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एक डॉक्टर के सहारे चल रहा 80 हजार की आबादी वाला अस्पताल, लोग बोले- ये स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं मज़ाक है

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#महुआडांड़ #स्वास्थ्यसंकट | सामुदायिक अस्पताल में डॉक्टरों की भारी कमी से लोग हो रहे परेशान

  • महुआडांड़ अस्पताल में एकमात्र डॉक्टर के भरोसे चल रही है ओपीडी सेवाएं
  • दिन के तीन बजे के बाद इलाज की कोई व्यवस्था नहीं, मरीज लौटने को मजबूर
  • स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने महिला और पुरुष डॉक्टर की नियुक्ति की मांग की
  • सिविल सर्जन के आदेश पर पहले से नियुक्त 3-4 डॉक्टरों का हो चुका है तबादला
  • इलाज के लिए लोग निजी अस्पतालों पर हो रहे निर्भर, बढ़ रहा आर्थिक बोझ
  • लातेहार डीसी और सिविल सर्जन को सौंपा गया ज्ञापन, त्वरित कार्रवाई की मांग

महुआडांड़ का अस्पताल बना सवालों के घेरे में

लातेहार जिले के महुआडांड़ अनुमंडल अस्पताल में एकमात्र डॉक्टर के सहारे ओपीडी सेवाएं संचालित की जा रही हैं। 80 हजार की आबादी वाले इस क्षेत्र में यह व्यवस्था लोगों के साथ अन्याय के समान मानी जा रही है। आमतौर पर अस्पताल में तीन बजे के बाद ओपीडी बंद हो जाती है, जिसके कारण गंभीर मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि कुछ महीने पहले यहां तीन से चार डॉक्टर नियमित रूप से कार्यरत थे, लेकिन सिविल सर्जन के आदेश पर उनका तबादला कर दिया गया। इसके बाद से अस्पताल की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

जनप्रतिनिधियों की पहल से जागा प्रशासन

महुआडांड़ की बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अब स्थानीय जनप्रतिनिधि भी सामने आए हैं। उप प्रमुख अभय मिंज, आनंद प्रसाद, प्रदीप कुमार, लक्ष्मण जायसवाल, शहजाद आलम और संजय सहित कई लोगों ने लातेहार उपायुक्त और सिविल सर्जन से मिलकर ज्ञापन सौंपा है।

“महुआडांड़ जैसे दूरस्थ क्षेत्र में एक महिला और एक पुरुष डॉक्टर की नियुक्ति अत्यंत आवश्यक है, ताकि लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिल सके,”
अभय मिंज, उप प्रमुख

प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि यदि जल्द नियुक्ति नहीं हुई तो जन आंदोलन किया जाएगा।

निजी अस्पतालों की महंगाई ने बढ़ाई लोगों की मुश्किलें

सरकारी अस्पताल में डॉक्टर की अनुपलब्धता के कारण मरीजों को निजी क्लिनिक और अस्पतालों का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे इलाज का खर्च कई गुना बढ़ गया है। गरीब और ग्रामीण परिवार इस महंगाई से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण लोगों का सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली से भरोसा उठता जा रहा है। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को सबसे अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

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