#रांची #गढ़वा #चेंबर_विवाद : 12 साल बाद पुराने दस्तावेजों से हुआ चौंकाने वाला खुलासा
- गढ़वा चेंबर का रजिस्ट्रेशन 2009-11 तक हुआ था, उसके बाद 12 साल तक कोई वैध अध्यक्ष या रिन्युअल नहीं।
- झारखंड चैंबर फेडरेशन की बैठक में पेश हुआ प्रमाणपत्र, जिसमें गढ़वा के पुराने अध्यक्ष का नाम और फोटो मौजूद।
- फेडरेशन ने स्पष्ट कहा: पुनर्गठन और चुनाव ही चैंबर पुनर्जीवन का एकमात्र रास्ता।
- पूर्व अध्यक्ष बबलू पटवा ने भेजा प्रतिनिधि, बाद में खुद रांची के लिए रवाना हुए।
- व्यवसायियों ने सवाल उठाए: लाखों की सदस्यता राशि का लेखा-जोखा गायब।
- वक्ताओं ने किया स्पष्ट: हमें कोई पद नहीं चाहिए, बस लोकतांत्रिक चुनाव की बहाली जरूरी।
झारखंड चैंबर फेडरेशन की बैठक में गढ़वा का मुद्दा प्रमुख एजेंडा बना
रांची स्थित चैंबर भवन में झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स फेडरेशन की विशेष बैठक आयोजित की गई, जिसमें अध्यक्ष परेश घटानी, महासचिव आदित्य मल्होत्रा, सह-सचिव विकास विजयवर्गीय, कोषाध्यक्ष समेत सभी कार्यकारिणी सदस्य मौजूद थे। इस बैठक में गढ़वा चेंबर ऑफ कॉमर्स से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत किए गए, जिसने सभी को चौंका दिया।
वर्ष 2009-10 और 2010-11 में गढ़वा चेंबर का फेडरेशन से रजिस्ट्रेशन हुआ था, जिसकी पुष्टि प्रमाणपत्रों और तस्वीरों से की गई। यह दस्तावेज उस समय के अध्यक्ष के नाम से दर्ज थे। लेकिन इसके बाद 2012 से 2025 तक कोई वैध दस्तावेज या अध्यक्ष की जानकारी फेडरेशन के पास नहीं मिली।
फेडरेशन ने कहा – लोकतांत्रिक चुनाव ही होगा एकमात्र समाधान
इस ऐतिहासिक स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए फेडरेशन ने साफ कहा कि गढ़वा चेंबर को दोबारा वैधता दिलाने के लिए नई कार्यकारिणी का गठन और निष्पक्ष चुनाव अनिवार्य है। बिना वैध चुनाव और सदस्यता नवीनीकरण के चेंबर का अस्तित्व कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा।
परेश घटानी ने कहा: “गढ़वा चेंबर को पुनर्जीवित करने का एकमात्र तरीका पारदर्शी और लोकतांत्रिक चुनाव है।”
बबलू पटवा का प्रतिनिधि भेजे जाने से उठा संदेह
बैठक के दौरान यह भी सामने आया कि पूर्व अध्यक्ष बबलू पटवा ने अपना प्रतिनिधि रांची भेजा था — कृष्णा प्रसाद, जो एक सरकारी कर्मचारी हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें रसीद कटवाने और अधिकारियों से मिलने के लिए भेजा गया था। इस बात ने बैठक में मौजूद लोगों को चकित कर दिया। बाद में खबर मिली कि पटवा खुद भी बस पकड़कर रांची रवाना हो गए।
चेंबर भवन की दुर्दशा पर भी उठे गंभीर सवाल
वक्ताओं ने कहा कि चेंबर भवन, जो व्यवसायियों की आवाज़ और गरिमा का प्रतीक होना चाहिए था, आज बदहाल और उपेक्षित हालत में है। भवन की साफ-सफाई, गतिविधियां, और सार्वजनिक संवाद पूरी तरह ठप हैं। सवाल यह भी उठाया गया कि पूर्व अध्यक्षों ने सदस्यता शुल्क से प्राप्त लाखों रुपये का उपयोग क्यों नहीं किया।
एक वक्ता ने कहा: “अगर हर साल सिर्फ 1000 सदस्य भी ₹500 का नवीकरण करते, तो 10 से 12 लाख का फंड होता, जिससे चुनाव और भवन मरम्मत दोनों संभव थे।”
सिर्फ चुनाव की मांग, न कि पद की लालसा
सभा में मौजूद प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं, वे केवल लोकतांत्रिक चुनाव की बहाली चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आज का उद्देश्य गढ़वा चेंबर को फिर से एक वैध, पारदर्शी और जनभागीदारी वाला संगठन बनाना है।
एक वक्ता ने दोहराया: “मुझे अध्यक्ष नहीं बनना, नॉमिनेशन नहीं डालूंगा। जिस दिन गढ़वा चेंबर का लोकतांत्रिक चुनाव संपन्न होगा, वही मेरी जीत होगी।”
व्यवसायियों से अपील: अब चुप्पी नहीं, संगठन के पुनर्जागरण का समय है
बैठक में यह अपील की गई कि जो व्यवसायी अब तक चुप हैं, वे अब आगे आएं। संगठन को राजनीतिक दिखावे और व्यक्तिगत फायदे से मुक्त कर गरिमामय संस्था बनाने में सहयोग दें।
एक प्रतिनिधि ने कहा: “गढ़वा के व्यवसायी अब ठगे नहीं जाएंगे। अब वक्त है अपनी आवाज़ को संगठित करने और नेतृत्व को जिम्मेदार बनाने का।”
न्यूज़ देखो: व्यवसायिक संगठन की वैधता और पारदर्शिता की नई मांग
गढ़वा चेंबर ऑफ कॉमर्स के इतिहास की परतें खुलना न सिर्फ संगठन के खोए हुए अस्तित्व की याद दिलाता है, बल्कि यह भी बताता है कि स्थानीय नेतृत्व में जवाबदेही और पारदर्शिता कितनी जरूरी है। अब जबकि दस्तावेज सामने हैं और फेडरेशन चुनाव की बात कर रहा है, व्यवसायियों को मिलकर संगठन के भविष्य की दिशा तय करनी होगी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
संगठित सोच से ही बदलेगी तस्वीर
गढ़वा के व्यवसायी अब बदलाव की चेतना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। अगर लोकतांत्रिक चुनाव हो, तो न केवल संगठन को नया जीवन मिलेगा, बल्कि युवाओं और नए उद्यमियों के लिए एक आदर्श मंच भी तैयार होगा।
अपने विचार कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और गढ़वा के हर व्यापारी तक यह संदेश पहुँचाएँ।