झारखंड बंद में डुमरी बना आदिवासी एकजुटता का प्रतीक, मोटरसाइकिल जुलूस ने खींचा सबका ध्यान

#डुमरी #झारखंड_बंद — सरना संस्कृति, पेसा कानून और भूमि अधिकारों की सुरक्षा को लेकर आदिवासी युवाओं का शांतिपूर्ण प्रदर्शन

सरना स्थल अपमान और जमीन लूट के विरुद्ध आदिवासी युवाओं की हुंकार

डुमरी प्रखंड (गुमला) में बुधवार को झारखंड बंद का व्यापक असर देखा गया। बंद का आह्वान सिरमटोली स्थित सरना स्थल के मुख्य द्वार पर रैंप तोड़ने, पेसा कानून की लगातार अनदेखी, और आदिवासियों की भूमि लूट के विरोध में किया गया था। बंद के दौरान सरना समाज के युवाओं ने मोटरसाइकिल रैली निकालकर विरोध दर्ज कराया और सरना संस्कृति की रक्षा की पुरजोर मांग उठाई।

दर्जनों गांवों से होकर गुज़री मोटरसाइकिल रैली

यह शांतिपूर्ण मोटरसाइकिल जुलूस डुमरी, जिलिंगटोली, नवाडीह चौक, सीपी चौक, करमटोली, बेरी, रवींद्रनगर, टांगरडीह, डुमरडांड, भागीटोली, नटवाल, जयरागी, कुटलु सहित कई गांवों से होकर गुजरा। जुलूस में युवाओं ने ‘जय सरना’, ‘जय आदिवासी’, ‘आदिवासी एकता जिंदाबाद’ जैसे नारे लगाकर जनसमर्थन की अपील की। रैली ने क्षेत्र में आदिवासी एकता और चेतना की नई लहर को जन्म दिया।

स्वेच्छा से बंद रहीं दुकानें, रही पूरी तरह शांतिपूर्ण बंदी

बंद के दौरान किराना, मिष्ठान, मोबाइल, फर्नीचर, वेल्डिंग, टेक्सटाइल, चाय-पकौड़ा ठेले और फल-चना जैसी सभी दुकानें और प्रतिष्ठान स्वेच्छा से बंद रहे। बाजारों और मुख्य चौकों पर दिनभर सन्नाटा पसरा रहा और सड़क मार्ग पर वाहनों की आवाजाही लगभग ठप रही।

प्रशासन रहा सतर्क, बंद शांतिपूर्ण संपन्न

डुमरी थाना प्रभारी अनुज कुमार अपने दल-बल के साथ क्षेत्र में गश्ती करते रहे। प्रशासनिक सक्रियता के बावजूद बंद पूरी तरह शांतिपूर्ण और अनुशासित रहा। कहीं से किसी भी प्रकार की हिंसा या झड़प की कोई सूचना नहीं मिली, जिससे आदिवासी समाज की शांतिप्रिय और संगठित छवि उजागर हुई।

अधिकारों को लेकर आदिवासी समाज दिखा सजग और संगठित

बंद के दौरान आम नागरिकों में आदिवासी अधिकारों, भूमि सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्तित्व को लेकर गंभीरता और जागरूकता देखने को मिली। इस बंद ने प्रशासन और सरकार को स्पष्ट संदेश दिया कि आदिवासी समाज अब अपने अस्तित्व और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट और सजग है।

न्यूज़ देखो: आदिवासी चेतना की बुलंद होती आवाज

डुमरी में आयोजित यह बंद सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता की पुनः पुष्टि थी। सरना स्थल के अपमान से लेकर पेसा कानून की अनदेखी तक, हर मुद्दे पर सरना समाज ने संगठित होकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया।
न्यूज़ देखो ऐसे हर आंदोलन की आवाज बनेगा जो जन-संवेदनाओं से जुड़ा हो और सरकार को जगाने का कार्य करे।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

एकता और शांति से ही संभव है अधिकारों की प्राप्ति

आदिवासी समाज की यह शांतिपूर्ण और संगठित पहल दर्शाती है कि संविधानिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने का सबसे प्रभावशाली मार्ग जनचेतना और एकजुटता है।
आइए, हम सब मिलकर आदिवासी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए सजग रहें, जागरूक बनें और समाज में शांति बनाए रखें।
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