- सभी पात्र रैयतों को फाइनल पर्चा निर्गत किया जाए।
- अवैध रूप से हड़पी गई रैयती जमीन वापस दिलाई जाए।
- दलालों और भ्रष्ट कर्मियों पर कड़ी कार्रवाई हो।
- बंदोबस्त प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता लागू की जाए।
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि इन मांगों पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
किसानों और आदिवासियों में आक्रोश
धरना स्थल पर मौजूद किसानों और आदिवासी समुदाय के लोगों ने बताया कि भूमि ही उनकी आजीविका और पहचान का आधार है। बंदोबस्त प्रक्रिया में हो रही अनियमितताओं से उनका भविष्य खतरे में पड़ गया है। कई लोगों ने कहा कि वर्षों से कार्यालय के चक्कर लगाने के बावजूद उन्हें न्याय नहीं मिला।
प्रदर्शन के दौरान माहौल पूरी तरह उग्र रहा, लेकिन आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी स्थिति पर नजर बनाए हुए थे।
संगठनों ने जताई आगे के आंदोलन की चेतावनी
झारखंड राज्य किसान सभा और आदिवासी अधिकार मंच के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यह महाघेराव केवल शुरुआत है। यदि बंदोबस्त कार्यालय की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं हुआ, तो जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक आंदोलन किया जाएगा।
न्यूज़ देखो: भूमि अधिकार पर बड़ा सवाल
दुमका का यह प्रदर्शन दिखाता है कि भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। प्रशासन पर यह जिम्मेदारी बनती है कि वह आरोपों की निष्पक्ष जांच करे और दोषियों पर कार्रवाई करे। किसानों और आदिवासियों का भरोसा बहाल करना अब सबसे बड़ी चुनौती है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जमीन का अधिकार, न्याय की बुनियाद
भूमि से जुड़ा न्याय केवल कागज नहीं, बल्कि सम्मान और सुरक्षा से जुड़ा सवाल है। जब रैयतों की आवाज संगठित होती है, तब व्यवस्था को जवाब देना पड़ता है।
आपकी राय क्या है, बंदोबस्त प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे लाई जाए। अपनी बात कमेंट में लिखें, खबर को साझा करें और अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाएं।





