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गुमला के डुमरी में गुरु-शिष्य परंपरा की गूंज: नान्दो देवी सरस्वती शिशु मंदिर में गुरु पूर्णिमा का भव्य आयोजन

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#गुमला #गुरुपूर्णिमासमारोह : संस्थापकजनों और शिक्षकों की गरिमामयी उपस्थिति में दीप प्रज्ज्वलन से हुई शुरुआत — विद्यार्थियों ने गीत-नृत्य व नाटिका से किया गुरुओं का अभिनंदन
  • नान्दो देवी सरस्वती शिशु मंदिर में उत्साह और गरिमा के साथ मनी गुरु पूर्णिमा
  • श्री अभिमन्यु जायसवाल, श्री जगन्नाथ प्रसाद सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे
  • विद्यार्थियों ने गीत, नृत्य और नाटिका के माध्यम से गुरुजनों को अर्पित की श्रद्धांजलि
  • आचार्यगणों ने वेदव्यास और गुरु-परंपरा पर प्रकाश डालते हुए बताया आध्यात्मिक महत्व
  • प्रधानाचार्य अजय पाणिग्राही ने समाज को भी गुरु मानने की बात कही, जताया आभार

दीप प्रज्ज्वलन से आरंभ हुआ अध्यात्म से भरा आयोजन

गुमला के डुमरी स्थित नान्दो देवी सरस्वती शिशु मंदिर में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 10 जुलाई 2025 को भव्य रूप में मनाया गया। विद्यालय परिसर में आयोजित इस गरिमामयी आयोजन की शुरुआत संस्थान के सचिव श्री अभिमन्यु जायसवाल, संरक्षक श्री जगन्नाथ प्रसाद, श्री राजेश केसरी, श्री उमेश ताम्रकार और अभिभावक प्रतिनिधि श्री सुभाष ठाकुर द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। इस आध्यात्मिक आरंभ ने गुरु-शिष्य परंपरा की गहराई को दर्शाया।

गुरु की भूमिका पर सारगर्भित वक्तव्य

संरक्षक श्री जगन्नाथ प्रसाद ने अपने भावनात्मक संबोधन में कहा कि गुरु केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि नैतिकता, दिशा और शक्ति के वाहक होते हैं। उन्होंने गुरु को समाज का आधारस्तंभ बताते हुए उनके निःस्वार्थ योगदान की प्रशंसा की।

श्री राजेश केसरी ने कहा कि माता-पिता ही प्रथम गुरु होते हैं, और उनका मार्गदर्शन यदि शिष्य अपनाता है तो जीवन की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।

गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक महत्व बताया

आचार्य आयुष केशरी और आचार्या सोनम कुमारी ने अपने संबोधन में महर्षि वेदव्यास के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वेदों के संकलन और ज्ञान के प्रचार में उनका योगदान अमूल्य है, और उन्हीं की स्मृति में यह दिवस गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि गुरु का ज्ञान और मार्गदर्शन ही सफलता की कुंजी है।

विद्यार्थियों की प्रस्तुतियों ने मोहा मन

इस कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुत गीत, नृत्य और लघु नाटिकाएं सभी की भावनाओं को छू गईं। इन प्रस्तुतियों में विद्यार्थियों ने गुरुओं के प्रति आभार और कृतज्ञता प्रकट की। बच्चों का अनुशासित पंक्तिबद्ध भाव अर्पण गुरु-शिष्य परंपरा का जीवंत प्रतीक रहा।

समाज को भी गुरु मानें: प्रधानाचार्य का संदेश

विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री अजय पाणिग्राही ने समापन भाषण में समाज को भी अप्रत्यक्ष गुरु बताया। उन्होंने कहा कि हमें समाज से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है, इसलिए समाज के उत्थान में भागीदारी देना हर नागरिक का दायित्व है।

अजय पाणिग्राही ने कहा: “हमें समाज के प्रति भी आभार व्यक्त करना चाहिए और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान देना चाहिए।”

सांस्कृतिक गरिमा और शिक्षा के मूल्यों की मिसाल

यह आयोजन न सिर्फ गुरु पूर्णिमा की पवित्र भावना को सजीव करता है, बल्कि शिक्षक और छात्र के बीच के बंधन को भी सुदृढ़ करता है। शिक्षा, संस्कृति और अध्यात्म का यह संगम नवीन पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

न्यूज़ देखो: गुरु की गरिमा और शिक्षा की साधना का पर्व

न्यूज़ देखो इस आयोजन को एक सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतिबिंब मानता है, जो न केवल विद्यार्थियों में संस्कार और कृतज्ञता का भाव भरता है, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा की गरिमा को पुनर्स्थापित करता है। ऐसे आयोजनों के जरिए शिक्षा को केवल पठन-पाठन नहीं, बल्कि जीवन निर्माण की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।
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