#डुमरी #करमा_पर्व : टागरडीह गांव में धूमधाम से मनाया गया आदिवासी संस्कृति का प्रतीक पर्व, जहां नृत्य, गीत और सामूहिक एकता की गूंज रही पूरे रात
- डुमरी प्रखंड के टागरडीह गांव में पारंपरिक उत्साह और उमंग के साथ करमा पर्व का आयोजन हुआ।
- पुरुषों और महिलाओं ने पारंपरिक पोशाकों में सज-धज कर भाग लिया।
- पुजारी बीरेंद्र भगत के निर्देशन में करम डाली की स्थापना और पूजा-अर्चना की गई।
- अखरा में करम धरम की कथा सुनाई गई, जिसने पर्व को सांस्कृतिक महत्व प्रदान किया।
- रातभर मंदार की थाप पर नाच-गाना और सामूहिक उत्सव चलता रहा।
डुमरी प्रखंड के टागरडीह गांव में इस वर्ष भी करमा पर्व उल्लास और आध्यात्मिक भक्ति के वातावरण में मनाया गया। यह पर्व ग्रामीण समुदाय की एकता, संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली का प्रतीक माना जाता है। गांव के लोग कई दिनों से इस आयोजन की तैयारी में जुटे थे और पूरे गांव में रंग, संगीत और आस्था का माहौल बना रहा।
पर्व की तैयारी और करम डाली की स्थापना
करमा पर्व की शुरुआत से पहले ग्रामीणों ने उपवास रखकर श्रद्धा और भक्ति से दिन की शुरुआत की। गांव के लोग सामूहिक रूप से जंगल से करम डाली काटकर लाए — जो इस पर्व का मुख्य प्रतीक है। इस डाली को अखरा में लाकर पुजारी बीरेंद्र भगत के मार्गदर्शन में विधि-विधान से गढ़ा स्थापित किया गया। इस दौरान पारंपरिक गीतों और ढोल-मंदार की थाप से वातावरण गूंज उठा।
पूजा और करम धरम की कथा
पर्व की पूजा के दौरान करम धरम की कथा सुनाई गई, जो इस पर्व की आत्मा कही जाती है। इस कथा में भाई-बहन के स्नेह, प्रकृति के प्रति आस्था और सामूहिकता की भावना झलकती है। ग्रामीणों ने श्रद्धा और उत्साह के साथ करम डाली की पूजा की और ईश्वर से सुख-समृद्धि की कामना की।
पुजारी बीरेंद्र भगत ने कहा: “करमा पर्व हमारी संस्कृति की पहचान है, यह हमें एकता और प्रेम से जोड़ता है।”
पूजा-अर्चना के बाद युवा और बुजुर्ग सभी ने मिलकर नृत्य और गीतों का आनंद लिया।
नृत्य, संगीत और सामूहिक उत्सव
जैसे-जैसे रात बढ़ती गई, पूरे गांव में मंदार की थाप और लोकगीतों की धुन पर नृत्य का दौर चलता रहा। महिलाएं और पुरुष हाथों में हाथ डाले पारंपरिक करम नृत्य करते रहे। गीतों में प्रकृति, परिवार और सामाजिक एकता की भावना साफ झलक रही थी। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के चेहरों पर उत्साह देखने लायक था।
करम डाली का विसर्जन
अगली सुबह करम डाली को सम्मानपूर्वक घर-घर घुमाकर नदी तक ले जाया गया, जहां ग्रामीणों ने विधि-विधान से उसका विसर्जन किया। यह प्रक्रिया केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन की निरंतरता और परिवर्तन का प्रतीक मानी जाती है। विसर्जन के दौरान भी लोग ढोल-मंदार बजाते हुए गीत गा रहे थे, जिससे वातावरण उल्लास से भर गया।
संस्कृति और सामुदायिक एकता का प्रतीक
करमा पर्व डुमरी क्षेत्र के लिए केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से ग्रामीण अपनी परंपराओं को जीवंत रखते हैं और आने वाली पीढ़ी को संस्कृति और एकता के मूल्य सिखाते हैं।
न्यूज़ देखो: परंपरा में निहित एकता का संदेश
डुमरी का करमा पर्व इस बात का उदाहरण है कि कैसे आदिवासी संस्कृति अपनी जड़ों से जुड़ी रहते हुए आधुनिक समाज में जीवंत बनी हुई है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामूहिक सहभागिता और भाईचारे का संदेश भी देता है। समाज में इस तरह के आयोजन संस्कृति संरक्षण और सामाजिक सौहार्द को सशक्त करते हैं।
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संस्कृति से जुड़ें, समाज को जोड़ें
करमा पर्व हमें यह सिखाता है कि परंपरा केवल अतीत नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाली कड़ी है। आइए, हम सब अपनी सांस्कृतिक विरासत को अपनाएं और समाज में एकता का संदेश फैलाएं। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को साझा करें और अपने गांव की परंपराओं पर गर्व महसूस करें — क्योंकि संस्कृति ही हमारी असली पहचान है।