#बानो #दुर्गापूजा : बानो प्रखंड के दुर्गा पहाड़ी मंदिर में 60 वर्षों से चल रही दुर्गा पूजा आज भी हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है
- समडेगा बानो के दुर्गा पहाड़ी मंदिर में 60 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन।
- सप्तमी से नवमी तक भक्तजन बलि देकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं।
- स्थापना के पीछे कर्मा सिंह और गुरुचरण सिंह की आस्था और संघर्ष की कहानी।
- कृष्णा चारी ने बानो पहाड़ी पर करवाया मां दुर्गा का स्थायी मंदिर निर्माण।
- पूजा समिति और ग्रामीणों के सहयोग से हर साल भव्य मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य कौशलेश दुबे पिछले 19 वर्षों से कर रहे पूजा-अर्चना।
बानो प्रखंड स्थित समडेगा का दुर्गा पहाड़ी मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और संघर्ष की प्रतीकात्मक पहचान बन चुका है। यहां पिछले 60 वर्षों से दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है, जिसमें न सिर्फ बानो प्रखंड बल्कि आसपास के जिले और उड़ीसा से भी हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। हर वर्ष यहां दुर्गा पूजा के साथ-साथ मेला, सांस्कृतिक कार्यक्रम और रावण दहन जैसी परंपराएं भी निभाई जाती हैं।
दुर्गा पहाड़ी का इतिहास और आस्था की कथा
करीब छह दशक पहले बानो के कर्मा सिंह और गुरुचरण सिंह मां दुर्गा के परम भक्त थे। कहा जाता है कि इनकी जमीन को लेकर तत्कालीन रातु राजा से विवाद होता था, लेकिन माता की कृपा से राजा के सिपाही इन्हें किसी तरह नुकसान नहीं पहुँचा पाते थे। परंपरा है कि खेतों की फसल भी सिपाहियों को दिखाई नहीं देती थी और जो कोई खेत में घुसता, वह रात भर वहीं जकड़ा रह जाता।
1965 में दोनों भाइयों ने उड़ीसा के ककोंगसोर और जोलड़ा से मां दुर्गा का आह्वान कर बानो लाए। हालांकि परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, संतानें समय से पूर्व निधन को प्राप्त हुईं। इसी बीच राउरकेला-रांची रेलखंड निर्माण के दौरान रेलवे कर्मचारी और मां शक्ति के उपासक कृष्णा चारी का आगमन हुआ। उन्होंने भाइयों के दुखों को देखकर बानो रेलवे स्टेशन के समीप स्थित पहाड़ी पर मां दुर्गा की स्थापना करवाई। तभी से यह स्थान दुर्गा पहाड़ी कहलाया।
मंदिर का विकास और वर्तमान स्वरूप
प्रारंभ में यहां पूजा पहाड़ी की गुफा में होती थी। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों के सहयोग से खपरैल मंदिर बना और वर्तमान में दुर्गा पूजा समिति ने मिलकर इसे एक भव्य मंदिर का स्वरूप दिया है। यहां की पूजा परंपरा अब दूर-दराज तक प्रसिद्ध है। सप्तमी के दिन पट खोल दिए जाते हैं और अष्टमी-नवमी पर संधि पूजा के दौरान भक्त बलि अर्पित करते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने की आस्था से बलि चढ़ाते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
हर साल दुर्गा पूजा के अवसर पर न केवल धार्मिक आयोजन बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। यहां का मेला आसपास के ग्रामीण अंचलों के लिए उत्सव का बड़ा अवसर होता है। रावण दहन कार्यक्रम के दौरान होने वाली भव्य आतिशबाजी देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं।
आयोजन समिति और सक्रिय सदस्य
मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य कौशलेश दुबे पिछले 19 वर्षों से यहां पूजा-अर्चना करा रहे हैं। दुर्गा पूजा समिति और स्थानीय ग्रामीण इस परंपरा को जीवित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। आयोजन में सक्रिय रूप से जुड़े लोग हैं – विकास साहु, तिलकू चौरसिया, बानो मुखिया विश्वनाथ बड़ाईक, टीपी मनोहरन, संतोष गुप्ता, गंधर्व सिंह, मगन सिंह, अमित सोनी, प्रेमानंद उपाध्याय, राकेश पांडा, पंकज कश्यप, शुभम कुमार, प्रकाश खतरी, अंकित साहु, विनोद कश्यप, शंकर सिंह, रामकृपाल, उधेश्वर महतो, अनूप साहु, राहुल लूनिया, दीपक महतो और अन्य स्थानीय नागरिक।


न्यूज़ देखो: आस्था और परंपरा की जीवंत मिसाल
दुर्गा पहाड़ी मंदिर की पूजा यह दर्शाती है कि कैसे संघर्ष और आस्था से परंपराएं जीवित रहती हैं। यह सिर्फ पूजा का स्थल नहीं बल्कि सामूहिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। यहां हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं का जुटना यह बताता है कि परंपराएं समय के साथ और मजबूत होती जाती हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
धर्म और संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखें
दुर्गा पहाड़ी मंदिर की यह ऐतिहासिक पूजा हमें सिखाती है कि सामाजिक सहयोग और श्रद्धा से हर परंपरा जीवित रह सकती है। आइए हम सब अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करें और अगली पीढ़ी तक इसे सुरक्षित पहुंचाएं। इस खबर पर अपनी राय कमेंट करें और इसे दोस्तों व परिजनों के साथ शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस अनूठे इतिहास और परंपरा से अवगत हो सकें।